हरेला एक हिन्दू पर्व है, जो हर साल 16 जुलाई को उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मुख्य रूप से मनाया जाता है। यह त्यौहार शांति, समृद्धि, हरियाली और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक माना जाता है। हरेला वर्षा ऋतु (मानसून) की शुरुआत को चिन्हित करता है। किसानों को मुख्य रूप से इस पर्व का का इंतेज़ार होता है क्योंकि यह उनके खेतों में बुआई चक्र की शुरुआत है। कुमाऊँ क्षेत्र में लोग हरियाली को समृद्धि से जोड़ते है। इसलिए, हरेला पर लोगों को पृथ्वी पर वनस्पति बनाए रखने और वृक्षारोपण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
साल 2023 में सावन के माह की शुरुआत, 4 जुलाई 2023 से हो गयी है। लेकिन भारत के ऐसे बहुत से विभिन्न राज्य है, जहां अलग-अलग तिथियों पर सावन का यह माह प्रारंभ होता है। ऐसे मे, भारत के उत्तर भारत में स्थित देवभूमि उत्तराखंड में सावन का माह, हरेला पर्व के साथ शुरूहोता है। उत्तराखंड लोकपर्वों में से एक, हरेला (Harela Festival 2023) का यह पर्व कर्क संक्रांति के दिन मनाया जाता है। यह पर्व सावन के अलावा, दो अन्य हिन्दू मास चैत्र मास, दूसरा आश्विन मास में भी मनाया जाता है।
आइए जानते है, हरेला पर्व की तिथि कब है, इसका महत्व क्या है और इस पर्व के दिन क्या खास होता है-
इस साल उत्तराखंड का यह पर्व रविवार, 16 जुलाई 2023 (Harela Festival 2023 Date) के दिन मनाया जाएगा। हरेला (Harela Festival 2023) के दिन खासतौर पर, माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा की जाती है। उत्तराखंड में अनेक तीर्थ स्थल शामिल है, जिस कारण से इस स्थान को देवभूमि या शिव भूमि भी कहा जाता है।
हरेला का यह पर्व खासतौर पर उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र और हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की आराधना की जाती है।
हरेला का दिन वर्षा ऋतु यानि मानसून की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन किसान अच्छी फसल और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते है। इसके साथ ही कृषि के क्षेत्र से जुड़े लोग इस दिन को अत्यधिक शुभ मानते हैं, क्योंकि यह उनके खेतों में बुवाई चक्र की शुरुआत का प्रतीक है।
हरेला का शाब्दिक अर्थ है - "हरियाली का दिन"। यह दिन बरसात के मौसम और उसके द्वारा लाई गई, नई हरियाली फसल का प्रतिनिधित्व करता है। यह हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, श्रावण माह में मनाया जाता है। हरेला के पर्व को विभिन्न नामों से जाना जाता है। गढ़वाल, उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में इसे मोल-संक्रांति या राई-सागरन के रूप में मनाया जाता है। इसे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, शिमला और सिरमौर क्षेत्रों में हरियाली और जुब्बल और किन्नौर में दखरैन के नाम से जाना जाता है।
हरेला का यह पर्व हरियाली का पर्व है। इस दिन पौधे लगाने का विशेष महत्व बताया जाता है। इसके साथ ही ऐसा करने से आप पर्यावरण की रक्षा में भी योगदान दे सकते है।
हरेला न सिर्फ बड़ों के लिए बल्कि बच्चों के लिए भी खुशी का दिन है। हरेला मनाने के लिए अपने बच्चों, भतीजियों या भतीजों को कुछ पैसे दे। ऐसा करने से बच्चे न सिर्फ खुश होंगे बल्कि आपके सुखी जीवन की भी कामना करेंगे।
हरेला के दिन उत्तराखंड के स्थानीय लोगों के द्वारा निम्न प्रकार से लोकगीत गाया जाता है-
हरेला के समय एक और खास तरह की परंपरा निभाई जाती है। इस परंपरा के अनुसार, परिवार का मुखिया त्यौहार से 10 दिन पहले पत्तों या पहाड़ी बांस की बनी टोकरियों में पांच से सात प्रकार के बीज बोता है। इस सभी बीजों को बोने के बाद, वह उन्हें प्रतिदिन पानी देता है।हरेला के दिन इन बोए गए बीजों में अंकुर दिखाई देने लगते है।
इस प्रकार से यह कुछ रस्में है, जो मुख्य रूप से हरेला (Harela 2023) के दिन निभाई जाती है।
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