सनातन धर्म में वैसे तो साल में आने वाली सभी पूर्णिमा महत्वपूर्ण होती है, लेकिन अश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन पुरे देश में शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा बताया जाता है की, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूरी 16 कलाओं के साथ आसमान में दिखाई पड़ता है।
ऐसा माना जाता है की इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर आती है और अपना आशीर्वाद प्रदान करती है। यही कारण है की इस दिन चंद्र देव के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करना श्रेष्ट्र बताया जाता है। जो भी जातक इस दिन सच्चे मन से माता लक्ष्मी का स्मरण कर उनके मन्त्रों का जाप करता है, उन्हें मां लक्ष्मी धन, सुख, वैभव प्रदान करती है। शरद पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर अधिकांश हिन्दू घरों में खीर बनाई जाती है। जिसके बाद पूर्णिमा की रात को खुले आसमान के नीचे रोशनी में इस खीर को रखा जाता है, लेकिन क्या आप ऐसा करने के पीछे का कारण जानते है। यदि नहीं, तो आइये विस्तार से जानते है, इसके पीछे का कारण।
प्रति वर्ष आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा या रास पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है। साल 2022 में रविवार 9 अक्टूबर के दिन यह पर्व मनाया जाएगा।
धार्मिक मान्यतानुसार चंद्रदेव को औषधियों के देवता के रूप में जाना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन 16 कलाओं से परिपूर्ण होने की कारण चन्द्रमा, धरती पर अमृत की वर्षा करता है। खीर में मौजूद दूध, चावल व चीनी चन्द्रमा के ही भाग माने जाते है। जिस कारण खीर पर चन्द्रमा का प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है। मान्यता है की शरद पूर्णिमा के दिन जब चांद की किरणे खीर पर पड़ती है, तो खीर का महत्व अमृत के बराबर होता है। जिसके बाद अगले दिन इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण व वितरित किया जाता है। इस खीर को ग्रहण करने से न केवल मन को शीतलता प्रदान होती है बल्कि शरीर भी बिमारियों से ग्रसित नहीं होता है।
हालांकि ऐसा करने के पीछे धार्मिक महत्व के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी जुड़ा हुआ है। माना जाता है की खीर को चांदनी में थोड़ी देर के लिए छोड़ देने से लैक्टिक एसिड वापस आ जाता है, जो अच्छे बैक्टीरिया के उत्पादन में मदद करता है। यह भी माना जाता है कि चंद्रमा की किरणें दूध के गुणों को बढ़ाती हैं, और इसे स्वस्थ बनाती है।
बहुत समय की बात है। एक साहूकार की दो सुशील कन्याएं थी। दोनों ही कन्याएं पूर्णमासी का व्रत रखा करती थी। बड़ी कन्या तो पुरे विधि-विधान से यह व्रत रखती थी, जबकि छोटी पुत्री इस व्रत को अधूरा रखती थी। विवाह योग्य होने के कारण दोनों की शादी हो गई, और वे अपनी ससुराल चली गयी। कुछ समय बाद दोनों को सनातन की प्राप्ति हुई।
बड़ी के सभी संतानें स्वस्थ्य पैदा हुई, किंतु छोटी की सभी संतानों जन्म लेते ही दम तोड़ देती थी। जिसके बाद उसने बड़े-बड़े विद्वानों और पंडितों से इसका कारण जानने का प्रयास किया। जिसके बाद उसे यह पता लगा की ये उसके पूर्णिमा के व्रत अधूरा रखने के कारण हो रहा था।
यह जानने के बाद साहूकार की छोटी कन्या ने पूरे विधि-विधान के साथ पूर्णिमा का व्रत किया। कुछ समय बाद उसको एक पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन वह भी मर गया। इस बार कन्या ने अपने बच्चे को एक पाटे पर लिटाया और उसे एक कपड़े से ढक दिया। ऐसा करने के कुछ समय बाद उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे बैठने के लिए वही पाटा दिया। बड़ी बहन के बैठने से पहले ही उसका कपड़ा पाटे से छुआ, और वह बच्चा जीवित हो उठा। यह देखकर बड़ी बहन क्रोधित हो गयी। जिसके बाद छोटी ने अपनी बड़ी बहन को बताया की उसके पुण्य और भाग्य से ही यह जीवित हो सका है।
इस शरद पूर्णिमा यही आशा करते है की यह आपके लिए सुख-समृद्धि व सकारात्मकता लेकर आए। धर्मसार की ओर से शरद पूर्णिमा 2022 (Sharad purnima 2022) के उपलक्ष्य पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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