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व्रत कथाएँ

Ganga Dussehra Vrat Katha | गंगा दशहरा व्रत कथा

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हिंदू धर्म में गंगा नदी को बहुत पवित्र माना जाता है। इक्ष्वाकु वंश के राजा भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा धरती पर अवतरित हुई। तब से यह मान्यताहै कि गंगा में स्नान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। मान्यता है कि कलयुग के बाद भी गंगा की धारा निरंतर बहती रहेगी। गंगा दशहरा जैसे त्यौहार पर श्रद्धालु गंगा के तट पर स्नान करने आते हैं। गंगा दशहरा के पावन पर्व पर, आइए जानते है मां गंगा से जुड़ी एक रोचक कथा-

Ganga Dussehra Vrat Katha | गंगा दशहरा व्रत कथा

गंगा दशहरा व्रत कथा (Ganga Dussehra ki Katha) इस प्रकार है-

Ganga Dussehra Vrat Katha | गंगा दशहरा व्रत कथा

एक समय की बात है। अयोध्या नगरी में राजा सगर का राज था। वे सूर्यवंश के महान और शक्तिशाली राजा माने जाते थे। एक बार उन्होंने अपने साम्राज्य की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में एक विशेष घोड़ा छोड़ा जाता है, जो जहां-जहां जाता है, वहां-वहां राजा की सत्ता स्वीकार की जाती है।

लेकिन देवताओं के राजा इंद्र को यह सब अच्छा नहीं लगा। उन्हें डर था कि कहीं राजा सगर स्वर्ग पर भी अधिकार न कर लें। इसलिए उन्होंने यज्ञ का घोड़ा चुपचाप पाताल लोक में ले जाकर ऋषि कपिल मुनि के आश्रम के पास बांध दिया।

यह सब देखकर राजा सगर ने अपनी प्रजा के 60,000 लोगों को घोड़ा ढूंढने भेजा। वह सभी खोजते-खोजते पाताल लोक पहुंच गए। तब घोड़े को कपिल मुनि के पास देखा। उन्हें लगा कि मुनि ने ही घोड़ा चुराया है। ग़ुस्से में आकर उन्होंने अपशब्द कहे और मुनि का ध्यान भंग कर दिया।

जब कपिल मुनि की आंखें खुलीं, तो उन्होंने अपमान से क्रोधित होकर अपने तपोबल से सभी राजपुत्रों को वहीं भस्म कर दिया। जिसके चलते इन पुत्रों का अंतिम संस्कार संपन्न नहीं हुआ। इसलिए उनकी आत्माएं मुक्ति नहीं पा सकीं, और पाताल लोक में भटकती रहीं।

इसके बाद समय बीतता गया। पीढ़ियां बीत गई...

तब राजा सगर के वंशज राजा भगीरथ ने यह जिम्मेदारी उठाई। वे अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाना चाहते थे। उन्होंने अपना सब कुछ छोड़कर कठोर तपस्या शुरू की। वह सालों-साल जंगलों में, पर्वतों पर तप करते रहे।

आख़िरकार, उनकी भक्ति से भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए और बोले, "मैं गंगा को पृथ्वी पर भेजने को तैयार हूँ, लेकिन उसकी धारा इतनी प्रचंड है कि धरती उसका भार और वेग सहन नहीं कर पाएगी।"

तब भगीरथ जी ने एक बार फिर से तप शुरू किया। इस बार उन्होंने भोलेबाबा को प्रसन्न करने की तैयारी शुरू कर दी। सालों की साधना के बाद शिव जी प्रकट हुए और उन्होंने वचन दिया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में रोकेंगे, ताकि उसकी धारा धीरे-धीरे धरती पर उतरे।

जैसे ही शिवजी ने अपनी जटाएं खोलीं। गंगा की निर्मल जलधारा धीरे-धीरे धरती पर उतरी। मां गंगा के आगमन पर पूरा वातावरण पवित्र हो गया। आकाश में देवता पुष्पवर्षा करने लगे। गंगा माता राजा भगीरथ के पीछे-पीछे पाताल लोक पहुँचीं। जैसे ही उन्होंने राजा सगर के पुत्रों के अवशेषों को छुआ। जिसके बाद राजा भगीरथ के सभी पूर्वजों को मोक्ष कि प्राप्त हुई।

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