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व्रत कथाएँ

गणेश जी की व्रत कथा

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Ganesh Ji Ki Vrat Katha

गणेश जी की व्रत कथा

श्री गणेश जी परम पूजिये हैं। ऐसा कहा जाता है कि किसी भी कार्य से पहले या पूजा विधि शुरू करने से पहले श्री गणेश की पूजा करना महत्वपूर्ण है, और कई लाभ लाता है। साथ ही जब कोई गणेश जी का व्रत रखता है तो श्री गणेश व्रत कथाएं पढ़ी जाती हैं।

यहाँ, हम एक ऐसे ही Ganesh Ji Ki Katha को देख रहे हैं।

॥ प्रारंभ॥

एक बुढ़िया माई थी। मिट्टी के गणेश जी की पूजा करती थी। रोज बनाए रोज गल जाए। एक सेठ का मकान बन रहा था। वो बोली पत्थर का गणेश बना दो। मिस्त्री बोले। जितने हम तेरा पत्थर का गणेश घड़ेंगे उतने में अपनी दीवार ना चिनेंगे।

बुढ़िया बोली राम करे तुम्हारी दीवार टेढ़ी हो जाए। अब उनकी दीवार टेढ़ी हो गई। वो चिनें और ढा देवें, चिने और ढा देवें। इस तरह करते-करते शाम हो गई। शाम को सेठ आया उसने कहा आज कुछ भी नहीं किया।

वो कहने लगे एक बुढ़िया आई थी वो कह रही थी मेरा पत्थर का गणेश घड़ दो, हमने नहीं घड़ा तो उसने कहा तुम्हारी दीवार टेढ़ी हो जाए। तब से दीवार सीधी नहीं बन रही है। बनाते हैं और ढ़ा देते हैं।

सेठ ने बुढ़िया बुलवाई। सेठ ने कहा हम तेरा सोने का गणेश गढ़ देंगे। हमारी दीवार सीधी कर दो। सेठ ने बुढ़िया को सोने का गणेश गढ़ा दिया। सेठ की दीवार सीधी हो गई। जैसे सेठ की दीवार सीधी की वैसी सबकी करना।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

॥ अंत ॥

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