राधे कृष्णा! भगवान श्री कृष्ण, हिन्दू धर्म के सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं। श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन छोटे बच्चों को बाल गोपाल के रूप में सजाया जाता है, और 'नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की' की गूंज चारों और सुनाई देती है। बता दें की श्री कृष्ण ने भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में धरती पर जन्म लिया था। उनका उद्देश्य धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करना था।
भगवान कृष्ण का जन्म बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami 2025) का पर्व भगवान के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के दिन रात 12 बजे ही उनकी पूजा करने की खास परंपरा है।
तो आइए जानते हैं, 2025 में जन्माष्टमी का पर्व कब मनाया जाएगा और श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2025 पूजा मुहूर्त और महत्वपूर्ण अनुष्ठान क्या होंगे।
हर साल भाद्रपद माह की अष्ठमी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व, गोकुलाष्टमी (gokulashtami 2025) के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, श्री कृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025, शनिवार (Krishna Janmashtami 2025 Date) को मनाई जाएगी। श्री कृष्ण जन्माष्टमी का समय इस प्रकार है-
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 15 अगस्त 2025, रात्रि 11:49 बजे से
अष्टमी तिथि समापन - 16 अगस्त 2025, रात्रि 09:34 बजे तक
इस साल भगवान श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा, जिसका शुभ समय है-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को हुआ था। यह वो पावन घड़ी थी, जब मथुरा की भूमि पर भगवान श्रीकृष्ण ने वासुदेव और माता देवकी के घर मानव रूप में अवतार लिया। देवकी के भाई का नाम कंस था, जो उस समय मथुरा का अत्याचारी राजा था। एक दिन, भविष्यवाणी में यह कहा गया कि देवकी की आठवीं संतान कंस के पापों का प्रतिशोध लेगी। भविष्यवाणी से डरकर कंस ने अपनी बहन और उसके पति को बंदी बना लिया।
कंस ने भविष्यवाणी के बाद देवकी के सभी बच्चों को जन्म लेते ही मार डालने का फैसला किया। जैसे ही देवकी ने आठवां बच्चा जन्मा, महल में एक अदृश्य शक्ति ने सभी को गहरी नींद में डाल दिया।
तब वासुदेव ने अपने नन्हे बेटे को लेकर मथुरा से वृन्दावन की ओर गए। वहां उन्होंने शिशु को यशोदा और नंद के घर सुरक्षित छोड़ दिया।
यह बच्चा कोई साधारण बालक नहीं था। वह भगवान विष्णु का रूप था, जिसे बाद में श्री कृष्ण के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण ने अल्पायु में ही अपने मामा कंस को हराया और मथुरा के निवासियों को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।
इसके बाद, श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र में हुए महाभारत के युद्ध में पांडवों के वीर अर्जुन के सारथी बने। उन्होंने धर्म की स्थापना के लिए अर्जुन को मार्गदर्शन दिया और पृथ्वी पर धर्म की पुनः स्थापना की।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी देशभर (krishna janmashthmi celebration in India) में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। आइए जानते हैं, देश के विभिन्न हिस्सों में यह त्योहार कैसे मनाया जाता है-
उत्तर भारत में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन रास-लीला होती है, जिसमें राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी का मंचन किया जाता है।
महाराष्ट्र में कृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन दही हांडी का खास आयोजन होता है, जिसमें लोग एक पिरामिड बना कर दही से भरे मटके को तोड़ते हैं। यह कृष्ण के बचपन की याद दिलाता है, जब वह अपने दोस्तों संग मिलकर मक्खन और दही चुराया करते थे।
दक्षिण भारत में गोकुला अष्टमी का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु में घर के आंगन में कोलम सजाने की परंपरा है। इस दिन भक्त भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति-भाव दर्शाते हुए भक्ति गीत गाते हैं।
राजस्थान और गुजरात में कृष्ण जन्माष्टमी की भक्ति बहुत गहरी है। द्वारका के द्वारकाधीश मंदिर से लेकर जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर तक, हर जगह ठाकुर जी की मनमोहक छवि देखने को मिलती है। यहां के राधा-कृष्ण मंदिरों में एक हफ्ता पहले से ही कृष्ण लीला जैसे कार्यक्रमों का आयोजन शुरू हो जाता है।
ओडिशा में कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है। यहां लोग आधी रात तक उपवास रखते हैं और भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। भागवत पुराण का दसवां अध्याय इस दिन बड़े श्रद्धा से पढ़ा जाता है, जो श्री कृष्ण के जीवन को दर्शाता है।
रात के समय नंदोत्सव का आयोजन भी होता है, जो कृष्ण के माता-पिता, नंद और यशोदा की पूजा का प्रतीक है।
भगवान कृष्ण कि दिव्य और मनमोहक छवि सदा ही मन को आकर्षित करती है। जन्माष्टमी पर उनका श्रृंगार खास महत्व रखता है। इसलिए पूजा की शुरुआत सबसे पहले श्री कृष्ण के श्रृंगार से करें। अगर घर पर लड्डू गोपाल हैं, तो उन्हें नई पोशाक और आभूषण से सजाएं। श्रृंगार के बाद, उन्हें चंदन का तिलक लगाएं। वैजन्ती के फूल भगवान कृष्ण को अर्पित करना शुभ माना जाता है। पूजा के अंत में, उन्हें माखन-मिश्री का भोग लगाएं और फिर आरती गाएं।
भगवान श्री कृष्ण के पवित्र जन्मोत्सव पर, सभी कृष्ण भक्तों को धर्मसार की ओर से श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2025 (shree krishna jamashthmi 2025) की ढेर सारी शुभकामनाएं !