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प्रेरक कहानियाँ

इस श्राप के चलते भगवान शिव को काटना पड़ा गणेश जी का सिर, पढ़े ये रोचक कथा!

हम सभी यह पौराणिक कहानी जानते हैं कि कैसे भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश को गज का सिर लगाया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव को एक महान ऋषि ने श्राप दिया था, जिसके कारण उन्होंने अपने ही पुत्र का सिर काट दिया था? ब्रह्मवैवर्त पुराण से सम्बंधित यह कथा इस प्रकार है-

इस श्राप के चलते भगवान शिव को काटना पड़ा गणेश जी का सिर, पढ़े ये रोचक कथा!

हम सभी यह पौराणिक कहानी जानते हैं कि कैसे भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश को गज का सिर लगाया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव को एक महान ऋषि ने श्राप दिया था, जिसके कारण उन्होंने अपने ही पुत्र का सिर काट दिया था? ब्रह्मवैवर्त पुराण से सम्बंधित यह कथा इस प्रकार है-

क्यों मिला महादेव को श्राप?

ब्रह्मवैवर्त पुराण में माली-सुमाली नामक दो राक्षस बताए गए हैं। दोनों भगवान शिव के अनुयायी थे। दोनों भगवान शिव की शरण में एक बार आए और सूर्य देव को घृणा करने लगे।

उनका कहना था कि उनकी राशि पर सूर्य के नकारात्मक प्रभाव से उन्हें शारीरिक परेशानियां हो रही हैं। सूर्यदेव चाहे तो उनका कष्ट कम कर सकते है।

उन्होंने भगवान शिव से कहा कि वे सूर्यदेव से कहें कि वे उन्हें कष्ट न दें। भगवान शिव सूर्यदेव को समझाने आए, लेकिन सूर्यदेव ने कहा कि भलें ही वह भगवान शिव के भक्त है, लेकिन वह दोनों ही क्रूर राक्षस है और उन्हें उनके कर्मों की सजा मिलेगी।

सूर्य सभी राशियों में अपनी गति से ही गोचर करता है, इसलिए वह माली-सुमाली पर विशेष कृपा नहीं कर सकता। सूर्यदेव के शब्दों में अंंहकार था। यह सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो गए और सूर्यदेव पर त्रिशूल से हमला किया।

सूर्य देव का सिर त्रिशूल से टकराकर गिर गया और उन्होंने अपने प्राण त्यागते ही धरती अन्धकारमय हो गई। सूर्यदेव के पिता और ब्रह्मा के पोते कश्यप ऋषि इसे देखकर बहुत दुखी हो गए।

कश्यप ऋषि को अपने पुत्र का सिर कटा देखकर इतना दुःख हुआ कि उन्होंने महादेव को श्राप दे दिया। उन्होंने जिस तरह आज एक पिता को अपने पुत्र को ऐसी स्थिति में देखकर इतनी पीड़ा हो रही है, एक दिन महादेव को भी अपने पुत्र को ऐसी स्थिति में देखना होगा, और पुत्र को पीड़ा देने के लिए स्वयं महादेव जिम्मेदार होंगे।

भगवान शिव भी एक पिता की पीड़ा देखकर बहुत दुखी हो उठे। तब सभी देवताओं ने भगवान शिव से कहा कि बिना सूर्य देव के पृथ्वी पर जीवन ही नहीं होगा। यह सुनकर भगवान शिव ने सूर्यदेव के मृत तेज को पुनः जीवित किया।

जब सूर्यदेव जीवित हुए तो उन्हें अपनी भूल का पश्चाताप हुआ कि उन्होंने अंहकार में आकर महादेव की अवेहलना की है। उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी और अपने पिता को पूरी बात समझाई। उन्होंने कहा कि उन्हें महादेव को ऐसा शाप नहीं देना चाहिए था।

अब वो अपने शाप के विनाश को कुछ कम करने का तोड़ बताए। यह सुनकर कश्यप ऋषि ने कहा कि दिया गया शाप वापस तो नहीं लिया जा सकता लेकिन महादेव ने जिस तरह सूर्यदेव को जीवित किया है, वे अपने पुत्र को भी जीवित कर पाएंगे और अपने अलग स्वरूप की वजह से महादेव का पुत्र देवता के रूप में घर-घर पूजा जाएगा।

भगवान सूर्य ने माली-सुमाली को बताया कि अगर वे अपनी बुरी आदतों को छोड़कर नियमित रूप से सूर्यदेव और शिव की पूजा करेंगे, तो वे अपने दुःख से जल्दी छुटकारा पा सकेंगे। इसी तरह माली-सुमाली ने सूर्यदेव को भी पूजा करना शुरू किया।

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