महाभारत के कर्ण को तो आप सभी जानते हैं। यदि महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं की बात करें तो कर्ण उसमें ज़रूर होंगे। अर्जुन, जिनके साथ श्री कृष्ण का साथ था, उन्हें हारने की क्षमता केवल कर्ण में थी। परंतु हर इंसान की कुछ गलतियां काफी होती हैं उसे किसी भी परीक्षा में हारने के लिए। महाभारत के युद्ध से पहले कर्ण ने कुछ गलतियां ऐसी की जिससे वे कमज़ोर होते गए।
महाभारत की कहानी में कर्ण एकमात्र ऐसे योद्धा थे जिनमें अर्जुन का मुकाबला करने की क्षमता थी। उनके पास कुछ ऐसे बाण भी थे जो अर्जुन के पास नहीं थे। यही कारण है कि दुर्योधन ने हमेशा कर्ण को अपने करीब और मित्र बनाकर रखा। हालांकि, इन सभी के बावजूद महाभारत की लड़ाई में कौरवों की हार हुई।
यदि हम ये कहें की कर्ण अर्जुन से भी अच्छे धनुर्धारी थे तो शायद यह गलत नहीं होगा। महाभारत की कहानी में अर्जुन का मुकाबला करने का साहस सिर्फ एक इंसान में था, कर्ण। कर्ण ने अपनी तपस्या से कुछ ऐसे बाण और शक्तियां हासिल करि थी जो की अर्जुन के पास भी नहीं थे। इसी कारण से दुर्योधन ने उन्हें अपना सबसे प्रिय मित्र बना रखा था क्योंकि वे जानते थे की यदि कोई अर्जुन जो हरा सकता है तो व केवल कर्ण है।
कर्ण के पास इतनी शक्तियां होने के बावजूद भी वे कौरवों को जीत ना दिला सके। उनका वद्ध भी अर्जुन के हाथों ही हुआ। परंतु ऐसा क्या हुआ जो कौरवों को हार का सामना करना पड़ा? कर्ण से 6 गलतियां हुई थी जिससे वे कमज़ोर हो गए और कौरवों की मदद नहीं कर सके।
आइये जानते हैं की कर्ण की 6 गलतियां कौनसी थी।
कर्ण के एक गुरु परशुराम भी थे। उन्होंने अपनी बहुत सी विद्याएं उनसे भी सीखी थी। परंतु परशुराम बहुत ही गुस्से वाले थे और कर्ण ने उनसे यह कहा था की वे एक ब्राह्मण ही हैं। शिक्षा के आखरी कुछ दिन ही बचे थे। एक दिन गुरु परशुराम को नींद आ रही थी और वे अपना शीश कर्ण की गोद में आँख कर सो गए। थोड़ी देर पश्चात एक कीड़ा कर्ण के पास आता है और उनकी जांघों पे काटने लगा। कर्ण पीड़ा में बैठे रहे यह सोच कर की उनकी कोई भी प्रक्रिया उनके गुरु की नींद बिगाड़ सकती है। वे उस पीड़ा को सहते रहे। थोड़ी देर बाद जब गुरु उठे, तब उन्होंने कर्ण को पीड़ा में देखा और पुछा की इतनी पीड़ा में थे तो उठाया क्यू नहीं? पीड़ा सहते रहने का कारण जब कर्ण ने बताया तो गुरु परशुराम को क्रोध आ गया। उन्होंने बोलै की इतनी पीड़ा सहन करने की क्षमता बस एक क्षत्रिय में ही हो सकती है और कर्ण ने उनसे झूठ बोलै की वे ब्राह्मण हैं। गुरु परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया की उनकी सिखाई हुयी विद्या की कर्ण को जब सबसे ज़्यादा आवश्यकता होगी तभी वे विद्याएं किसी काम नहीं आएगी। महाभारत के युद्ध में कुछ ऐसा ही देखने को मिला। यह थी कर्ण की पहली गलती
एक दिन कर्ण जंगल में बाण चलाने का अभ्यास कर रहे थे। इस दौरान वहां से कुछ गाय निकल रही थी। कर्ण ने केवल आवाज़ सुनी और उन्हें लगा की वहां कोई जंगली जानवर है। उन्होंने एक तीर उस ओर चलाया जो की एक गाय को जा कर लगा और गाय की मृत्यु हो गयी। ये सभी गाय एक ब्राह्मण की थी। गाय की मृत्य देख कर वे बहुत क्रोधित हुए और कर्ण को श्राप दिया की युद्ध में तब मारे जाएंगे जब उनका ध्यान युद्ध से हट जायेगा। यह थी कर्ण की दूसरी गलती
जब महाभारत का युद्ध निश्चित हुआ, तब श्री कृष्ण को महसूस हुआ की कर्ण अर्जुन के लिए एक बाधा बन सकते हैं। एक बेटे को अपनी असली माँ का सच बता कर वे कर्ण को मानसिक रूप से कमज़ोर कर चुके थे। दूसरी सुबह, जब कर्ण सूर्य देव की पूजा करने नदी किनारे जाते थे, तभी वहां कुंती जा पहुंची जो की कर्ण की वास्तविक माँ थी। कर्ण के पास जाके माँ कुंती ने अपनी दुविधा बताई की वे अपने किसी भी पुत्र को मरते हुए कैसे देख सकती है? तब कुंती ने कर्ण से यह वचन माँगा की वे अर्जुन से ही युद्ध करेंगे और अपने किसी भी भाई के सामने शस्त्र नहीं उठाएंगे। कर्ण ने यह वचन माँ कुंती को दे दिया और यह भी कहा की कुछ भी हो, माँ कुंती के पांच पुत्र अवश्य ज़िंदा रहेंगे चाहे वह अर्जुन हो या कर्ण। यह थी कर्ण की तीसरी गलती
सूर्य पुत्र कर्ण के पास जन्म के साथ ही एक सोने का कवच और कुंडल था जिसकी वजह से उन्हें कोई भी नहीं मार सकता था। महाभारत के युद्ध में यह पांडवों के खिलाफ एक बहुत बड़ी समस्या साबित हो सकती थी। परंतु ऐसा हुआ नहीं। इस बार इंद्र ने पांडवों की सहायता की। जैसे कुंती कर्ण के पास गयी थी, सुबह सूर्य की पूजा करते समय, उसी तरह इंद्र भी उनके पास एक ब्राह्मण के रूप में गए और कर्ण से दान के रूप में उनका कवच और कुंडल माँगा। अब क्यूंकि कर्ण पूजा के तुरंत बाद कुछ मांगने आये किसी को भी मना नहीं करते थे, तो इस बार उन्होंने इंद्र को कवच और कुंडल दान में दे दिया जिससे वे बेहद कमज़ोर हो गए। यह थी कर्ण की चौथी गलती
कर्ण ने बड़ी तपस्या से एक ऐसा अस्त्र हासिल किया था जिससे किसी भी शक्तिशाली व्यक्ति को मारा जा सकता था। इस अस्त्र का नाम अमोघ अस्त्र था। इसको हासिल करते समय शर्त यह थी की इसका उपयोग बस एक ही बार किया जा सकता था। इसका उपयोग हुआ, परंतु अर्जुन पे नहीं। कर्ण ने इसे अर्जुन के लिए बचा कर रखा था। परंतु इस अस्त्र का उपयोग अर्जुन को मारने के लिए हो पाता, उससे पहले कौरवों की सेना का सामना भीम पुत्र घटोत्कच से हुआ। अपने बहुत बड़े शरीर के कारण वे कौरवों की सेना को बहुत क्षति पंहुचा रहे थे। उन्हें रोकना बड़े बड़े योद्धाओं के लिए मुश्किल होता जा रहा था और ऐसा ही चलता तो कुछ ही पल में कौरवों की हार निश्चित थी। ऐसा देख कर दुर्योधन ने कर्ण से अमोघ अस्त्र का उपयोग करने को कहा। कर्ण ने भी बिना कुछ सोचे अमोघ अस्त्र घटोत्कच पे चला दिया और घटोत्कच मारा गया। इससे अब वे अमोघ अस्त्र का उपयोग अर्जुन पे नहीं कर सके। यह थी कर्ण की पांचवी गलती
महाभारत के युद्ध में जब कर्ण और अर्जुन का युद्ध चल रहा था तभी एक सर्प कर्ण के रथ में आ गया। कर्ण ने कोशिश की जिससे वह मर जाये परंतु ऐसा करने से पहले वह सर्प उनके हाथ में आया और बोलै की वह अर्जुन से बदला लेने आया है। अर्जुन ने जब समस्त खांडव वन में आग लगाई थी तब उस सर्प की माँ की भी हत्या हो गयी थी। सर्प ने कहा की वे उसे तीर में रख कर अर्जुन की और चला दें जिससे वे अर्जुन के पास जा कर उसे डस ले। कर्ण ने कहा की खांडव वन में आग लगाना वे अर्जुन की गलती नहीं मानते और सर्प को ऐसे अर्जुन के पास भेजना और उससे जीत हासिल करना उनके संस्कारों के खिलाफ है। यदि वे सर्प का कहा मान लेते तो शायद महाभारत का परिणाम कुछ और हो सकता था। यह थी कर्ण की छट्टी गलती
तो यह थी कर्ण की 6 गलतियां जो जाने अनजाने में उनसे हुई और जिसकी वजह से उन्हें और कौरवों को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा।
(Note: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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