हिन्दू धर्म में मार्गशीर्ष महीने का बहुत अधिक महत्व बताया जाता है। इस माह में बहुत सारे व्रत एवं त्यौहार मनाएं जाते है। इन्हीं में से एक त्यौहार है, दत्तात्रेय जयंती। भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु व महेश का अवतार माना गया है। भगवान दत्तात्रेय का जन्म अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, इसलिए हर साल इस तिथि को उनकी जयंती का उत्सव मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय बहुत बड़े विद्वान कहलाए जाते थे। इसके पीछे का कारण यह है की उन्होंने एक दो नहीं, बल्कि 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। तीन सिर और छह भुजाओं वाले भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेवों का अंश अवतार माना गया है। इस दिन बहुत से व्रत आदि रख भगवान का पूजन करते, तो आइये जानते है साल 2022 में पर्व किस दिन मनाया जाएगा और इस दिन का क्या महत्व है ? इसके साथ ही इस पोस्ट के अंत में हम आपको इस दिन संपन्न की जाने वाली पूजन विधि के बारे में भी बताने जा रहे है-
इस साल 2022 में दत्तात्रेय जयंती का शुभ समय व तिथि इस प्रकार है-
दत्तात्रेय जयंती तिथि | बुधवार, दिसम्बर 7, 2022 |
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ | समय 07 दिसंबर 2022, सुबह 08 बजकर 01 मिनट से |
पूर्णिमा तिथि समापन | समय 08 दिसंबर 2022, सुबह 09 बजकर 37 मिनट तक |
• दत्तात्रेय जयंती अवसर पर भगवान दत्तात्रेय के बाल स्वरुप की पूजा की जाती है।
• गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
• इस दिन दक्षिण भारत के दत्तात्रेय मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है।
• इस पर्व पर विधि-विधान से भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
• ऐसा माना जाता है, भगवान दत्तात्रेय के तीन सिर, सत्त्व, रजस और तमस गुणों का प्रतिनिधित्व करते है।
प्राचीन काल की बात है। देवी अनसूया अपनी स्वामी ऋषि अत्रि के साथ रहा करती थी। वे बहुत ही सदाचारी और पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली स्त्री थी। उन्होंने त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के समान पुत्र प्राप्त करने के लिए घोर तप (तपस्या) की थी। यह देखकर त्रिदेव की पत्नियों, सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती
जी को अनसूया से ईर्ष्या होने लगी और उन्होंने तीनों देव से उसकी पतिव्रता होने की परीक्षा लेने को कहा।
तदनुसार, तीनों देवता साधुओं के वेश में देवी अनसूया के पास आए और उनसे इस तरह से भिक्षा मांगी, जिससे उनके गुणों की परीक्षा हो सके। उनके वचनों को सुन कर देवी अनसूया चिंतित हो गई, लेकिन जल्द ही शांत हो गई। उसने एक मंत्र बोला और तीनों ऋषियों पर जल छिड़का। जल छिड़कने के कुछ समय बाद ही उन्हें यह पता चल गया था की यह कोई साधारण साधु नहीं है बल्कि स्वयं त्रिदेव है। तब देवी अनसूया ने उन तीनो को शिशुओं के रूप में बदल दिया और फिर उन्हें स्तनपान कराया।
जब ऋषिअत्रि अपने आश्रम में लौटे, तो अनसूया ने उन्हें पूरा वृतांत सुनाया, जिसे उन्होंने अपनी शक्तियों के माध्यम से पहले ही देख लिया था। उन्होंने तीनों शिशुओं को गले लगाया और उन्हें तीन सिर और छह भुजाओं वाले एक ही बच्चे में बदल दिया।
यह देखकर तीनों देवियां अनसूया के पास गई और उनसे क्षमा मांगते हुए अपने पतियों को वापस लौटाने के लिए प्रार्थना करने लगी। अनसूया ने उनकी याचना को स्वीकार कर लिया। तब त्रिदेव अपने प्राकृतिक रूप में, अत्रि और अनसूया के सामने प्रकट हुए और उन्हें एक पुत्र, दत्तात्रेय के साथ आशीर्वाद दिया। इस प्रकार दत्तात्रेय ऋषि अत्रि और माता अनसूया के पुत्र के रूप में विख्यात हुए।
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