सभी देवताओं में भोलेनाथ का महत्वपूर्ण स्थान है, यही कारण है कि भगवान शिव को 'देवों का देव' कहा जाता है। शास्त्रों में भगवान शिव के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है। भोलेबाबा अपने शरीर पर विभिन्न वस्तुएं जैसे गले में माला, माथे पर सर्प और जटाओं में चंद्रमा धारण करते हैं। इसके साथ ही, भगवान शंकर गले में मुंडमाला (mund mala) भी धारण करते हैं । लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव इस माला को अपने गले में क्यों पहनते हैं? यदि नहीं तो आइए जानते इसके पीछे का रहस्य-
पौराणिक कथाओं में मुंड माला (mund mala) का विशेष महत्व बताया गया हैं। इन कथाओं में मुंड माला से जुड़ें रहस्य का भी उल्लेख मिलता हैं, तो आइए जानें माता सती और महादेव से जुड़ी यह रहस्य्मय कथा-
मुंडमाला (Mundmala) का अर्थ है - मृत्यु पर शिव की विजय। वेद-पुराणों में यह मुंडमाला भगवान शिव और देवी सती के प्रेम का प्रतीक है। जब प्रजापति दक्ष के एक समारोह में माता सती ने अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए तो शिव बहुत क्रोधित हो गए और तांडव करने लगे। ऐसी मान्यता है कि यह महादेव की लीला थी, जिसकी रचना स्वयं उन्होंने ही की थी। शिव ने पहले ही देवी सती को इस बारे में सूचित कर दिया था, साथ ही उन्हें 108 सिरों (108 Skull Beads) की मुंडमाला धारण करने के रहस्य के बारे में भी बताया था।
एक बार नारद मुनि ने सती माता से पूछा, "माता, यदि शंकर भगवान आपको सबसे अधिक प्रेम करते हैं तो वह अपने कंठ पर मुंडों की माला क्यों धारण है?" नारद मुनि के इस प्रश्न के बाद सती माता ने शिवजी से माला का रहस्य जानने की इच्छा जताई । तब शिवजी ने सती माता को बहुत समझाया, लेकिन जब माता नहीं मानीं तो भगवान शिव ने उनसे कहा कि इस मुंड माला में जितने भी सिर हैं, वे सभी आपके हैं। यह सुनकर माता सती चौंक गयी। शिवजी ने आगे कहा कि यह आपका 108वां जन्म हैं। इससे पहले भी आप 107 बार जन्म लेकर अपने देह का त्याग कर चुकी हैं। ये मुंड उन्हीं जन्मों का प्रतीक हैं।
मुंडमाला पहनने के इस रहस्य को जानकर माता सती भगवान शिव से बोली, "मैं तो हर बार अपने देह का त्याग करती हूँ, परंतु आप कभी भी देह का त्याग नहीं करते।" तब शिवजी ने उत्तर दिया, "मैं अमरकथा के बारे में जानता हूं।” इसलिए मुझे बार-बार शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता। सती ने भी शिव से अमरकथा सुनने की इच्छा जताई। मान्यता है कि जब शिव माता सती को कथा सुना रहे थे, तब देवी सती पूरी कथा नहीं सुन पाई और बीच में ही सो गई। इसके फलस्वरूप उन्हें राजा दक्ष के यज्ञ में कूदकर आत्मदाह करना पड़ा।
सती के आत्मदाह के बाद, भगवान शिव ने उनके शरीर के अंशों से 51 शक्तिपीठ बनाए। हालांकि माता सती का सिर उन्होंने अपनी माला में जोड़ लिया। इस प्रकार, शिव ने 108 सिरों की एक माला बनाई और उसे धारण कर लिया। जिसके पश्चात माता सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। इस जन्म में, माता पार्वती को अमरता प्राप्त हुई और उन्हें फिर कभी अपने शरीर का त्याग नही करना पड़ा।
मुंड माला को स्कल माला (skull mala) भी कहा जाता है। इसका उपयोग विभिन्न धार्मिक और तांत्रिक प्रथाओं में किया जाता है। आइए जानते हैं, मुंड माला का प्रयोग मुख्य तौर पर किस उद्देश्य के लिए किया जाता है-
1. आध्यात्मिक साधना के लिए
मुंड माला (Skull Beads) का उपयोग विशेष तांत्रिक साधनाओं और मंत्रों के जाप में किया जाता है। यह माला साधक को ध्यान, एकाग्रता और शक्ति प्रदान करती है।
2. दुर्गा और काली पूजा के समय
दुर्गा और काली माता की आराधना में मुंड माला का महत्वपूर्ण स्थान है। यह देवी के रौद्र रूप का प्रतीक है और पूजा के समय विशेष महत्व रखती है।
3. तांत्रिक अनुष्ठान के लिए
तांत्रिक अनुष्ठानों में मुंड माला का उपयोग विशेष तंत्र-मंत्र सिद्धियों के लिए किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसे धारण करने से साधक को विशेष तांत्रिक शक्तियां प्राप्त होती हैं।
4. रक्षा व सुरक्षा के लिए
मुंड माला को धारण करने से नकारात्मक शक्तियों और बुरी नजर से रक्षा होती है। यह माला धारणकर्ता की बुरी आत्माओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
5. मंत्र जाप के समय
मुंड माला का उपयोग विभिन्न मंत्रों के जाप में किया जाता है। यह माला मंत्रों की शक्ति को बढ़ाने और साधक को मानसिक शांति प्रदान करने में सहायक होती है।
6. शिव भक्तों के द्वारा
शिव भक्तों के लिए मुंड माला का विशेष महत्व है। यह भगवान शिव के रुद्र रूप का प्रतीक है और इसे धारण करने से जातक को शिव की कृपा प्राप्त होती है।
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(यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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