सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को सक्रांति तिथि के रूप में जाना जाता है। मिथुन संक्रांति(mithuna sankranti 2023) के दिन भगवान सूर्य वृषभ राशि से मिथुन संक्रांति में प्रवेश करते है। दक्षिण भारत में इस पर्व को ' मिथुन संक्रमणम' के नाम से जाना जाता है। हिन्दू सभ्यता में मिथुन सक्रांति के इस पर्व की बहुत महत्ता बताई जाती है। जहां दक्षिण भारत में इस पर्व को ' मिथुन संक्रमणम' के नाम संबोधित किया जाता है, वही भारत के उड़ीसा राज्य में इस त्यौहार को 'राजा संक्रांति' के रूप में मनाया जाता है।
प्रत्येक वर्ष में 12 सक्रांति मनाई जाती है, इन सभी सक्रान्तियों में सूर्य अलग-अलग राशियों पर विराजमान होता है। हिन्दू धर्म इन सभी संक्रांति के दिन में दान-दक्षिणा, स्नान, पुन्य का विशेष महत्व बताया जाता है। ऐसा माना जाता है, सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश करते ही सौर मंडल में भी परिवर्तन आता है। इस परिवर्तन के अनुसार, गर्मी की ऋतू खत्म होती है और वर्षा ऋतू प्रांरभ हो जाती है। आइये जानते है इस साल मिथुन सक्रांति की तिथि, समय, महत्व व कहानी-
हर साल आषाढ़ मास में मिथुन व राजा सक्रांति का यह पर्व मनाया जाता है। इस साल मंगलवार के दिन, 15 जून 2023 (mithuna sankranti 2023 date) को मिथुन सक्रांति का यह पर्व मनाया जाएगा। कई राज्यों में यह पर्व, पुरे चार दिनों तक मनाया जाता है। इन चार दिवसीय पर्व के नाम इस प्रकार से है-
पुण्यकाल मुहूर्त | सुबह 11:58 AM से दोपहर 12:49 PM तक |
महा पुण्यकाल मुहूर्त | 15 जून 2023, सुबह 11:52 से दोपहर 12:16 |
मिथुन संक्रांति सूर्य के मिथुन या मिथुन राशि में जाने के अवसर को चिन्हित करती है, जिसे ‘मिथुन संक्रमणम’ (mithun sankranti ka mehtav) के नाम से जाना जाता है। यह हिन्दू परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार सबसे शुभ अवसरों में से एक है। यह पूरे ओडिशा में कृषि वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। इस त्यौहार पर लोग आमतौर पर पहली बारिश का स्वागत करते है। मिथुन संक्रांति के लिए, संक्रांति के बाद की सोलह घटी शुभ मानी जाती हैं, और यह समय दान-पुण्य के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
मिथुन संक्रांति के दौरान वस्त्र दान करना पुण्य फल प्रदान करता है। इस दिन भक्त बारिश के बाद अच्छी फसल के लिए भगवान से प्रार्थना करते है। ऐसा माना जाता है कि राजा परबा या मिथुन संक्रांति (mithuna sankranti) को उपवास करने से भगवान सूर्य को प्रसन्न होते है और जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और खुशी का भी संचार करते है।
मिथुन संक्रांति चार दिनों तक मनाई जाती है। इस त्यौहार से जुड़ी एक मान्यता लोक कथा बताई जाती है। इस कथा के अनुसार, जिस प्रकार महिलाओं को हर महीने मासिक धर्म होता है, उसी प्रकार इन तीन दिनों की अवधि में पृथ्वी या भूदेवी को भी इसी दौर से गुजरना होता है। इसके बाद चौथे दिन देवी को भव्य स्नान कराया जाता है, जिसे वसुमती गढ़ुआ के उत्सव के रूप में जाता है। स्नान उत्सव के बाद भूदेवी से अच्छी फसल की कामना की जाती है। कहा जाता है, पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर में चांदी से निर्मित देवी भूदेवी की भव्य मूर्ति स्थापित की गयी है।
मिथुन संक्रांति के मुख्य अनुष्ठान क्या है?
मिथुन संक्रांति(mithuna sankranti 2023) पर भगवान विष्णु और देवी पृथ्वी की पूजा की जाती है। इस दिन भक्त नए वस्त्र पहनते है, और धरती मां की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन पत्थर को देवी के रूप में फूलों और सिंदूर से सजाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी वर्षा प्राप्त करने के लिए तैयार हो जाती है। मिथुन सक्रांति के दिन बरगद के पेड़ की छाल पर झूला बांधा जाता है और लड़कियां उस पर झूलने का आनंद लेती है। इस दिन पितरों को श्राद्ध देना पवित्र माना जाता है।