हिन्दू धर्म में नवरात्रि का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि के दौरान भक्त गण श्रद्धाभाव से माता रानी की पूजा-अर्चना करते है। इतना ही नहीं बहुत से लोग तो 9 दिनों तक व्रत रखते है और अष्ठमी या नवमी के दिन कन्या पूजन कर उन्हें भोजन करवाते है। नवरात्रि के नौ दिन मां आदिशक्ति की नौ स्वरूपों का समर्पित होते है।
यह तो हम सभी जानते है की नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन क्या आप मां दुर्गा के इन सभी स्वरूपों के बारे में जानते है, यदि नहीं तो आज के इस ब्लॉग में हम आपको मां दुर्गा के इन्हीं नौ रूपों के 9 स्वरूपों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है। तो आइये जानते है-
नवरात्रि स्थापना के दिन मां दुर्गा के पहले स्वरुप मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। शैल का शाब्दिक अर्थ है- पर्वत या शिखर। हिमालय की बेटी कहलाए जाने वाली मां शैलपुत्री को पार्वती और हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री के स्वरूप की बात की जाए, तो उनके एक हाथ त्रिशूल तो दूसरे हाथ में कमल का फूल दिखाई पड़ता है, जो की अपने वाहन बैल (वृषभ) पर विरजामन है।
ब्रह्मचारिणी, मां का दूसरा स्वरुप है। धर्म शास्त्रों में ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप या तपस्या का आचरण करने वाला बताया गया है। जैसे मां का नाम है, उसी प्रकार इनका स्वरुप भी एक तपस्विनी की भांति ही दर्शाया गया है। मां ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में कमंडल, तो दूसरे हाथ में जप माला है। ऐसा माना जाता है की मां के इस स्वरूप ने भोलेनाथ की पति के रूप में पाने के लिए कई सालों तक कठिन तप किया था, जिसके बाद उनकी यह तपस्या सफल हुई थी। तप,वैराग्य, त्याग आदि के लिए मां ब्रह्मचारिणी का पूजन बहुत श्रेष्ट्र बताया जाता है।
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां के स्वरुप में अर्ध चंद्र के आकर का घंटा विराजमान है, जिस कारण उनको चंद्रघंटा नाम से जाना जाता है। मां चंद्रघंटा का वाहन शेर है। माना जाता है, मां चंद्रघंटा ने ही दानव राज महिषासुर का वध किया था। वीरता और निर्भयता की प्रतीक मां चंद्रघंटा को सौम्यता के लिए जाना जाता है। मां के दस हस्र अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र से विभूषित है।
मां कूष्मांडा मां दुर्गा का चौथा स्वरुप है। मां कूष्मांडा का अर्थ है, वह देवी जिन्होनें अपनी पुष्प के समान मुस्कान से समस्त ब्रह्मांड को अपने अंदर समाए हुए है। आठ भुजाओं से सुशोभित देवी कूष्मांडा के हाथ में अमृत कलश विराजमान है। इस देवी की पूजा करने से धन, ऐश्वर्या और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम: वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
मां दुर्गा का पांचवा रूप, स्कंदमाता का है। छह मुखों वाले पुत्र स्कंद की मां होने के कारण देवी के इस स्वरूप का कारण स्कंदमाता पड़ा। मां स्कंदमाता के चार भुजाएं है। एक भुजा में उनके पुत्र स्कंद है, दूसरे में कमल का पुष्प है। देवी के कलम के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्मासना के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।
मां दुर्गा के छठे रूप में मां कात्यायनी को जाना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार देवी कात्यायनी की उत्पत्ति परमेश्वर के स्वाभाविक क्रोध से हुई थी। इसके अलावा बताया तो यह भी जाता है की महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ा। चार भजों वाली मां कात्यायनी की चार भुजाएं है,जिनका वाहन सिंह (शेर) है।
शारदीय नवरात्री का सातवां दिन मां कालरात्रि को समर्पित है। वीरता और साहस का प्रतीक माने जाने वाली, देवी कालरात्रि की पूजा करने से दुष्टों का सर्वनाश होता है। मां कालरात्रि सदा ही अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करती है, जिस कारण इन्हें ‘शुभंकारी’ के नाम से भी जानी जाती है। देवी कालरात्रि के चार भुजाएं व तीन नेत्र है।
नवरात्रि के आठवे दिन देवी महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है। सौम्यता की प्रतीक मां महागौरी का रूप बेहद सरल और मनमोहक है। देवी महागौरी का स्वरूप सफ़ेद वर्ण को दर्शाता है। इनके समस्त आभूषण एवं वस्त्र भी सफ़ेद है। चार भुजाओं वाली देवी महागौरी की सवारी बैल है।
मां दुर्गा का नवां स्वरुप सिद्धिदात्री का है। मां सिद्धिदात्री का स्वरूप में वह कमल के फूल पर विराजमान है, जिनकी चार भुजाएं है। इस देवी की आठ सिद्धियां इस प्रकार है- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। माना जाता है की जो भी जातक मां सिद्धिदात्री का मन से पूजन करता है, वह यह सभी सिद्धियां प्राप्त कर सकता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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