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रामायण से सीखे, सच्चे मित्र के 5 अनमोल गुण! | Friendship Day Special

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अगस्त माह में आने वाले पहले रविवार के दिन

रामायण से सीखे, सच्चे मित्र के 5 अनमोल गुण! | Friendship Day Special

जीवन के हर मार्ग पर व्यक्ति को कठनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में परिवार जनों के अलावा सच्चे मित्र ही होते है, जो ऐसी परिस्थितियों में कभी हमारा साथ नहीं छोड़ते है। इन सच्चे दोस्तों की पहचान ऐसी ही कठिन परिस्थितियों में की जाती है। यदि आप भी अब तक नहीं जान पाए है की आपके सच्चे मित्र कौन है, तो आज इस ब्लॉग में हम आपको रामायण में बताये गए 5 गुणों के बारे में बताने जा रहे है, जिनसे आप अपने सच्चे मित्रों के बारे में जान पाएंगे।

आइये जानते है, उन 5 गुणों के बारे में जिनका उल्लेख रामायण में किया गया है-


अनुचित कार्य करने से रोके


“जिन्ह के असी मति सहज ना आई।
ते सठ कत हठी करत मिताई॥
कुपथ निवारी सुपंथ चलावा।
गुण प्रगटे अव्गुनन्ही दुरावा॥“

रामायण के इस दोहे के अनुसार, व्यक्ति को अच्छा मित्र बनने के लिए समझदार होना बहुत ज़रूरी होता है। यदि व्यक्ति दिमाग से कमजोर या मुर्ख है, तो वह कभी किसी का अच्छा मित्र बनने के श्रेणी में नहीं आ सकता है। इसके पीछे का कारण यह बताया गया है की व्यक्ति अगर समझदार नहीं है तो वह अपने मित्र को कभी गलत या अनुचित कार्य करने से नहीं रोकेगा। इससे वे न तो कभी खुद सही मार्ग पर चलेंगे और न ही आपका मार्गदर्शन कर पाएंगे। एक सच्चा मित्र वही है, जो आपके अंदर से सभी गलत आदतों को निकाले और अच्छी आदतों को बढ़ावा दे।


परेशानियों में साथ न छोड़े


“देत लेत मन संक न धरई।
बल अनुमान सदा हित कराई॥
विपत्ति काल कर सतगुन नेहा।
श्रुति का संत मित्र गुण एहा॥“

हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक, रामचरितमानस में लिखी गई इस चौपाई के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति सभी सुख-सुविधाएं होने के बाद भी किसी के काम न आ सके तो वह कभी भी किसी का सच्चा दोस्त नहीं बन सकता है। एक सच्चा दोस्त वही है, जो विपरीत परिस्थितयों में आपका साथ दे और आपकी सहायता के लिएहमेशा हाथ बढ़ाए। व्यक्ति के समपन्न होने का कोई अभिप्राय नहीं है, यदि वे मित्र की सहायता न करें। माना जाता है, एक सच्चे मित्र की पहचानमुसीबत के समय में ही होती है, इसलिए सच्चा मित्र वही है जो परेशानियों में कभी साथ न छोड़े।


छल-कपटी न हो


“सेवक सठ, नृप कृपन, कुनारी, कपटी मित्र सुल सम चारी”

रामायण की यह अगली चोपाई बताती है की जैसे एक बेवकूफ सेवक, कृपण राजा और कुलच्छनी स्त्री हानिकारक साबित हो सकते है, वैसे ही एक कपट करने वाला,धोखेबाज मित्र किसी बड़े खतरे से कम नहीं होता है। चोपाई के अनुसार यह चारों प्रकार के व्यक्ति काटों के बराबर होते है, इसलिए हमेशा इन सब से उचित दुरी बना कर रखनी चाहिए। कपटी व्यक्ति कभी किसी से सगा व्यवहार नहीं कर सकते है और न ही ऐसे व्यक्ति कभी किसी के सच्चे मित्र बन सकते सकते है। इसलिए छल-कपटी व्यक्तियों से हमेशा हमें दूरी बनानी चाहिए और हमेशा ईमानदार और सच्चे व्यक्तियों का ही दोस्त के रूप में चयन करना चाहिए।


दो तरीके के व्यवहार न करें


“आगे कह मृदु वचन बनाई।
पाछे अनहित मन कुटिलाई॥
जाकर चित अहि गति सम भाई।
अस कुमित्र परिहरेहीं भलाई॥“

रामचरितमानस की इस चौपाई का अर्थ यह है की ऐसे मित्र का साथ तुरंत प्रभाव से छोड़ देना चाहिए जो सामने से कुछ और होते है और आपके पीठ पीछे कुछ और। हमारी ज़िन्दगी में एक सच्चा मित्र वही है, जो हमसे एक समान व्यवहार करें, यदि वे हमसे नाराज है तो वैसा ही रहे और यदि प्रसन्न है तो हमें वैसा ही दिखाएं। जो व्यक्ति अपने ही मित्र के लिए बुरे या नकारात्मक विचार रखता है, वह कभी भी मित्र कहलाने के लायक नहीं होता है। इसलिए अगर आपके आस-पास भी ऐसे मित्र है, जो आपके साथ दो तरह के व्यवहार करें तो वे कभी आपके सच्चे मित्र नहीं बन सकते है।


आपके दुःख को समझे


जे ना मित्र दुःख होहिं।
बिलोकत पातक भारी॥
निज दुःख गिरी संक राज करी जाना।
मित्रक दुःख राज मेरु समाना॥

इस चौपाई केअनुसार एक सच्चे मित्र का लक्षण यह भी है की वह अपने मित्र के कष्ट को स्वयं का ही कष्ट समझे। चौपाई में कहा गया हैजो व्यक्ति अपने दोस्त के दुःख को अपना दुख न समझे तो ऐसे लोगों को तो देखने भर से ही पाप लगता है। इस चौपाई से यह सीख मिलती है की ऐसे मित्रों का साथ जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी छोड़ देना चाहिए। इसके साथ ही चौपाई में यह भी बताया गया है की सच्चा मित्र वही है, जो अपने विशाल दुख को भी धूल की तरह समझते है और अपने मित्र के धूल के बराबर दुःख को भी किसी पहाड़ की तरह मानते है।

यदि आपके दोस्तों में भी आपको यह सारे गुण मिलते है, तो वही आपके सच्चे दोस्त है। यह ऐसे दोस्त साबित होते है, जो भविष्य में किसी भी प्रकार की परिस्थति में आपका साथ कभी भी नहीं छोड़ेंगे।

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