सनातन धर्म में प्रत्येक दिन किसी न किसी देवता को समर्पित है। जहां बुधवार भगवान गणेश को समर्पित है, उसी प्रकार गुरुवार का दिन भगवान विष्णु और नवग्रहों में से एक, बृहस्पति देव को समर्पित है। यहां हम बृहस्पति व्रत के दिन सुने जाने वाली बृहस्पति व्रत कथा के बारे में बताने जा रहे है-
गुरुवार का दिन विशेष रूप से बृहस्पति व्रत (Brihaspati Vrat) के लिए समर्पित होता है। इस दिन, श्रद्धालु पुरे विधि- विधान से केले के पेड़ की पूजा करते हैं और बृहस्पतिदेव को प्रसन्न करते है। हालांकि जातक की यह पूजा तभी सफल मानी जाती है, जब वह इस दिन पढ़े जाने वाली बृहस्पतिदेव की कथा (shri brihaspatidev ji vrat katha) का श्रवण करते है। ऐसे में आइए जानते है, शुभ फल प्रदान करने वाली गुरुवार की यह व्रत कथा-
भारतवर्ष में एक प्रतापी और दानी राजा राज्य करता था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था।
यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न ही गरीबों को दान देती, न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी दान देने से मना किया करती थी।
एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे, तो रानी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु वेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा माँगी रानी ने भिक्षा देने से इन्कार किया और कहा: हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूँ।
मेरा पति सारा धन लुटाते रहते हैं। मेरी इच्छा है कि हमारा धन नष्ट हो जाए फिर न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।
साधु ने कहा- देवी तुम तो बड़ी विचित्र हो। धन, सन्तान तो सभी चाहते हैं। पुत्र और लक्ष्मी तो पापी के घर भी होने चाहिए।
यदि तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखों को भोजन दो, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाओ, मुसाफिरों के लिए धर्मशालाएं खुलवाओ।
जो निर्धन अपनी कुंवारी कन्याओं का विवाह नहीं कर सकते उनका विवाह करा दो। ऐसे और कई काम हैं जिनके करने से तुम्हारा यश लोक-परलोक में फैलेगा।
परन्तु रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली महाराज आप मुझे कुछ न समझाएं। मैं ऐसा धन नहीं चाहती जो हर जगह बाँटती फिरूं।
साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तथास्तु! तुम ऐसा करना कि बृहस्पतिवार को घर लीपकर पीली मिट्टी से अपना सिर धोकर स्नान करना, भट्टी चढ़ाकर कपड़े धोना, ऐसा करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा।
इतना कहकर वह साधु महाराज वहाँ से आलोप हो गये।
साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे, कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई।
भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा।
तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूँ, क्योंकि यहाँ पर सभी लोग मुझे जानते हैं।
इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता। ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया। वहाँ वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता।
इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा। इधर, राजा के परदेश जाते ही रानी और दासी दुःखी रहने लगी।
एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा हे दासी! पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है।
वह बड़ी धनवान है। तू उसके पास जा और कुछ ले आ, ताकि थोड़ी-बहुत गुजर-बसर हो जाए। दासी रानी की बहिन के पास गई।
उस दिन गुरुवार था और रानी की बहिन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी।
दासी ने रानी की बहिन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया।
जब दासी को रानी की बहिन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुःखी हुई और उसे क्रोध भी आया। दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी। सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा।
उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहिन की दासी आई थी, परंतु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुःखी हुई होगी।
कथा सुनकर और पूजन समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी- हे बहन! मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी।
तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली। कहो दासी क्यों गई थी?
रानी बोली: बहन, तुमसे क्या छिपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था। ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई।
उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को विस्तार पूर्वक सुना दी।
रानी की बहिन बोली: देखो बहिन! भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं। देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो।
पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहिन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया। यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई।
दासी रानी से कहने लगी: हे रानी! जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत कर सकें।
तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा।
उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें।
इससे बृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं। व्रत और पूजन विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई।
सात दिन के बाद जब गुरुवार आया, तो रानी और दासी ने व्रत रखा। घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं। फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया।
अब पीला भोजन कहाँ से आए इस बात को लेकर दोनों बहुत दुःखी थे। चूंकि उन्होंने व्रत रखा था, इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे।
इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया।
उसके बाद वे सभी गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी। बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी।
तब दासी बोली: देखो रानी! तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब भगवान बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होता है।
रानी को समझाते हुए दासी कहती है कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है, इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए, और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए, जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पित्र प्रसन्न होंगे।
दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी, जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा।
जिस प्रकार रानी को दिया, उसी प्रकार सभी लोगों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त हो।
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण रहता था, वह बहुत निर्धन था। उसके कोई सन्तान नहीं थी। उसकी स्त्री बहुत मलीनता के साथ रहती थी। वह स्नान न करती, किसी देवता का पूजन न करती, इससे ब्राह्मण देव बड़े दुःखी रहते थे। बेचारे बहुत कुछ कहते थे, किन्तु उसका कुछ परिणाम न निकला। भगवान की कृपा से ब्राह्मण की स्त्री के कन्या रूपी रत्न पैदा हुआ।
कन्या बड़ी होने पर प्रातः स्नान करके विष्णु भगवान का जाप व बृहस्पतिवार का व्रत करने लगी। अपने पूजन-पाठ को समाप्त करके विद्यालय जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती। तब ये जौ स्वर्ण के जो जाते लौटते समय उनको बीन कर घर ले आती थी।
एक दिन वह बालिका सूप में उस सोने के जौ को फटककर साफ कर रही थी कि उसके पिता ने देख लिया और कहा - हे बेटी! सोने के जौ के लिए सोने का सूप होना चाहिए।
दूसरे दिन बृहस्पतिवार था इस कन्या ने व्रत रखा और बृहस्पतिदेव से प्रार्थना करके कहा- मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो। बृहस्पतिदेव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलाती हुई जाने लगी जब लौटकर जौ बीन रही थी तो बृहस्पतिदेव की कृपा से सोने का सूप मिला। उसे वह घर ले आई और उसमें जौ साफ करने लगी। परन्तु उसकी मां का वही ढंग रहा।
एक दिन की बात है कि वह कन्या सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। उस समय उस शहर का राजपुत्र वहां से होकर निकला। इस कन्या के रूप और कार्य को देखकर मोहित हो गया तथा अपने घर आकर भोजन तथा जल त्याग कर उदास होकर लेट गया।
राजा को इस बात का पता लगा तो अपने प्रधानमंत्री के साथ उसके पास गए और बोले- हे बेटा तुम्हें किस बात का कष्ट है? किसी ने अपमान किया है अथवा और कारण हो सो कहो मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता हो।
अपने पिता की राजकुमार ने बातें सुनी तो वह बोला- मुझे आपकी कृपा से किसी बात का दुःख नहीं है किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है परन्तु मैं उस लड़की से विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी।
यह सुनकर राजा आश्चर्य में पड़ गया और बोला- हे बेटा! इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ। मैं उसके साथ तेरा विवाह अवश्य ही करवा दूंगा। राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बतलाया।
तब मंत्री उस लड़की के घर गए और ब्राह्मण देवता को सभी हाल बतलाया। ब्राह्मण देवता राजकुमार के साथ अपनी कन्या का विवाह करने के लिए तैयार हो गए तथा विधि-विधान के अनुसार ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया।
कन्या के घर से जाते ही पहले की भांति उस ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी का निवास हो गया। अब भोजन के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिलता था। एक दिन दुःखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गए। बेटी ने पिता की दुःखी अवस्था को देखा और अपनी मां का हाल पूछा।
तब ब्राह्मण ने सभी हाल कहा। कन्या ने बहुत सा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया। इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत हुआ। कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया। ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के यहां गया और सारा हाल कहा तो कन्या बोली- हे पिताजी! आप माताजी को यहां लिवा लाओ।
मैं उसे विधि बता दूंगी जिससे गरीबी दूर हो जाए। वह ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर पहुंचे तो अपनी मां को समझाने लगी- हे मां तुम प्रातःकाल प्रथम स्नानादि करके विष्णु भगवान का पूजन करो तो सब दरिद्रता दूर हो जाएगी। परन्तु उसकी मांग ने एक भी बात नहीं मानी और प्रातःकाल उठकर अपनी पुत्री के बच्चों की जूठन को खा लिया।
इससे उसकी पुत्री को भी बहुत गुस्सा आया और एक रात को कोठरी से सभी सामान निकाल दिया और अपनी मां को उसमें बंद कर दिया। प्रातःकाल उसे निकाला तथा स्नानादि कराके पाठ करवाया तो उसकी मां की बुद्धि ठीक हो गई और फिर प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी।
इस व्रत के प्रभाव से उसके मां बाप बहुत ही धनवान और पुत्रवान हो गए और बृहस्पतिजी के प्रभाव से इस लोक के सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुए।
बृहस्पतिवार का व्रत और उसकी कथा सुनने से जीवन में अपार लाभ होते हैं। यह व्रत न केवल मनोकामनाओं को पूरा करता है, बल्कि समृद्धि और सुख-शांति को भी आकर्षित करता है। धन और संपत्ति की प्राप्ति के साथ-साथ संतानहीन लोगों को संतान का आशीर्वाद मिलता है। माना जाता है की विधि-विधान से व्रत (Brihaspativar Vrat Katha) रखने से न केवल परिवार में खुशहाली आती है, बल्कि विवाह में विलंब झेल रहे व्यक्तियों के लिए शादी के रास्ते भी खुल जाते हैं।
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