दक्षिण भारत हिस्सों में मनाएं जाने वाले प्रमुख त्यौहारों में से एक है कार्तिक दीपम। कार्तिक दीपम को कार्तिगई दीपम के नामा से भी जाना जाता है। जिस प्रकार उत्तर भारत में दीपवाली का त्यौहार महत्वपूर्ण माना जाता है, उसी प्रकार कार्तिक दीपम के पर्व का दक्षिण भारत में बहुत महत्व समझा जाता है। यह त्यौहार तमिल नाडु समेत कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल में बड़े हर्षोलास के साथ मनाया जाता है।
कार्तिक दीपम के उत्सव के दिन सभी लोग सुबह जल्दी उठकर अपने घरों की साफ़ सफाई करते है और रंगोली बनाते है। इसके बाद शाम को अपने घरों के बाहर मिट्टी के दीये जलाते है। दक्षिण भारतीय कैलेंडर के अनुसार कार्तिगई महीने ने यह त्यौहार मनाया जाता है, वहीं हिन्दू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पूर्णिमा के दिन इस त्यौहार का आयोजन किया जाता है। आइये जानते है, साल 2022 में यह त्यौहार कब मनाया जाता है और इसे मनाएं जाने के पीछे की कथा क्या है-
कार्तिक दीपम का यह त्यौहार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस साल 6 दिसंबर 2022 के दिन यह पर्व मनाया जाएगा।
कार्तिक दीपक मनाएं जाने के पीछे बहुत सी कथाएं प्रचलित है। इन्ही कथाओं में से एक कथा, जो सबसे अधिक प्रचलित है, वह इस प्रकार से है-
इस संसार के शुरुआत से पहले ब्रह्म का भेद बताने के लिए भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। उस समय ब्रह्मा और विष्णु में इस बात की होड़ लगाई की उन दोनों में कौन अपने आप को श्रेष्ठ साबित करेगा। तभी एक आकाशवाणी हुई की जो भी भगवान शिव की इस ज्योति के आदि या अंत का पता करेगा उसे ही श्रेष्ठ घोषित किया जाएगा। जहां भगवान विष्णु वाराह रूप में शिवलिंग के आदि का पता करने के लिए धरती खोदकर पाताल की ओर जाने लगे, वही ब्रह्मा हंस के रूप में अंत का पता लगाने आकाश में उड़ चले। ऐसा करते हुए कुछ सालों का समय बीत गया, लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद भी वह दोनों आदि अंत का पता नहीं कर पाए। भगवान विष्णु ने अपनी हार को स्वीकार किया लेकिन ब्रह्माजी ने भगवान शिव के शीश से आने वाले केतकी के पुष्प से पूछा कि शिवलिंग का अंत कहां है? केतकी ने उत्तर दिया- वह युगों से नीचे गिरता चला आ रहा है लेकिन अंत का पता अभी तक नही चल पाया है। ब्रह्माजी को पराजित होने का भय हुआ, जिस कारण उन्होंने लौटकर झूठ कह दिया की उन्हें शिवलिंग के अंत का पता कर लिया है। ब्रह्माजी के झूठ से सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया और भगवान शिव के ज्योर्तिलिंग ने प्रचंड रूप धारण कर लिया। तब सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से शमा याचना मांगी और उनके द्वारा की गयी क्षमा याचना से वह ज्योति तिरुमल्लई पर्वत पर अरुणाचलेश्व लिंग के रूप में स्थापित हो गई। माना जाता है, तभी से दक्षिण भारत में इस त्यौहार को मनाने की परंपरा शुरू हुई।
डाउनलोड ऐप