उत्तर भारत के महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक अहोई अष्टमी का यह व्रत ज्यादातर महिलाओं द्वारा अपनी संतान के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की भलाई के लिए एक दिन का उपवास रखती है। करवा चौथ से ठीक चार दिन बाद अष्ठमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। अहोई अष्टमी 2022 (ahoi ashtami 2022) व्रत कथा इस प्रकार है-
एक बार की बात है। एक घने जंगल में साहूकार अपनी पत्नी और सात पुत्रों के साथ रहता था। कार्तिक मास में दीपावली से कुछ दिन पहले साहूकार की पत्नी ने घर को सजाने और मरम्मत करने का सोचा। इसके लिए वह जंगल से थोड़ी मिट्टी लेने के लिए गयी। जंगल में मिट्टी खोदते समय उसने गलती से एक शेर के शावक पर कुल्हाड़ी से हमला कर दिया जिस कारण वह मर गया। एक मासूम शावक की गलती से हत्या करने के कारण वह बहुत दुखी हो गयी और शोकाकुल मन से वह अपने घर को लौट गई।
इस घटना के एक साल के भीतर एक के बाद एक साहूकार के सातों पुत्रों की अकस्मात् मृत्युं हो गई। अपनी सभी पुत्रों की मृत्युं के बाद वह स्त्री अत्यंत दुखी रहने लगी। ग्रामीणों के पूछने पर उसने बताया की उसने एक बार गलती से एक शावक को मार दिया था। उसने यह भी बताया की जान बूझकर कोई अपराध नहीं किया और यह सब अचानक हुआ। तब एक बूढी स्त्री ने उसे अपने पाप के प्रायश्चित के रूप में, देवी पार्वती के एक अवतार मां अहोई की आराधना कर, अष्ठमी का उपवास करने का सुझाव दिया।
देवी अहोई सभी जीवित प्राणियों की संतानों की रक्षक मानी जाती थी। तब महिला ने अष्टमी पर देवी अहोई की पूजा करने का फैसला किया। उसने देवी अहोई के साथ एक शावक का चित्र बनाकर उनकी पूजा की और अपने सभी पापों का प्रायश्चित किया। उसकी भक्ति और ईमानदारी से प्रसन्न होकर देवी अहोई प्रकट हुई और उसे अपने बेटों के लंबे जीवन का वरदान दिया।
माता अहोई के आशीर्वाद से उसके सभी पुत्र जीवित हो गए और उन्हें दीर्घायु प्रदान हुई। इस दिन के बाद से प्रति वर्ष कार्तिक माह की कृष्ण अष्टमी के दिन देवी अहोई को समर्पित व्रत करने की परंपरा प्रारंभ हो गयी। जैसे मां अहोई भगवती ने साहूकार की पत्नी को दिया वैसे ही सबको दें।
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