कार्तिक महीना सबसे पुण्य और पवित्र महीना है। पुरातन धर्मों में इस महीने का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में इसका उल्लेख है। यही कारण है कि कार्तिक महीने में आने वाले वैकुंठ चतुर्दशी का भी विशेष महत्व है-
प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुण्ठ चौदस का यह पर्व मनाया जाता है। आइये जानते है इस तिथि से जुड़ी पौराणिक कथा-
एक समय में धनेश्वर नामक ब्राह्मण रहा करता था। उस ब्राह्मण के माथे पर बहुत से पाप थे। एक दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी पर वह गोदावरी नदी में स्नान करने गया। उस दिन बहुत से भक्त पूजा कर गोदावरी घाट पर आए। धनेश्वर (ब्राह्मण) भी भीड़ में उन सभी के साथ था।
उन श्रद्धालुओं के स्पर्श से धनेश्वर को भी पूण्य मिला। जब उनकी मृत्यु हुई, तो यमराज ने उन्हें ले गए और नरक भेज दिया। तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी व्यक्ति था। लेकिन इसने वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया और बाकी समस्त श्रद्धालु के पूण्य के कारण इसके सभी पाप नष्ट हो गये इसलिए इसे वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति हुई।
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव की पूजा करने काशी आये। मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने के बाद उन्होंने एक हजार कमलों से भगवान विश्वनाथ की पूजा करने का निर्णय लिया। दीक्षा के बाद जब वह पूजा करने लगे तो भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए कमल का कम कर दिया।
भगवान श्रीहरि को पूजन के लिए एक हजार कमल पुष्प चढ़ाने थे। उसने एक पुष्प की कमी देखकर सोचा कि मेरी आंखें भी कमल की तरह हैं। मैं कमल नयन और पुंडरीकाक्ष कहलाता हूँ। यह सोचकर भगवान विष्णु ने अपनी कमल की तरह की आंख महादेव के समक्ष प्रस्तुत करने के बारे में सोचा।
भगवान विष्णु की ऐसी अपार भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट हुए और बोले, संसार में आपके समान मेरा कोई दूसरा भक्त नहीं है। आज की कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी और जो इस दिन सबसे पहले आपका व्रत और पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।
इस वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव ने करोड़ों सूर्यों की चमक के बराबर अपना सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु को अर्पित किया था। भगवान शिव और भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगे। यदि इस संसार में रहने वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, तो उसे वैकुंठ धाम में स्थान मिलता है।
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