भगवान शिव के नटराज रूप से यह दर्शाया जाता है की ब्राह्माण में जितनी भी गति के स्त्रोत हैं वे महादेव शिव ही हैं जिसका प्रतिनिधित्व लपटों के मेहराब द्वारा किया जाता है। कहा जाता है की भगवान शिव ने अपना यह रूप भारत के चिदंबरम में दिखाया था जिसे हम हिन्दू ब्राह्माण का केंद्र भी कहते हैं। भगवान शिव का नटराज पोज़ जो हम मूर्ति में देखते हैं वे 5 गतिविधियां दर्शाता है - सृजन, सुरक्षा, विनाश, अवतार, और मुक्ति।
ज़्यादातर लोगों को यह नहीं पता होगा की शिव के तांडव के भी 2 रूप हैं। पहला जो शिवजी के क्रोध को दर्शाता है और दूसरा आनंद प्रदान करने वाला। जिस रूप में महादेव क्रोध में तांडव कर रहे है वो शिव का रौद्र रूप कहलाता है वहीं जब वे आनंद से नृत्य करते हैं उस रूप को नटराज रूप कहते हैं। नटराज का अर्थ है नट अर्थार्थ कला और राज अर्थार्थ राजा जो मिलकर बनता है कला का राजा। सिद्ध विद्वान कहते हैं की शिव के आनंद तांडव से सृष्टि का अस्तित्व है तथा उनके रौद्र तांडव से सृष्टि का विनाश।
आइये जानते हैं की शिव का नटराज रूप क्या दर्शाता है।
शिव के नटराज रूप में उनके ऊपरी दाहिने हाथ में एक छोटा सा डमरू दर्शाया गया है जिसकी ध्वनि सृष्टि के उत्पत्ति का प्रतीक है।
शिव के ऊपरी बाएं हाथ में अग्नि दर्शायी गई है जो विनाश का प्रतीक है और जिसमें से एक नयी दुनिया की उत्पत्ति होती है।
शिव के नटराज में दूसरा दाहिना हाथ निडरता को दर्शाता है जो भय से मुक्ति देता है। इसी के साथ यह अज्ञान और बुराई दोनों से सुरक्षा प्रदान करता है।
हिन्दुओं में बड़ों के पैर छूना मोक्ष प्राप्त करने का रास्ता बताया जाता है। शिव का नटराज रूप भी इसे दर्शाता है। शिव का दूसरा बायां हाथ उनके उठे हुए पैर की और इशारा करता है जो उत्थान और मोक्ष का प्रतीक है।
कहते हैं अज्ञान को सम्पूर्ण रूप से मिटाया नहीं जा सकता। शिव जी नटराज रूप में जिस बौने पर नृत्य कर रहे हैं वो यही दर्शाता है। दरअसल, बौना एक राक्षस अप्सरा है जो अज्ञान को दर्शाती है। शिव जी का उस पर नृत्य करना, शिव का अज्ञान पर जीत का प्रतीक दर्शाता है।
नटराज की आसपास की लपटें ब्राह्मण को दर्शाती हैं।
शिव की कमर के चारों और जो नाग है उसे कुंडलिनी है और वह सभी वास्तु के भीतर जो दिव्य शक्ति है उसे दर्शाता है। शिव का नृत्य इतना शक्तिशाली होता है की उनके बाल जो की पहले बंधे हुए होते हैं वे ढीले होकर चरों और उड़ने लगते हैं।
शिव जी की जटाओं में माँ गंगा दर्शायी गयी है। कहते हैं की जब गंगा नदी रूप में पृथ्वी पर गिरने वाली थी तो उनका बल इतना होता जिससे पृथ्वी पर बहुत नुकसान होता। इस नुक्सान को बचाने से महादेव ने गंगा को अपनी जटाओं के बीच ले लिया और अब हम यह कहते हैं की गंगा शिव जी की जटाओं से बहती है।
शिव का नटराज रूप में एक ऐसा चेहरा दर्शाया गया है जो बिना किसी भावना का है। यह संतुलन और शांत मन को दर्शाता है।
भगवान शिव को बाघ की खाल पहने दर्शाया गया है। वह बाघ की खाल अहंकार का प्रतीक है। यह इस बात को दर्शाता है की अहंकार नहीं करना चाहिए।
चन्द्रमा आकाशीय प्रकाश का प्रतिनिधित्व करता है। यह कभी ना खत्म होने वाले प्रकाश को दर्शाता है।
यह था शिव के नटराज रूप का वर्णन।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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