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भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए क्यों चुना मकर संक्रांति का दिन? जानें महाभारत का यह पौराणिक रहस्य

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मकर संक्रांति हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस साल मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी 2023 को देशभर में मनाया जाएगा। मकर संक्रांति को देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। शास्त्रों में मकर संक्रांति के दिन को बहुत ही शुभ माना गया है।

भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए क्यों चुना मकर संक्रांति का दिन? जानें महाभारत का यह पौराणिक रहस्य

ज्योतिषशास्त्र में "संक्रांति" (makar sankranti 2024) का अर्थ सूर्य या किसी अन्य ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है और धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है। सक्रांति के इस पर्व को उत्तरायण भी कहा जाता है।

यह दिन दान और पूजा-पाठ के लिए बहुत शुभ है। ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी इस दिन अपने प्राण त्यागता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि इसी कारण से भीष्म पितामाह ने सूर्य को अपना जीवन त्यागने के लिए उत्तरायण का इंतजार किया था। आइये जानते है, मकर सक्रांति से जुड़ी यह लोकप्रिय महाभारत कथा-


भीष्म पितामह उत्तरायण में अपने प्राण क्यों त्यागना चाहते थे?

उत्तरायण का महत्व

महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ते समय भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन जब वे बाण से घायल हुए, उस सूर्य दक्षिणायन की स्थिति में था। धर्म शास्त्रों के अनुसार, जो लोग उत्तरायण में अपने प्राण त्यागते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा पा जाते है।

भीष्म पितामह का वरदान

भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, वे जब चाहें अपने प्राण त्याग सकते थे। इस कारण से, भीष्म पितामह ने सूर्य को अपना जीवन त्यागने के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा की। अर्जुन के बाणों से घायल होने के बाद भी वह अपनी मृत्यु का इंतजार करता रहा। छह महीने तक वह अपने मृत्युं शैया पर लेटे रहे और सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का इंतजार करते रहे।

मकर संक्रांति का उत्सव

इसी कारण से, महाभारत के अंतिम अध्याय का यह प्रकरण, जिसमें भीष्म पितामह के बलिदान का उल्लेख है, प्राचीन भारतीय परंपरा में सौभाग्य का प्रतीक बन गया और यही कारण है कि मकर संक्रांति (makar sankranti festival)का दिन उत्सव के रूप में मनाया जाता है।


Mythological Facts about Makar Sankranti | मकर संक्रांति से जुड़े अन्य पौराणिक तथ्य

• हर साल मकर संक्रांति के दिन पश्चिम बंगाल के गंगासागर में मेला लगता है।

• मकर संक्रांति के दिन से मलमास भी समाप्त हो जाता है और शुभ कार्य शुरू हो जाते है।

• मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव के प्रति अपना गुस्सा भुलाकर उनके घर गये थे।

• धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, संक्रांति के अवसर पर पवित्र जलधाराओं में स्नान, दान, पूजा आदि करने से मानवीय गुणों का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।

• मकर संक्रांति के दिन गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम तक गयी। इसके बाद वह समुद्र में विलीन हो गईं और इस तरह महाराज भगीरथ के पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हुआ।


इस प्रकार शास्त्रों में मकर सक्रांति से जुड़े यह कुछ तथ्य है, जिसके कारण इस पर्व को इतना महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो आत्माएं उत्तरायण में अपना शरीर छोड़ती है, वे कुछ समय के लिए स्वर्ग चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाती है।

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