जब-जब धर्म की हानि हुई है, तब-तब भगवान विष्णु इस धरती पर जन्म लिया है। हरग्रीव भी भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माना जाता है। जिस दिन भगवान विष्णु के अवतार हरग्रीव का धरती पर अवतरण हुआ, उस दिन को हयग्रीव जयंती के रूप में जाना जाता है। यह पर्व सावन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है।
भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से हरग्रीव अवतार ने वेदों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अतः यह अवतार हमारे जीवन को ज्ञान से आलोकित करने वाला है। यह व्यक्ति को जीवन में सही मार्ग दिखाने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। हयग्रीव जयंती, भगवान हयग्रीव की जयंती के रूप में मनाया जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान हयग्रीव ने सभी वेदों को ब्रह्मा जी को पुनः प्रदान किया था।
हयग्रीव (Haygriv Jayanti 2023) भगवान विष्णु का एक अनोखा अवतार है, जिसका सिर घोड़े का और शरीर इंसान का है। इस अवतार का उद्देश्य राक्षसों एवं असुरों के द्वारा चुराएं गए वेदों को पुनः प्राप्त करना था। इस दिन को ब्राह्मण समुदाय द्वारा उपाकर्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। आइये जानते है, इस साल यह पर्व कब मनाया जाएगा और इसका क्या महत्व है और भगवान विष्णु के इस अवतार की पौराणिक कथा क्या है-
भगवान के इस रूप का वर्णन घोड़े के सिर वाले आधे मनुष्य के रूप में किया गया है। दोनों का यह संयोजन मनुष्य और प्रकृति दोनों की रचना और इस संयोजन से निकलने वाली ऊर्जा को दर्शाता है। विष्णु ने यह अवतार मधु और कैटुभ नामक दो राक्षसों से ब्रह्मांड की रक्षा के लिए लिया था, जिन्होंने वेदों को चुरा लिया था।
हयग्रीव जयंती (Haygriv Jayanti 2023) श्रावण मास में श्रावण पूर्णिमा के दिन पड़ती है। दुर्गा नवरात्रि उत्सव के नौवें दिन, महानवमी के दिन भगवान हयग्रीव की भी पूजा की जाती है। ऐसे में साल 2023 में, बुधवार, 30 अगस्त 2023 (haygriv jayanti date 2023) के दिन हयग्रीव जयंती मनाई जाएगी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार की कहानी इस प्रकार से बताई जाती है-
पौराणिक समय की बात है। एक दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी बैकुण्ठ धाम में विराजमान थे। उस समय माता लक्ष्मी के सुंदर स्वरुप को देख भगवान विष्णु मुस्कुराएं। भगवान विष्णु को मुस्कुराता देख, देवी लक्ष्मी को ऐसा प्रतीत हुआ विष्णु भगवान उनकी सुंदरता का मजाक उड़ा रहे है। माता लक्ष्मी ने इसे अपना अपमान समझ लिया और बिना सोच-विचार किए, भगवान विष्णु को श्राप से दिया कि एक दिन उनका सिर धड़ से अलग हो जाए।
देवी लक्ष्मी के श्राप के कारण, श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि को भगवान विष्णु का यह अवतार हुआ।
इस श्राप के चलते एक बार भगवान विष्णु युद्ध करते हुए बहुत थक गए। थकान के कारण भगवान धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर, उसे धरती पर टिकाकर, उसी पर सिर लगाकर सो गए। उनकी निद्रा के कुछ समय पश्चात, जब देवाताओं ने यज्ञ का आयोजन किया तो भगवान विष्णु को निद्रा से जगाने के लिए धनुष की प्रत्यंचा को कटवा दिया। उस समय प्रत्यंचा कटवाने के साथ ही उस धनुष के कारण भगवान विष्णु के गर्दन पर प्रहार हो गया। जिस कारण भगवान का सिर धड़ से अलग हो गया।
इसके बाद सभी देवताओं ने देवी आदिशक्ति का आह्वान किया। देवी ने तब देवताओं को आदेश दिया कि आप भगवान विष्णु के धड़ में घोड़े का सिर लगवा दें। तब सभी देवताओं ने मिलकर विश्वकर्मा जी के सहयोग से भगवान विष्णु के धड़ में घोड़े का सिर जोड़ दिया और तभी से वह अवतार, हयग्रीव अवतार कहलाया जाने लगा।