एक बार भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती को उनके पूर्व जन्म के बारे में बताते इस व्रत के महत्व को समझाया। माता पार्वती ने बहुत छोटी उम्र में ही भगवान भोलेनाथ को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। उन्होंने बाल्यावस्था में ही बारह वर्षों तक हिमालय के किनारे बैठकर कठिन तप शुरू कर दिया। अपने इस तप के दौरान उन्होंने बिना कुछ खाए-पीये अपना जीवन व्यतीत किया। उन्होंने जीवित रहने के लिए सूखे पत्ते और हवा खाकर ही कई वर्षों तक गुजारा किया।
देवी पार्वती को इस स्थिति में देखकर उनके पिता बहुत दुखी रहते थे। देवी पार्वती की तपस्या को देख भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए, जिसके बाद महर्षि नारद उनके पिता के पास भगवान विष्णु का रिश्ता लेकर पहुंचे। भगवान विष्णु से रिश्ते की बात सुनकर उनकी खुशी का तो ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने एक बार में ही स्वीकृति में हामी भर दी।
जब माता पार्वती को इस बारे में ज्ञात हुआ तो उन्हें बहुत दुःख हुआ और ये सारी बात सुनते ही वह बहुत ज़ोर ज़ोर से रोने लगीं और जीवन कहने लगी । यह देखकर उनकी सखी को आश्चर्य हुआ की वे स्वयं नारायण से विवाह होने पर इतनी दुखी क्यों है? तब उन्होंने अपनी सखी को उत्तर देते हुए कहा - वे इतना कठिन तप और व्रत भगवान भोलेनाथ को पति रूप में पाने के लिए कर रही हैं।
लेकिन उनके पिता उनकी शादी भगवान विष्णु से ही करवाना चाहते थे। तब उनकी सखी ने उन्हें वन में तप करने की सलाह दी। उनके कहने के अनुसार देवी पार्वती ने एक गहरे वन में पहुंच गयी वहां एक गुफा में बैठकर तपस्या करने लगी। उन्होंने स्वयं को पूरी तरीके से भगवान शिव की भक्ति में लीन कर लिया।
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन देवी पार्वती ने रेत से शिवलिंगन बनाया और रात भर जागकर भगवान शिव की स्तुति की। माता पार्वती के इस समर्पण को देखकर भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और उन्हें स्वयं को उनके पति रूप में मिलने का वरदान दिया।
माना जाता है की जो भी महिला इस दी पूरे विधि-विधान और श्रद्धापूर्वक व्रत करती है, उन्हें इच्छानुसार वर की प्राप्ति होती है। इसके साथ विवाहित स्त्रियों को भी खुशहाल दांपत्य जीवन का सुख प्राप्त होता है। इसलिए हरियाली तीज के इस व्रत को इतना महत्वपूर्ण बताया जाता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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