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समुद्र मे फेंक दिया गया था बूढ़े व्‍यक्ति को, माथे पर राम नाम लिखते ही हुआ चमत्‍कार!

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भगवान हमेशा अपने भक्तों का प्यार चाहते हैं और उनकी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। श्री राम के परम भक्त श्री हनुमान के अलावा एक और भक्त हैं जो की हैं लंकापती रावण के भाई विभीषण। श्री राम की विभीषण पर विशेष कृपा थी।

समुद्र मे फेंक दिया गया था बूढ़े व्‍यक्ति को, माथे पर राम नाम लिखते ही हुआ चमत्‍कार!

पुलस्त्य ऋषि के पुत्र थे विश्रवा। विश्रवा ने एक असुरी कन्या से विवाह किया था। असुरी कन्या से तीन पुत्रों ने जन्म लिया, रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण। उन तीनों ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और अपने - अपने वर मांगे। रावण ने तीनों लोकों पर विजय का वर माँगा, कुम्भकर्ण ने वर्ष में छह माह की नींद का वर माँगा, वहीँ विभीषण ने भगवत भक्ति का वर मांगी। रावण ने जो वर माँगा उसकी वजह से रावण ने लंका के राजा कुबेर को निकाल कर असुरों की लंका बनाई जहाँ तीनों भाई रहने लगे।


श्री राम ने दिया चिरंजीवी रहने का आशीर्वाद

रावण ने जब सीता माता का हरण किया तो वह उन्हें समुद्र की दूसरी ओर लंका ले गया। उसके बाद जब हनुमान जी को यह ज्ञात हुआ की सीता माँ लंका हैं तब वे सोने की नगरी जा पहुंचे। वहां पहुँच कर उनकी भेंट विभीषण से हुई। हनुमान - रावण के वार्तालाप के बाद हनुमान जी ने सम्पूर्ण लंका को जला दिया और लंका से लौट आये। इस सब के बाद जब विभीषण रावण को समझने गए की उन्हें सीता माँ को छोड़ देना चाहिए तब विभीषण को देशनिकाला दे दिया गया। वे तब श्री राम की शरण में जा पहुंचे। विभीषण को देख श्री राम के सहयोगियों ने सोचा की यह ज़रूर रावण का कोई षड़यंत्र है। परंतु जो श्री राम के पास शरण लेने आया है तो वे उसे कैसे जाने दे सकते हैं।

युद्ध में रावण का सम्पूर्ण परिवार मारा गया और श्री राम ने विभीषण को लंका का राजा घोषित किया। सबसे पहला काम जो विभीषण ने किया वह यह की सीता माँ और श्री राम को सम्मानपूर्वक अपने पुष्पक विमान में अवधपुरी स्वयं छड़ने आये। तब प्रभु ने उनका यथोचित सत्कार कर चिरंजीवी रहने का आशीर्वाद दिया।


राम नाम ने लगाया समुद्र पार

कहते हैं एक बार समुद्र में एक जहाज फंस गया। काफी कोशिशों के बाद भी आगे न बढ़ने पर नाविक ने कहा कि समुद्र बलि चाहता है। तो सभी ने जहाज में बैठे एक दुर्बल व्यक्ति को बहा दिया। वह मरा नहीं बल्कि समुद्र की तरंगों में बहते हुए लंका जा पहुंचा। राक्षस उसे लेकर विभीषण के पास पहुंचे तो विभीषण जी उसे देख कर रोने लगे कि श्रीराम इसी आकार के थे, बड़े भाग्य से उनके दर्शन हुए हैं। विभीषण ने उस बुजुर्ग व्‍यक्ति का सम्मान करके बहुत से उपहार दिए पर वह व्यक्ति और कमजोर होता गया। विभीषण जी ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया प्रभु कृपा करिए। इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि मुझे तो समुद्र के उस पार पहुंचा दीजिए। आपका उपकार होगा। विभीषण जी उसे समुद्र तट तक लाए और रत्न आभूषण आदि देते हुए उसके सिर पर श्रीराम का नाम लिखते हुए कहा कि यही राम नाम तुम्हें समुद्र के पार पहुंचाएगा।

वह व्यक्ति विश्वास कर राम नाम लेते हुए वहीं बैठ गया। संयोगवश वही जहाज लौटकर आया जिसने उसे गिराया था। जहाज में सवार लोगों ने उसे पहचान लिया तो उसने पूरा किस्सा बताया। लोगों ने अनुनय विनय करके उस व्यक्ति को जहाज में बैठा लिया और जब नाविकों ने उसके रत्न आभूषण छीनना चाहा तो वह समुद्र में कूद पड़ा लेकिन इसके बाद जो चमत्‍कार हुआ, उसे देखकर सब हैरान रह गए। वह व्‍यक्ति जमीन की तरह चलते हुए समुद्र पार करने लगा। समुद्र का जल तो उसके पैरों को छू भी नहीं रहा था। पूछने पर उसने विभीषण जी के राम नाम मंत्र की महिमा बताई। तो सारे लोग राम नाम का सुमिरन करने लगे।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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