समझनी है जिंदगी तो पीछे देखो, जीनी है जिंदगी तो आगे देखो…।
vrat kahtae inner pages

व्रत कथाएँ

निर्जला एकादशी व्रतकथा! Nirjala Ekadashi Vrat Katha

Download PDF

हिन्दू सनातन धर्म में एकादशी के व्रत का बहुत अधिक महत्व बताया जाता है। वैसे तो साल में बहुत सारे एकादशी व्रत होते है, लेकिन निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है।

निर्जला एकादशी व्रतकथा! Nirjala Ekadashi Vrat Katha

हिन्दू सनातन धर्म में एकादशी के व्रत का बहुत अधिक महत्व बताया जाता है। वैसे तो साल में बहुत सारे एकादशी व्रत होते है, लेकिन निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस व्रत में जल पीना वर्जित होता है इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। इस व्रत को रखने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है।

इस व्रत के बारे में यह मान्यता बताई जाती है की यदि आप साल-भर में पड़ने वाली 24 एकादशियों का व्रत नहीं भी कर पाते है तो इस व्रत से आप उन सभी के पुण्य एकसाथ प्राप्त कर सकते है।


निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadashi Vrat Katha

एक दिन वेद व्यास ने पांचो पांडवो को चारों पुरुषार्थ को देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया, जिसके बाद पांडवो में सबसे बड़े युधिष्ठिर ने कहा- हे जनार्दन! कृपया, ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में आने वाली एकादशी का वर्णन कीजिए। इस बात का जवाब देते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन् ! इसका वर्णन परम पिता व्यासजी ही कर सकते है, क्योंकि वे ही सम्पूर्ण शास्त्रों के ज्ञाता होने के साथ ही वेद वेदांगों में भी पारंगत हैं।

इस बात के उत्तर में वेदव्यासजी ने कहा- कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में अन्न ग्रहण करना वर्जित है। द्वादशी के दिन स्नान आदि करने के बाद पवित्र होकर भगवान विष्णु की पूजा करें। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन देने के पश्चात ही स्वयं भोजन करें।

वेदव्यासजी के इन वचनों को सुनकर भीमसेन ने कहा - हे पितामह! मेरा एक मत सुनिए। माता कुंती, राजन युधिष्ठिर, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये सभी एकादशी का व्रत रखते है और इस दिन अन्न भी ग्रहण नहीं करते तथा मुझे भी ऐसा ही करने को कहते है परन्तु मैं उन सभी से यही कहता हूँ की भूख मुझसे सहन नहीं होती।

तब वेदव्यासजी कहते है- यदि तुम स्वर्गलोक की प्राप्ति करना चाहते हो और नरक को दूषित समझते हो तो तुम्हे शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशियों के दिन भोजन को त्यागना पड़ेगा।

आगे भीमसेन वेदव्यासजी जी से कहते है - आदरणीय पितामह! मैं आपसे सत्य वचन कहता हूँ। मुझसे दिन में एक बार भोजन करने के बाद भी व्रत नहीं किया जाता,तो उपवास करना मुझे असंभव सा प्रतीत होता है। मेरे पेट में वृक नाम की अग्नि हमेशा ही प्रज्वलित रहती है, जिसके चलते मुझे बहुत अधिक भोजन ग्रहण करना पड़ता है, उसके बाद ही यह शांत होती है। अत: महामुनि! मेरे लिए कोई ऐसा एक व्रत निश्चय करके बताइये, जिसे साल में सिर्फ एक बार रखने से मेरे स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग सुलभ हो सके। मैं पूरे मन और निष्ठा से इस व्रत का पालन करूंगा।

वेदव्यासजी ने भीम से कहा- भीम! ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, जब सूर्य या तो वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, इस दिन तुम पूरे यत्न के साथ निर्जल व्रत रखों। जल तभी ग्रहण करों जब तुम्हे कुल्ला या आचमन करना हो, इसके अन्यथा किसी भी अन्य प्रकार से जल ग्रहण करने से यह व्रत खंडित हो जाएगा। एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक यदि व्यक्ति जल का त्याग करता है तो ही व्रत पूर्ण माना जाएगा। इसके बाद द्वादशी के दिन स्नान करने के बाद ब्राह्मणो को भोजन करवाने के पश्चात दान आदि करें फिर भोजन ग्रहण करें। ऐसा करने से सालभर में जितनी भी एकादशियां आती है, उन सब का फल केवल एक निर्जला एकादशी से मनुष्य प्राप्त कर सकता है, इसमें कोई भी शंका भी नहीं है। गदा, शंक,एवं चक्र को धारण करने वाले भगवान विष्णु ने स्वयं मुझसे कहा था कि 'यदि मनुष्य सब त्यागकर मेरी शरण में आ जाए और एकादशी को निराहार व्रत करें तो वह निश्चित ही सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

वेदव्यासजी आगे कहते है- हे कुन्तीनन्दन! निर्जला एकादशी के दिन अब जो दान का महत्व बतया गया है उसे ध्यान से सुनो! उस दिन जल में विराजमान भगवान विष्णु के पूजन के साथ जलमयी धेनु यानी पानी में खड़ी हुई गऊ का दान करना चाहिए, इसके अलावा अन्य किसी गाय का दान भी कर सकते है। इस दिनको ब्राह्मणों को भोजन आदि से सन्तुष्ट करना चाहिए क्योकि उनके संतुष्ट होने पर ही भगवान विष्णु मोक्ष प्राप्ति के मार्ग खोलते है।

जो भी मानव भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही रात्रि के समय जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी के व्रत को रखता है, वे न केवल स्वयं को अपितु अपने साथ अपनी सौ पीढ़ियों को भी भगवान श्री हरी के परम धाम में पहुँचा देते है। निर्जला एकादशी के दिन दान का भी महत्व है, इस दिन अन्न के साथ वस्त्र, गाय , जल, शैय्या, आसन, कमण्डल व छाता आदि दान करने चाहिए। जो भी व्यक्ति ब्राह्मण को जूते दान में देते है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक पहुँचता है।

भीम! ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की इस निर्जला एकादशी के व्रत करता हैं वह मनुष्य भगवान हरि के पास पहुँचकर हर्ष का अनुभव करता है। इस तरह से जो भी पूरे मन से पाप को नाश करने वाले इस एकादशी के व्रत को करते है, वह सभी पापों से मुक्त होकर आनंद को प्राप्त होता है।

वेदव्यासजी से यह वचन सुनकर पाण्डुपुत्र भीम ने भी इस शुभ एकादशी के व्रत को रखना शुरू कर दिया।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

डाउनलोड ऐप

TAGS