धार्मिक दृष्टिकोण से श्रावण मास या सावन के महीने का बहुत अधिक महत्व होता है। सावन का यह माह तपती गर्मी से राहत तो देता ही हैं साथ ही सभी ओर खुशियां बिखरने वाले तीज-त्यौहार भी लाता है, जिनमें मुख्यत: सिंजारा (Sinjara), हरियाली तीज (Hariyali Teej), रक्षाबंधन (Rakshabandhan) जैसे मुख्य त्यौहार शामिल है।
आज जिस त्यौहार के बारे में हम बात करने जा रहे है वो है - हरियाली तीज (hariyali teej festival)। हरियाली तीज को कजरी तीज या हरतालिका तीज के नाम से भी जाना जाता हैं। वर्ष 2022 की बात की जाये तो इस बार हरियाली तीज जुलाई के आखिरी दिन यानी 31 जुलाई को मनाई जायेगी। इस पोस्ट के माध्यम से आप इस त्यौहार के बारे में सभी प्रकार की जानकारी और इससे जुड़े सभी रीती-रिवाज के बारे में जान सकते है।
हरियाली तीज का यह त्यौहार वैसे तो देश के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन राजस्थान में इसका विशेष महत्व है। इस त्यौहार की बात की जाए तो यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया के दिन मनाया जाता है। हरियाली तीज के दिन महिलाएं अपने पति की खुशहाली और लंबी आयु के लिए और अविवाहित युवतियां अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रखती है।
इस दिन महिलाएं सोलह शृंगार करती है और अपने घर की सुख-समृद्धि के लिए देवी पार्वती और भगवान शिव से प्रार्थना करती है। माना जाता है की जो भी महिलाएं इस व्रत को पूरी श्रद्धा से निभाती है उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
तीज का अवसर महिलाओं के लिए बहुत खास होता है। वे सभी महिलाएं मन में यही कामना करती है की माता पार्वती और शिव की तरह उनकी जोड़ी भी बनी रहे। जैसे हर एक त्योहार के कुछ परंपरा ओर रीति-रिवाज होते है वैसे ही तीज मनाने की भी कुछ परंपरा होती है, आइये जानते है:
हिन्दू धर्म में बहुत सारे व्रत-त्यौहार मनाएं जाते है। सभी त्योहारों का एक धार्मिक महत्व अवश्य होता है। वैसे ही हरियाली तीज का त्यौहार मनाने के पीछे भी एक महत्व छुपा हुआ है। ऐसा माना जाता है की इस दिन भगवान भोले शंकर का देवी पार्वती के रूप में माता सती के साथ पुनर्मिलन हुआ था। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में स्वीकार करने के लिए बहुत कठिन तप किया था।
बताया जाता है की वह सावन का ही महीना था, जब भगवान शंकर माता पार्वती के तप से प्रसन्न हो गए थे और उन्हें अपनी पत्नी बनाने का निर्णय लिया था। कहा जाता है कि श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही भगवान शंकर ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इसलिए विवाहित महिलाओं के लिए यह दिन अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता हैं।