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त्यौहार

देव स्नान पूर्णिमा 2023 | Deva Snana Purnima 2023 | तिथि, समय, महत्व व अनुष्ठान

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देव स्नान पूर्णिमा को 'स्नान यात्रा' के रूप में भी जाना जाता है। यह पर्व भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए एक शुभ उत्सव माना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह पारंपरिक त्यौहार 'ज्येष्ठ' महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। पुरी में जगन्नाथ मंदिर की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा से ठीक पहले, देव स्नान पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इस स्नान समारोह के दौरान, जगन्नाथ मंदिर के देवताओं, अर्थात् भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की पूरी भक्ति और समर्पण के साथ पूजा की जाती है।

देव स्नान पूर्णिमा 2023 | Deva Snana Purnima 2023 | तिथि, समय, महत्व व अनुष्ठान

भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए देव स्नान पूर्णिमा एक बहुत ही शुभ स्नान पर्व है। यह पारंपरिक हिन्दू कैलेंडर में 'ज्येष्ठ' महीने पर हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। देव स्नान पूर्णिमा का यह त्यौहार भगवान जगन्नाथ मंदिर के सबसे प्रत्याशित अनुष्ठानों में से एक है। कुछ लोग इस त्यौहार को भगवान जगन्नाथ के जन्मदिन के रूप में भी मनाते है। देश के अलग-अलग हिस्सों से श्रद्धालु यहां आते हैं और इस अद्भुत समारोह का हिस्सा बनते है। आइये जाते है, साल 2023 में देव स्नान की तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व व अनुष्ठान-

Deva Snana Purnima Date 2023 | देव स्नान पूर्णिमा तिथि 2023

हर साल ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा तिथि को देव स्नान पूर्णिमा का यह समारोह मनाया जाता है। इस साल, रविवार 4 जून 2023 (deva purnima date 2023) के दिन देव स्नान पूर्णिमा का यह पर्व मनाया जाएगा। ज्येष्ठ पूर्णिमा का शुरुआत व समापन समय इस प्रकार से है-


Deva Snana Purnima Timings | देव स्नान पूर्णिमा समय

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ - 03 जून 2023 को 11:17 AM से
पूर्णिमा तिथि समापन - 04 जून 2023 को सुबह 9:11 बजे तक

Significance of Deva Snana Purnima: देव स्नान पूर्णिमा का महत्व

देव स्नान पूर्णिमा का त्यौहार भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि अनुष्ठानिक स्नान यात्रा के दौरान देवताओं को बुखार आता है और वे 15 दिनों के एकांतवास में रहते है।

पंद्रह दिनों की होने के बाद ही मूर्तियां सार्वजनिक दर्शन के लिए दिखाई देती है। जैसा कि 'स्कंद पुराण' में उल्लेख किया गया है, राजा इंद्रद्युम्न ने जगन्नाथ मंदिर में देवताओं की स्थापना के बाद पहली बार इस स्नान समारोह का आयोजन किया था। भगवान जगन्नाथ के भक्तों का मानना है कि देव स्नान पूर्णिमा के दिन अपने भगवान के दर्शन मात्र से ही वे अपने वर्तमान और पिछले जन्मों के सभी पापों से मुक्त हो जाते है।

प्रत्येक वर्ष इस पावन पर्व पर हजारों की संख्या में भक्तगण भगवान जगन्नाथ के मंदिर में दर्शन हेतु जाते है।


Rituals during Deva Snana Purnima | देव स्नान पूर्णिमा के अनुष्ठान

• ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन, भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को सुबह-सुबह जगन्नाथ पुरी मंदिर के 'रत्न सिंहासन' से ले जाया जाता है।

• इन मूर्तियों को एक रथ यात्रा में ले जाया जाता है, जिसके भव्य दर्शन करने हेतु हजारों भक्तगण वहां मौजूद होते है। यात्रा के दौरान भगवान जग्गनाथ, बलराम और देवी सुभद्रा की मूर्तियों को ' स्नान वेदी' पर लाया जाता है। इस रथ यात्रा को 'पहांडी' यात्रा के नाम से जाना जाता है। भगवान जग्गनाथ की यह यात्रा अनेक हर्षोल्लास के साथ निकाली जाती है।

• देवताओं को स्नान कराने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला जल जगन्नाथ मंदिर के अंदर मौजूद कुएं से लिया जाता है। स्नान समारोह से पहले, पुजारियों द्वारा कुछ पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। जगन्नाथ मंदिर के तीन मुख्य देवी- देवताओं को स्नान कराने के लिए हर्बल और सुगंधित पानी के कुल 108 घड़ों का उपयोग किया जाता है।

• स्नान की रस्म पूरी होने के बाद, देवताओं को 'सदा बेशा' पहनाया जाता है। जिसके बाद दोपहर के समय, भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलराम की मूर्तियों को 'हाथी बेशा' (भगवान गणेश के रूप में) के रूप में तैयार किया जाता है। दोपहर के अनुष्ठान संपन्न होने एक बाद सभी देवताओं की प्रतिमा को 'सहनमेला' के लिए प्रकट किया जाता है, इस माध्यम से सभी श्रध्दालु प्रभु के दर्शन कर सकते है।

• भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियाँ केवल 15 दिन बाद, यानी प्रसिद्ध रथ यात्रा के एक दिन पहले सार्वजनिक दर्शन के लिए दिखाई देती है।


देव स्नान पूर्णिमा का यह पर्व हर रूप से पावन और कल्याणकारक माना गया है। यह पर्व श्री जगन्नाथ के विभिन्न अनुष्ठानों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सों में से एक है।

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