धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हवन या यज्ञ का बहुत अधिक महत्व बताया गया है। हवन करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक सुख के साथ ही भौतिक सुखों की भी प्राप्ति होती है। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भी यज्ञ का कई बार उल्लेख किया गया है।
शास्त्रों में हवन को श्रेष्ठ कर्मों में से एक बताया गया है। हवन के माध्यम से ना सिर्फ सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है बल्कि मनवांछित फल की भी प्राप्ति होती है। आपने कई सारे हवन या यज्ञ किए होंगे या हवन संपन्न होते हुए भी देखे होंगे लेकिन इस दौरान क्या आपके मन में कभी ख्याल आया की हवन में आहुति देते हुए ‘स्वाहा’ क्यों कहा जाता है।
हवन कुंड में आहुति देते समय बहुत सारी बातों का ध्यान रखना पड़ता है और उस समय स्वाहा का उच्चारण करना बहुत ही अहम माना जाता है। आइये जानते है की है क्या है इसके पीछे का कारण।
अग्निदेव में जो भस्म करने की तेज रूप शक्ति है, वह देवी स्वाहा का ही सूक्ष्मरूप है। हवन में आहुति में दिए गए वस्तुओं को परिपाक (भस्म) कर देवी स्वाहा ही उसे देवताओं को भोजन के रूप में पहुंचाती हैं, इसलिए उन्हें ‘परिपाककरी’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।
जब बह्माण्ड की शुरुआत हुई उस समय ब्राह्मण हवन में जो भी सामग्री अर्पित करते थे, वे देवताओं तक पहुंच नहीं पा रही थी। इस बात से परेशान होकर देवतागण ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे अपने भोजन प्राप्ति के लिए प्रार्थना की।
देवतागणों का यह मत सुनकर ब्रह्माजी को श्रीकृष्ण का ख्याल आया। जिसके बाद श्रीकृष्ण के कहने पर ब्रह्माजी ने देवी मूलप्रकृति की आराधना की। ब्रह्माजी से प्रसन्न होकर देवी मूलप्रकृति से देवी स्वाहा उत्पन्न हुई और उनसे वरदान मांगने को कहा।
तब ब्रह्माजी बोले - देवी आप कृपा करके अग्निदेव की दाहिकाशक्ति बनें।आपकी मदद के बिना अग्नि आहुतियों को भस्म करने में समर्थ नहीं है। कृपाया आप अग्निदेव को अपने पति के रूप में स्वीकारकर इस ब्रह्माण्ड पर उपकार करें।
ब्रह्माजी जी के यह वचन सुनकर श्री कृष्ण की भक्ति में लीन देवी स्वाहा दुखी मन से बोली – परब्रह्म श्रीकृष्ण के अलावा संसार में सब भ्रम है। अपनी बात ब्रह्मा जी समक्ष रखने के बाद वे कृष्ण को प्राप्त करने के लिए वन में तपस्या के लिए निकल गयी और कई सालों तक एक पैर पर खड़े होकर तप किया।
उनके तप से खुश होकर भगवान श्री कृष्णा प्रकट हुए और उन्होंने देवी स्वाहा ने कहा - तुम वाराहकल्प में मेरी संगिनी बनोगी और राजा नग्नजित् की पुत्री के रूप में तुम्हारा जन्म होगा। तुम्हे सब नाग्नजिती के नाम से जानेंगे। इस समय तुम दाहिकाशक्ति से परिपूर्ण होकर अग्निदेव की गृह स्वामिनी बनो और देवताओं को आहार उपलब्ध करवाकर उन्हें संतुष्ट करो।
मेरे इस वर से तुम मंत्रों के एक अंश के रूप में पूजी जाओगी। जो भी व्यक्ति हवन के समय मंत्र के अंत में तुम्हारा नाम लेकर देवताओं को हवं सामग्री अर्पण करेगा, वह उसी समय देवताओं को उपलब्ध हो जाएगा।
भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार देवी स्वाहा का विवाह अग्निदेव के साथ समपन्न हुआ। इसके बाद से ही ऋषियों, मुनियों और ब्राह्मणों द्वारा हवन कुंड में अर्पित की गई सामग्री देवताओं को आहार के रूप में उपलब्ध होने लग गयी।
जो व्यक्ति स्वाहा के साथ मंत्र का उच्चारण करता है, उसे केवल मंत्र पढ़ने से ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है। स्वाहा के बिना मंत्रोच्चारण से किया हुआ हवन भी फलदायक नहीं होता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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