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भगवान शिव की जटाओं से क्यों निकली थीं माँ गंगा | जानें गंगा सप्तमी की तिथि और महत्व

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हिंदू धर्म में गंगा केवल नदी ही नहीं, बल्कि एक माँ के रूप में पूजी जाती है। इसी कारणवश गंगा सप्तमी का एक विशेष महत्त्व है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन ही गंगा सप्तमी मनाई जाती है। जैसे जैसे माँ गंगा के धरती पर आने का समय निकट आते जा रहा था, वैसे वैसे ब्रह्मा जी की चिंताएं बढ़ती जा रही थी। ब्रह्मा जी चिंतित थे की धरती गंगा का भार सहन कर सकती है या नहीं। और यदि कर भी सकती है तो क्या उसके अचानक हुए आगमन से धरती पर तबाही तो नहीं आ जाएगी। इसी चिंता से मुक्त होने के लिए ब्रह्मा जी ने माँ गंगा को शिव जी के पास जाने का सुझाव दिया।

भगवान शिव की जटाओं से क्यों निकली थीं माँ गंगा | जानें गंगा सप्तमी की तिथि और महत्व

ब्रह्मा जी के सुझाव देने के पश्चात माँ गंगा ने कठोर तपस्या से भोलेनाथ को प्रसन्न किया। वरदान के रूप में गंगा ने भोलेनाथ से यह माँगा की वे स्वर्गलोक से सीधा भगवान शिव की जटाओं में गिरेंगी जिससे उनका भार और वेग धरती को झेलना ना पड़े। जिस दिन माँ गंगा ने भोलेनाथ की जटाओं में प्रवेश किया, उस दिन को हम गंगा सप्तमी के रूप में मनाते हैं। आइये जानते गंगा सप्ति तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्त्व।


गंगा सप्तमी 2022 तिथि | Ganga Saptami 2022 Date

हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 8 मई 2022 के दिन मनाई जायेगी। गंगा सप्तमी तिथि 7 मई, शनिवार को दोपहर 2 बजकर 56 मिनट से प्रारम्भ होकर रविवार, 8 मई शाम 5 बजे समाप्त होगी। पंडितों और ज्योतिषियों के अनुसार उदयतिथि 8 मई की है इसलिए गंगा सप्ति 8 मई को मनाई जाएगी।


गंगा सप्तमी 2022 पूजा मुहूर्त | Ganga Saptami 2022 Puja Muhurt

विधि-विधान से पूजा करने से माँ गंगा का आशीर्वाद प्राप्त होता है और माँ की कृपा से आपके सभी दुखों का अंत होता है। पूजा सदैव शुभ मुहूर्त में ही करनी चाहिए जिससे अधिक से अधिक लाभ होता है। गंगा सप्तमी का शुभ मुहूर्त 8 मई को दोपहर 02 बजकर 38 मिनट तक है।


गंगा सप्तमी का महत्व | Significance of Ganga Saptami

हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गंगा स्वर्ग लोक से सीधे भगवान शिव की जटाओं में गिरी थी। यदि वे सीधी धरती पर अवतिरत होतीं तो धरती उनका भार सहन नहीं कर पाती और भयंकर विनाश होता। धरती का भार और वेग कम करने के लिए शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में से निकलने ही नहीं दिया। यह जानकार माँ गंगा ने शिव जी से दुबारा प्रार्थना करी और तब शिव जी की जटाओं से गंगा पृथ्वी पर उतर सकीं।

इस दिन गंगा नदी में स्नान करने की परंपरा है। बहुत से श्रद्धालु गंगा किनारे आते हैं और गंगा स्नान का लुफ्त उठाते हैं। इस दिन माँ गंगा के तट पर भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है और हर वर्ष हज़ारों भक्त इस महा पूजा का आनंद प्राप्त करते हैं।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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