समझनी है जिंदगी तो पीछे देखो, जीनी है जिंदगी तो आगे देखो…।
blog inner pages top

ब्लॉग

क्यों रखा जाता है वट सावित्री का व्रत? जानिए क्या है वट सावित्री कथा

Download PDF

प्रत्येक वर्ष जयेष्ठ महीने की अमावस्या के दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। वट सावित्री का यह व्रत महिलाएं, अपने पति की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखती है। इस वर्ष यह त्यौहार 30 मई सोमवार के दिन मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस मांगकर लाई थी।

क्यों रखा जाता है वट सावित्री का व्रत? जानिए क्या है वट सावित्री कथा

वैसे तो देशभर के अधिकांश हिस्सों में विवाहित स्त्रियाँ इस व्रत को रखती है, लेकिन उत्तर भारत की महिलाओंके लिए यह व्रत बहुत खास अहमियत रखता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखने के साथ ही वट यानी बरगद के वृक्ष की पूजा करती है, इसके अलावा वे सभी सावित्री और सत्यवान की कथा का भी श्रवण करती है।

आइए जानते है क्या है यह वट सावित्री व्रत कथा


वट सावित्री व्रत कथा


सावित्री नाम कैसे रखा गया

सावित्री राजा अश्वपति की पुत्री थी, राजा अश्वपति ने संतान के लिए कड़ी तपस्या की जिसके बाद माता सावित्री ने प्रसन्न होकर उन्हें एक पुत्री का वरदान दिया। चूंकि माता सावित्री की असीम कृपा से उनकी पुत्री का जन्म हुआ था, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का नाम सावित्री रख दिया। जैसे-जैसे राजकुमारी सावित्री बड़ी होने लगी तो उनके शादी के योग्य वर की तलाश शुरू हो गई,परन्तु उनके योग्य कोई वर नहीं मिला।


कैसे हुआ सावित्री का विवाह

इसके बाद सावित्री ने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पति के रूप मे चुना, जिसके थोड़े ही समय में नारद मुनि ने भविष्यवाणी कर बताया की- सत्यवान विवाह के 12 वर्ष बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। यह सुनकर भी उन्होने अपना निर्णय नही बदला और अपने पति सत्यवान और सास-ससुर के साथ खुशी-खुशी वन मे रहने लगीं।


सत्यवान के प्राण लेने आए यमराज

विवाह के बाद सावित्री वन में ही अपने परिवार के साथ रहने लगीं साथ ही उन्हें नारद मुनि भविष्यवाणी को भी नहीं भुला। भविष्यवाणी के दिन नजदीक आते ही सावित्री के व्रत आदि रखना शुरू कर दिए और आखिर वो दिन आ गया। एक दिन जब सत्यवान वन में लकड़ी काटने गए तो अचनाक उनकी तबियत बिगड़ गई और उनकी मृत्यु हो गई।


सावित्री ने मांगे 3 वरदान

जैसे ही यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे, सावित्री भी उनके पीछे जाने लगी। यमराज ने सावित्री को समझाने का बहुत प्रयास किया की यही संसार का नियम है, लेकिन सावित्री नहीं मानी और अपने पति के प्राणों के लिए प्राथना करने लगी। अपने पति के प्राणों के प्रति यह निष्ठा देखकर यमराज ने प्रसन्न होकर सावित्री से कोई 3 वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने यमराज से अपने सास-ससुर की आंखे, राज-पाठ और 100 पुत्रों का वरदान माँगा।


सावित्री की दिखाई चतुराई

इसके आगे की कथा में यमराज जब सारे वचन देकर सत्यवान को ले जाने लगें तो सावित्री फिर से उनका पीछा करने लगी, लेकिन इस बार यमराज उनसे थोड़ा रुष्ट हो गए तब सावित्री ने अपनी कुशाग्र बुद्धि का इस्तेमाल किया और यमराज से कहने लगीं '100 पुत्रो का वरदान जो आपने मुझे दिया है, वो भला मेरे पति के बिना कैसे संभव होगा' यह सुनते ही यमराज उनकी चतुराई से प्रसन्न हो गए और उन्होंने तुरंत सत्यवान के प्राण लौटा दिए। जिसके बाद सावित्री उन्हें वट पेड़ के नीचे ले गई और वे जीवित हो गए।

सावित्री अपने पति के प्राणों के लिए यमराज तक से भी लड़ गई थी, जिसके चलते महिलाओं के लिए वट सावित्री के इस व्रत के बहुत ही खास मायने है। जो भी महिलाएं सच्चे मन से इस व्रत को रखती है उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

वट सावित्री की यह कथा न सिर्फ प्रेरणादायक है बल्कि महिलाओं के दृढ़ संकल्प और सामर्थ्य को भी प्रदर्शित करती है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

डाउनलोड ऐप