एक भाई और बहन के बीच का रिश्ता बिल्कुल अनोखा होता है और इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। भाई-बहनों के बीच का यह रिश्ता बहुत अनोखा होता है और दुनियाभर में इस रिश्ते का विशेष महत्व होता है। हालंकि, रक्षाबंधन को भारत के सबसे अहम और महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। रक्षा बंधन का अवसर हिन्दू दैनिक पंचाग के अनुसार श्रावण महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। वही अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह आमतौर पर अगस्त के महीने में आता है।
रक्षाबंधन शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिलकर बना है, "रक्षा" और "बंधन। "संस्कृत शब्दकोष के अनुसार, "रक्षा का अर्थ है बंधन या गांठ" और "बंधन" बांधने की क्रिया को दर्शाता है। इतना ही नहीं, यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट रिश्ते और शाश्वत प्रेम का प्रतीक है, जिसका मतलब सिर्फ खून का रिश्ता नहीं है। यह चचेरे भाई-बहनों, भाभी, बुआ और भतीजे के बीच भी मनाया जाता है।
यह तो हम सभी जानते है की राखी या रक्षा बंधन का पर्व हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर रक्षा बंधन को मनाने के पीछे की परंपरा क्या है। यदि नहीं, तो आज के इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े और जानें इस पर्व को मनाने के पीछे की कुछ लोकप्रिय पौराणिक कथाएं-
महाभारत काल दो सबसे मुख्य किरदार, श्री कृष्ण और द्रोपदी से तो सभी भलीं-भांति परिचित है। एक समय की बात है, पतंग उड़ाते समय श्री कृष्ण की अपनी छोटी उंगली कट गयी। यह देख रुक्मिणी जी ने दासी को पट्टी लाने के लिए भेजा। यह देख द्रौपदी ने अपनी साड़ी का छोटा सा टुकड़ा फाड़ा और रक्त को रोकने के लिए उनकी उंगली पर बांध दिया। यह देख प्रभु श्री कृष्ण ने बदले में, द्रोपदी को यह वचन दिया, की उसे जब भी उन्हे आवश्यकता होगी, तब वह हमेशा उनकी मदद करेंगे।
धर्म-शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन के दिन माँ संतोषी का जन्म हुआ था। एक पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार रक्षा बंधन के दिन भगवान गणेश की बहन उन्हें राखी बांधने के लिए जाती है। यह सब देखकर भगवान गणेश के दोनों पुत्र शुभ व लाभ निराश हो गए और उन्होंने अपने पिता से बहन की ज़िद्द करने लग गए। ऐसे ने अपने पुत्रों की इस मनोकामना को पूर्ण करने के लिए भगवान गणेश ने दिव्य शक्तियों के के माध्यम से संतोषी मां को बनाया। इस प्रकार, रक्षाबंधन के दिन शुभ-लाभ को रक्षा बंधन के अवसर पर अपनी बहन मिल गई।
एक अन्य पौराणिक कथा यम और उनकी बहन यमुना का वर्णन किया जाता है। यमराज, जिन्हे मृत्युं के देवता के रूप में जाना जाता है, लगभग 12 वर्षों तक अपनी बहन यमुना से मिलने नहीं गए। इस बात से यमुना जी अत्याधिक दुखी थी। तब देवी गंगा की सलाह पर, यम अपनी बहन यमुना भेंट की। यह देखकर यमुना बहुत खुश हुई और उन्होने अपने भाई यम का स्वागत-सत्कार किया। यम अपनी बहन के इस सत्कार से बहुत प्रसन्न हुए, और उन्होने अपनी बहन यमुना को अमर कर दिया ताकि वह उसे बार-बार देख सकें। यह प्राचिन कथा दीपावली के बाद आने वाले पर्व 'भाई दूज' नामक त्यौहार पर आधारित मानी जाती है।
भविष्य पुराण की प्राचीन कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। भगवान इंद्र - आकाश, वर्षा और वज्र के प्रमुख देवता, जो देवताओं की ओर से युद्ध लड़ रहे थे, उन्हें शक्तिशाली राक्षस राजा बाली से कड़ा प्रतिरोध करना पड़ रहा था। युद्ध काफी समय तक चलता रहा और निर्णायक अंत नहीं हुआ। यह देखकर इंद्र की पत्नी शची भगवान विष्णु के पास गईं जिन्होंने उन्हें सूती धागे से बना एक पवित्र कंगन दिया। शची ने अपने पति, भगवान इंद्र की कलाई पर पवित्र धागा बांधा, जिन्होंने अंततः राक्षसों को हराया और अमरावती को पुनः प्राप्त किया। इस त्यौहार से पहले विवरण में इन पवित्र धागों का ताबीज के रूप में उल्लेख किया गया था, जिनका उपयोग महिलाएं प्रार्थना के लिए करती थी।
भागवत पुराण और विष्णु पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने राक्षस राजा बलि से तीनों लोकों को जीत लिया। उस समय राक्षस राजा ने भगवान विष्णु से अपने पास रहने के लिए कहा। भगवान ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया और राक्षस राजा के साथ रहने लगे। लेकिन, भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी अपने मूल स्थान वैकुंठ लौटना चाहती थीं। इसलिए, उन्होंने राक्षस राजा बलि की कलाई पर राखी बांधी और उसे अपना भाई बनाया। वैकुंठ लौटते समय देवी लक्ष्मी ने बलि से अपने पति को प्रतिज्ञा से मुक्त करने और उसे वैकुंठ लौटने की अनुमति देने के लिए कहा। बलि ने यह स्वीकार कर लिया और भगवान विष्णु अपनी पत्नी देवी लक्ष्मी के साथ अपने निवास स्थान पर लौट आए।
इस प्रकार यह कुछ पौराणिक कथाएं है, जहां राखी का पर्व मनाने के विशेष परंपरा मानी जाती है।
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