समझनी है जिंदगी तो पीछे देखो, जीनी है जिंदगी तो आगे देखो…।

प्रेरक कहानियाँ

ऐसा क्या हुआ, जो प्रभु श्री राम को तोड़ना पड़ा संकटमोचन का घमंड? जानें रामायण से जुड़ा यह रोचक प्रसंग!

पवनपुत्र हनुमान को भगवान राम के सबसे लोकप्रिय भक्तों में से एक माना जाता है। अजर-अमर कहे जाने वाले संकटमोचन ने अपना संपूर्ण जीवन अपने प्रभु श्री राम की भक्ति में समर्पित कर दिया। राजा राम भी अपने प्रिय भक्त हनुमान जी से बहुत प्रेम करते थे। लेकिन एक समय पर, भगवान श्री राम ने भी अपने प्रिय भक्त का घमंड भी तोड़ा था, तो आइए जानते हैं इस कहानी से जुड़ी पौराणिक कथा।

ऐसा क्या हुआ, जो प्रभु श्री राम को तोड़ना पड़ा संकटमोचन का घमंड? जानें रामायण से जुड़ा यह रोचक प्रसंग!

मंगलवार का दिन पवनपुत्र हनुमान जी की पूजा को समर्पित है। हनुमानजी ने भगवान राम की मदद के लिए बहुत से असंभव कार्य किये। हनुमान जी के आराध्य भगवान राम हैं और राम जी अपने प्रशंसकों में हनुमान जी को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। हनुमानजी और भगवान राम के बारे में कई किस्से एवं कथाएं प्रचलित हैं।

ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी कहानी बता रहे हैं जिसमें भगवान राम ने हनुमान जी का घमंड तोड़ दिया था। तो आइये जानते है-

यह बात लंका युद्धसे पहले की है। लंका में समुद्र पर पुल का निर्माण कार्य चल रहा था। पहले भगवान राम इस पुल पर एक शिवलिंग बनाना चाहते थे। तब भगवान राम ने हनुमानजी को अपनी इच्छा से अवगत कराया और उन्हें काशी जाकर शिवलिंग की स्थापना तक साथ लाने के लिए कहा।

पवनपुत्र के लिए काशी यात्रा कोई कठिन कार्य नहीं था। वह बेहद ताकतवर और तेजवान थे। अपने इन शक्तियों के चलते वह क्षण भर में ही काशीधाम पहुंच गये। उसे अपनी गति पर थोड़ा घमंड हो गया। लेकिन भगवान राम इस बात से भलीं-भांति परिचित थे।

उन्होंने सुग्रीव से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि शुभ समय व्यतीत न हो, इसलिए उन्होंने स्वयं पुल पर रेत से बना एक शिवलिंग स्थापित किया।

इसी बीच हनुमान जी काशी से शिवलिंग लेकर भगवान राम के पास पहुंचे। उन्होंने देखा कि भगवान राम ने रेत से बना हुआ एक शिवलिंग स्थापित किया है। हनुमान जी ने भगवान से कहा, प्रभु राम आपने मुझसे कहा था कि काशी से यह शिवलिंग ले आओ। वह मैं ले आया हूँ और आपने यहां रेत से बने शिवलिंग को स्थापित कर दिया।

तब भगवान राम ने अपनी गलती स्वीकार की और इस रेत के शिवलिंग को यहां से हटाने के लिए कहा। इसके बाद काशी से लाए गए शिव लिंग को दोबारा यहां स्थापित किया जाएगा। भगवान की अनुमति लेने के बाद हनुमानजी ने रेत के शिवलिंग को अपनी पूंछ से पकड़ लिया और उसे बाहर खींचने की कोशिश की। परंतु वह शिवलिंग तस से मस न हुआ।

हनुमानजी को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ कि आखिर कैसे शिव लिंग अपनी जगह से नहीं हट रहा। संकटमोचन को पहले तो आश्चर्य हुआ, लेकिन समय के साथ उन्हें अपनी गलती और अपने अभिमान का एहसास हुआ। उनका अभिमान टूट गया और उन्होंने भगवान श्री राम से क्षमा मांगी।

रामायण से जुड़ें इस प्रसंग से हमें यह सीख मिलती है कि कभी भी अपनी ताकत और ज्ञान पर घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है।

डाउनलोड ऐप