नारद मुनि ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और भगवान विष्णु के महान भक्त माने जाते हैं। सनातन धर्म में नारद मुनि के बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। ऐसे में यहां हम नारद जी की भाग्य और धन से जुड़ी इस प्रेरणादायक कहानी के बारे में यहां बताने जा रहे है, तो इसे अंत तक अवश्य पढ़े-
एक समय की बात है, एक आदमी ने नारदमुनि को रोका और उनसे प्रश्न किया- 'मेरे भाग्य में कितना धन है?'
उस व्यक्ति को उत्तर देते हुए ने कहा-कल मैं अपने आराध्यभगवान विष्णु से इस प्रश्न का उत्तर पूछूंगा।
अगले दिन, जब नारद मुनि इस व्यक्ति से मिले, तो उन्होंने उसे उत्तर दिया और कहा, "प्रतिदिन एक रुपया तुम्हारा भाग्य है।"
जब उस व्यक्ति ने नारद मुनि से यह उत्तर सुना तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। क्योंकि सिर्फ एक रुपये से उसकी जरूरतें पूरी हो जाती थीं।'
एक दिन उसके मित्र ने कहा, “मैं तुम्हारे सादे जीवन और ख़ुशी से बहुत प्रभावित हूँ और मैं अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ।” उस आदमी ने कहा, “इस बात का स्मरण रहे कि मेरी आय एक रुपया प्रतिदिन है और तुम्हारी बहन के इसी आमदनी में गुजारा करना है।
मित्र ने कहा कि कोई दिक्कत नहीं है, मुझे ये रिश्ता मंजूर है. अगले दिन से उस आदमी की आय बढ़कर 11 रुपये हो गई। उन्होंने नारदमुनि को बुलाया और कहा- हे मुनिवर, मेरे भाग्य में तो एक रुपया लिखा है, फिर मुझे ग्यारह रुपये कैसे मिल रहा है?
तब नारदमुनि ने कहा: क्या तुम्हारा कही रिश्ता हुआ है ?
तब नारद मुनि को उत्तर देते हुए उन्होंने कहा- जी, हां!
तो यह 10 रुपये तुमको उस कन्या के भाग्य के मिल रहे है। इन पैसो को तुम जोड़ना शुरू करो, तुम्हारे विवाह में काम आएंगे, नारद जी बोले।
शादी के कुछ समय बाद उनकी पत्नी गर्भवती हो गई और उनकी आय 11 रुपये से बढ़कर 31 रुपये हो गई।
फिर उन्होंने नारदमुनि को बुलाया और कहा, “मुनिवर, मुझे और मेरी पत्नी को हमारे भाग्य से 11 रुपये मिल रहे थे, लेकिन अब मुझे 31 रुपये क्यों मिल रहे है? क्या मैं कोई अपराध कर रहा हूँ?
तब नारद मुनि ने उत्तर देते हुए कहा: तुम्हे अपने बच्चे की किस्मत से अतिरिक्त 20 रुपये मिल रहे है।
हर इंसान की अपनी किस्मत होती है। हम नहीं जानते कि धन घर कौन लाया। लेकिन लोगों में अहंकार होता है जो कहता है, "मैंने इसे बनाया, मैंने इसे कमाया, यह मेरा है, मैं इसके लायक हूं, यह मेरी वजह से हो रहा है।"
ऐसे में आज की प्रेरणादायक कहानी (prerak kahaniya in hindi) हमें सिखाती है कि जब भी हम जीवन में कुछ भी हासिल करें तो सबसे पहले भगवान का शुक्रिया अदा करें और फिर अपने परिवार का। इसके साथ ही 'मैं' जैसे अहम में नहीं रहे।
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