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व्रत कथाएँ

गणेश जी की व्रत कथा

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Ganesh Ji Ki Vrat Katha

गणेश जी की व्रत कथा

भगवान गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है और उन्हें सभी बाधाओं का विनाशक माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान गणेश का आशीर्वाद बहुत लाभकारी होता है। भगवान गणेश की पूजा करने से भक्तों को कई लाभ मिलते हैं। भगवान गणेश की पूजा करने से न सिर्फ बुद्धि और ज्ञान बढ़ता है बल्कि जीवन की चिंताएं भी दूर हो जाती हैं।

यहाँ, हम एक ऐसे ही एक पौराणिक Ganesh Ji Ki Vrat Katha के बारे में बताने जा रहे है।

॥ प्रारंभ॥

श्री गणेश चतुर्थी व्रत की एक और पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है कि भगवान विष्णु का विवाह माता लक्ष्‍मीजी के साथ निश्चित हुआ। विवाह की सभी तैयारी होने लगी। सभी देवी – देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, लेकिन भूलवश गणेश जी को निमंत्रण देना रह गया था।

इधर भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ चूका था। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में शामिल होने को आए। परन्तु सभी देवी – देवताओं ने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब उन सभी ने आपस में चर्चा कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता दिया गया? या गणेश जी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर बहुत आश्चर्य हुआ। इस बात उन सभी ने विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा।

विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव और माता पार्वती को न्योता भेजा था। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं।

दूसरी बात यह है कि उनको खाने में सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।

इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया – यदि गणेश जी आते तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा सकते थे कि आप घर की याद रखना।

आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात में बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो फिर विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।

तब गणेश जी को निमंत्रण देकर आमंतित्र किया और उनको समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने को बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारद जी ने देखा कि गणेश जी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेश जी के पास गए और रुकने का कारण पूछा।

गणेश जी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारद जी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।

अब तो गणेश जी ने अपनी मूषक सेना को आदेश दिया जाओ और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंसने लगे। लाख कोशिश की परंतु पहिए नहीं निकले।

सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूटने लगे। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया चाहिए।

तब तो नारद जी ने आकर कहा- आप लोगों ने गणेश जी का अपमान किया जिस कारण यह विघ्न आ रहे है यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है।

शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए। गणेश जी का आदर – सम्मान के साथ पूजन किया गया, फि

र रथ के पहिए निकलने लगे और यह संकट टल गया। अब रथ के पहिए निकल तो गए परंतु वे टूट – फूट गए थे, तो उन्हें सुधारे कौन?

पास के खेत में एक खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।

तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है।

हम तो मूर्ख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेश जी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश जी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा।

ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मी जी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।

हे गणेश जी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो। बोलो गजानन भगवान की जय।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

॥ अंत ॥

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