सूरदास जयंती (surdas jayanti 2023) का दिन भगवान कृष्ण के उपासक और महान संत सूरदास के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। संत सूरदास जन्म से ही दृष्टिहीन थे। लेकिन भगवान कृष्ण की भक्ति उनमें इस प्रकार समाहित थी की, श्री कृष्ण ने उन्हें अंतर्मन में आकर दर्शन दिए थे। सूरदास ने अनेकों मधुर गीतों की रचना की थी। उनकी इन्हीं रचनाओं में से एक "सूर सागर" विश्वभर में प्रसिद्ध मानी जाती है।
सूरदास जयंती (surdas jayanti 2023) संत सूरदास के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, महान संत सूरदास जी की जयंती हर साल वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी को आती है। इस साल सूरदास जयंती, मंगलवार 25 अप्रैल 2023 (surdas jayanti 2023 date) को मनाई जायेगी।
सूरदास जयंती शुरुआत और समापन समय इस प्रकार से है-
पंचमी तिथि प्रांरभ - अप्रैल 24, 2023 08:24 AM से
पंचमी तिथि समापन - अप्रैल 25, 2023 09:39 AM तक
सूरदास जयंती का यह दिन एक महत्वपूर्ण माना जाता है। सूरदास जी जन्म से ही दृष्टिहीन थे, लेकिन फिर भी उन्होंने भगवान कृष्ण को समर्पित भजन एवं गीतों की उत्कृष्ट रचना की थी। ऐसा कहा जाता है कि सूरदास जी ने हजारों से अधिक रचनाओं का निर्माण किया, जिनमें से 8,000 अभी भी जीवंत है।
• सूरदास ने हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु अनेकों प्रयास किए। इस लड़ाई में उनका एकमात्र हथियार भक्ति था।
• सूर सागर जैसी प्रसिद्ध साहित्यिक रचना के अलावा, सूरदास जी को अन्य साहित्यिक कार्य जैसे सुर-सारावली और साहित्य-लाहिड़ी के लिए भी जाना जाता है।
• ऐसा माना जाता है कि सूरदास जी की ख्याति मुगल दरबारों में तक व्याप्त थी। जिसके चलते उस समय में मुगल बादशाह अकबर में भी उनके बहुत बड़े प्रशंसक हुआ करते थे।
• सूरदास के जन्म और मृत्यु के संबंध में इतिहासकारों और विद्वानों का कोई एक मत नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार सूरदास का जन्म 1479 ईस्वी में हुआ था और सन 1586 में उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया दिया था।
• किंवदंती के अनुसार, संत सूरदास जी को सपने में भगवान कृष्ण के दर्शन हुए और श्री कृष्ण ने उन्हें वृंदावन जाने के लिए कहा। वहाँ उन्हें श्री वल्लभाचार्य के रूप में एक गुरु मिले, जो भगवान कृष्ण के प्रबल भक्त थे। हिंदू शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने के बाद, सूरदास ने वृंदावन में भगवान कृष्ण को समर्पित भक्ति गीत गाना शुरू किया।
सूरदास जयंती (surdas jayanti 2023) का यह पर्व मुख्य रूप से भारत के उत्तरी भाग में मनाया जाता है। इस दिन भक्त सूरदास जी का समरण कर, भगवान कृष्ण की पूजा और प्रार्थना करते है। इस दिन खास तौर पर वृंदावन के कुछ मंदिरों में खास कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।