विद्वानों और श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा हमेशा कहा जाता है की किसी भी चीज़ का चुनाव करने से पहले उसके बारे में कम से कम सौ बार अवश्य सोचें। चयन का महत्व बहुत अधिक होता है, इसका कारण यह है की इस एक निर्णय पर आपके भविष्य के लगभग सभी अनुभव निर्भर करते है।
आज हम आपको महाभारत से जुड़ी कुछ ऐसी कहानी बताने जा रहे है जो चयन के महत्व को भली-भांति दर्शाती है।
भगवान कृष्ण के बहुत बार समझाने के बाद भी दुर्योधन ने युद्ध की ज़िद नहीं छोड़ी जिसके बाद श्री- कृष्ण ने अर्जुन और दुर्योधन के सामने एक प्रस्ताव रखा और कहा-' एक तरफ तो मेरी विशाल, अस्त्र- शस्त्र से सुसज्जित नारायणी सेना है और दूसरी तरफ मैं अकेला बिना किसी शस्त्र के खड़ा हूं! अब ये तुम्हें चयन करना है की दोनों में से तुम किसका चुनाव करते हो।
तब अर्जुन ने अपनी सूझ-बूझ से श्रीकृष्ण का चुनाव किया तो उधर दुर्योधन ने आकार से प्रभावित होकर सेना का चयन किया। दुर्योधन द्वारा चयन किए गए विकल्प का परिणाम तो हम सभी जानते है। महाभारत के इस किस्से से हमें एक सीख यह मिलती है की चयन करते समय क्वांटिटी यानी मात्रा से ज्यादा क्वालिटी यानी गुणवत्ता का ध्यान रखना चाहिए।
महाभारत से जुड़ा एक और किस्सा इस प्रकार है - सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी अर्जुन का सामना करने की काबिलियत यदि कोई रखता था तो वो था सूर्यपुत्र कर्ण। कर्ण के पास एक ऐसी शक्ति थी जिससे वे आसानी से अर्जुन का वध कर सकता था, लेकिन दुर्योधन के दवाब में आकर कर्ण से इस शक्ति का उपयोग घटोत्कच पर किया जिसके बाद उसका वध हो गया।
जिस शक्ति का चुनाव उन्हें बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए करना चाहिए था, उचित चयन न होने के चलते वह यूँ ही बेकार चला गया। इसलिए यह हमेशा ध्यान रखें की किसी के दवाब में आकर कभी भी कोई चयन ना करें।
महाभारत के यह कुछ किस्से है जिनसे सबक लेकर हम आज यानी कलयुग में हो रही या आगे की जानें वाली गलतियों से बच सकते है। इसलिए आप भी चयन के महत्व को समझिए और सोच- समझ कर निर्णय लीजिये।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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