समझनी है जिंदगी तो पीछे देखो, जीनी है जिंदगी तो आगे देखो…।

प्रेरक कहानियाँ

पारस पत्थर की खोज में निकले एक व्यक्ति की प्रेरक कहानी

किसी ने कहा है की किसी भी कार्य को करने के पीछे का उद्देशय हमें 'जीतने' और 'कामयाब' होने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे में किसी के भी कार्य को शुरू करने से पहले उसे शुरू करने का उद्देश्य तय करना बहुत ज़रूरी होता है।

पारस पत्थर की खोज में निकले एक व्यक्ति की प्रेरक कहानी

किसी ने कहा है की किसी भी कार्य को करने के पीछे का उद्देशय हमें 'जीतने' और 'कामयाब' होने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे में किसी के भी कार्य को शुरू करने से पहले उसे शुरू करने का उद्देश्य तय करना बहुत ज़रूरी होता है।

आज की यह प्रेरक कहानी उद्देश्य के महत्व को दर्शाती है:

एक गांव में एक व्यक्ति रहता था, जिसे पारस पत्थर से बहुत लगाव था। एक दिन वह पारस पत्थर की खोज में निकल गया। उस व्यक्ति को रास्ते में एक साधु मिले। वह साधु बड़े विद्वान मालूम पड़ रहे है। व्यक्ति ने साधु से पूछा- मुनिवर! मैं पारस पत्थर की खोज में निकला हूँ, क्या आप मुझे बता सकते है की यह मुझे यह कहा मिल सकता है?

साधु ने कहा- आप दक्षिण दिशा की ओर जाइए वहां जाने पर आपको एक तालाब मिलेगा, उस तालाब के तट पर पत्थरों का ढेर होगा, और उसी ढेर में आपको पारस पत्थर मिल जाएगा।

साधु की बात सुनकर व्यक्ति ने आश्चर्य से पूछा की इतने सारे पत्थरो में से पारस पत्थर की पहचान भला में कैसे कर पाऊंगा? साधु ने व्यक्ति को उत्तर देते हुए कहा-

पारस का पत्थर और पत्थरो की तुलना में कुछ अधिक गर्म होता है। उस व्यक्ति ने साधु को धन्यवाद कहा और बोला - मैं अब पत्थर ढूंढ लूंगा। इतना कहते ही वह व्यक्ति वहां से चला गया।

वह व्यक्ति प्रतिदिन तालाब के किनारे जाता और वहां पड़े एक एक पत्थर को अपने गाल से छू कर महसूस करता की यह पत्थर गर्म है या नहीं । यदि पत्थर ठंडा होता तो वह उसे तालाब में फेंक देता था। देखते ही देखते इसी तरह हफ्ते गुज़रते गए, साल गुज़रते गए लेकिन व्यक्ति के हाथ वह पारस पत्थर नहीं लग पाया। प्रतिदिन उसका यहीं काम रहता घर से आना, तालाब किनारे बैठना और पत्थरों के ढेर से पत्थर उठाकर उसे तालाब में फेंक देना।

एक दिन उसे पत्थरों के ढेर में वाकई पारस का पत्थर मिल जाता है। वह पत्थर उठाता है, उसे गाल से छुआता है तो इसबार पत्थर उसे गर्म लगता है, लेकिन इस बार भी वह हमेशा की तरह उसे पानी में फेंक देता है। कुछ समय उसे अपनी गलती का अहसास होता है और वह पछताता है की जिस काम के लिए उसने इतने साल मेहनत की उसने उसी पर पानी फेर दिया।

उस व्यक्ति को आने आप पर बहुत गुस्सा आया, वह बार-बार खुदको कोसता रहा की यह उसने क्या किया? जब उसे कुछ समाज नहीं आया तो वह वापस साधु के पास गया उससे कहा की मुझे पारस पत्थर मिल गया था लेकिन मैंने गलती से उसे भी तालाब में फेंक दिया।

तब साधु ने उस व्यक्ति से कहा कि केवल पारस पत्थर को खोजना नहीं, उसको प्राप्त करना तुम्हारा उद्देश्य था, और उसे पाने के लिए तुमने बहुत प्रयास भी किए। इस बीच तुम्हे कार्य तो याद रहा लेकिन उसका उद्देश्य तुम भूल गए। तुम्हारे अपने उद्देश्य से ध्यान भटकाने की वजह से ही ऐसा हुआ है। तुमने तालाब के किनारे बैठकर पत्थर फेंकने को ही अपना उद्देश्य समझा।

उस व्यक्ति की तरह हम भी अक्सर जोश के साथ किसी कार्य को शुरू तो कर देते है लेकिन जैस -जैसे समय बीतता है इस उस काम को शुरू करने के पीछे का उद्देश्य ही भूल जाते है।इसलिए ज़िन्दगी में किसी भी काम को करते समय फोकस्ड रहना बहुत जरुरी है। आप जो भी काम करें उसका उद्देश्य हमेशा ध्यान रखें।

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