छठ पूजा सूर्य देव को समर्पित एक विशिष्ट पर्व है। भारत के कई भागों में, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में, इसे महापर्व माना जाता है। छठ पूजा शुद्धता के साथ मनाया जाता है। छठ व्रत में छठी मैया की पूजा की जाती है और उनसे अपने सुहाग और बच्चों की रक्षा और सलामती के लिए वर मांगा जाता है।
छठ पूजा के भगवान सूर्यदेव के पूजन के साथ ही छठ पूजा की पौराणिक व्रत कथा (Chhath Puja Vrat Katha) का भी विशेष महत्व बताया जाता है। आइये जानते है, छठ पूजा व्रत कथा-
एक समय की बात है. एक राजा प्रियंवद थे, जिनकी पत्नी का नाम मालिनी था। विवाह के काफी वर्ष बीतने के बाद भी उनको कोई संतान नहीं हुई. तब उन्होंने कश्यप ऋषि से इसका समाधान पूछा तो उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराने का सुझाव दिया ।कश्यप ऋषि ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया और राजा की पत्नी मालिनी को प्रसाद स्वरूप खीर खाने को दिया।
उसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई, जिससे राजा प्रियंवद बड़े खुश हुए। कुछ समय बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह भी मृत पैदा हुआ। यह खबर सुनकर राजा बहुत दुखी हो गए। वे पुत्र के शव को लेकर श्मशान गए और इस दुख के कारण अपना भी प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया।
जब वे अपना प्राण त्यागने जा रहे थे, तभी देवी देवसेना प्रकट हुईं. उन्होंने राजा प्रियंवद से कहा कि उनका नाम षष्ठी है. हे राजन! तुम मेरी पूजा करो और दूसरों लोगों को भी मेरी पूजा करने को कहो। लोगों को इसके लिए प्रेरित करो।
देवी देवसेना की आज्ञानुसार राजा प्रियंवद ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा की। उन्होंने यह पूजा पुत्र प्राप्ति का कामना से की थी। छठी मैय्या के शुभ आशीर्वाद से राजा प्रियंवद को पुत्र की प्राप्ति हुई. तब से हर साल कार्तिक शुक्ल षष्ठी को छठ पूजा की जाने लगी।
जो भी व्यक्ति छठ पूजा का व्रत रखकर विधिपूर्वक छठी मैया का पूजन करते है तो देवी मैय्या के आशीष से उसकी सभी इच्छाएं अवश्य पूर्ण होती है।
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