पंचांग के अनुसार, कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी कहा जाता है। यह पर्व करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद मनाया जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत अहोई माता को समर्पित है, जो देवी पार्वती का ही एक स्वरुप है। यह व्रत माताएं अपनी संतान के अच्छे स्वास्थ्य, लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। इस तिथि को ‘अहोई आठें’ के नाम से भी जाना जाता है।
अहोई अष्टमी (ahoi asthami) के दिन माताएं अपने पुत्रों की कुशलता और दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। यह उपवास भोर काल से शुरू होकर गोधूलि बेला यानि सूर्यास्त तक चलता है। इसके बाद सायंकाल में तारों के दर्शन के बाद यह व्रत खोला जाता है।
करवा चौथ की तरह ही अहोई अष्टमी का उपवास (ahoi asthami ka vrat) भी बहुत कठिन माना जाता है। इस व्रत के दौरान कई महिलाएं दिनभर निर्जला उपवास का पालन करती है।
ऐसे माना जाता है कि सूर्योदय से पहले ही अहोई अष्टमी का व्रत शुरु हो जाता है। कार्तिक कृष्ण अष्टमी के दिन माताएं दीवार पर अहोई माता की चित्र बनाकर उसकी पूजा करती है। जिसके बाद अहोई अष्टमी व्रत कथा सुनकर यह व्रत सम्पन्न होता है।
विक्रम संवत कैलेंडर के अनुसार, इस साल अहोई अष्टमी का व्रत सोमवार, अक्टूबर 13, 2025 (Ahoi Ashtami 2025 date) को रखा जाएगा।
यह तिथि 13 अक्टूबर (Ahoi Ashtami 2025 date and time) को दोपहर 12:24 बजे से शुरू होगी। वही इस तिथि का समापन अगले दिन यानि 14 अक्टूबर 2025 सुबह 11 बजकर 09 मिनट पर होगा।
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त - शाम 05:53 से शाम 07:08 बजे तक
अवधि - 01 घंटा 15 मिनट
गोवर्धन राधा कुंड स्नान मुहूर्त - सोमवार, 13 अक्टूबर 2025
द्रिक पंचांग के अनुसार, अहोई अष्टमी पर तारे देखने का समय शाम 6:17 बजे है। वही इस दिन चंद्रोदय का समय रात 11 बजकर 20 मिनट रहेगा।
• अहोई अष्टमी व्रत के दिन माताएं अपनी संतान के लिए निर्जला उपवास रखती हैं।
• इस पूजा के लिए सबसे पहले अहोई माता की तस्वीर दीवार पर लगाई जाती है।
• फिर माता के बाई ओर जल से भरा कलश रखा जाता है। कलश के चारों ओर पवित्र लाल धागा बाँधा जाता है।
• इसके बाद कलश के सभी कोनों पर हल्दी लगाई जाती है।
• अहोई माता को हल्दी, कुमकुम अक्षत लगाने के बाद सभी महिलाएं अहोई अष्टमी व्रत कथा सुनती हैं।
• इस दिन प्रसाद के रूप में थाली में कुछ अनाज, हलवा, पूरी, उबले हुए चने और ज्वार रखे जाते हैं।
• कथा के बाद अहोई माता कि आरती की जाती है। फिर प्रसाद घर के बच्चों और परिवारजनों में बांटा जाता हैं।
अहोई अष्टमी का यह व्रत (Ahoi Ashtami vrat) संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि का प्रतीक है। इसके साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का विशेष महत्व बताया जाता है। आप भी विधि-विधान से अहोई अष्टमी व्रत का पालन करें और अपनी संतान की मंगल कामना के लिए प्रार्थना करें।