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आपके जन्म के साथ आते हैं ये 5 ऋण, इन्हे चुकाना है बेहद ज़रूरी

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यदि आप यह सोचते हैं की आपने किसी से कोई भी क़र्ज़ नहीं लिया है और आप कर्जमुक्त हैं तो ये आपकी गलत फहमी है। इंसान के जन्म लेते ही उसपे 5 क़र्ज़ या ऋण चढ़ जाते हैं। मनुष्य को अपने जीते-जी इन ऋणों से मुक्त होना चाहिए अन्यथा यह भोझ आपको परशानी में दाल सकता है। यदि आप सोच रहे हैं की यह ऋण कौन कौनसे हैं तो नीचे इन सभी ऋणों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

आपके जन्म के साथ आते हैं ये 5 ऋण, इन्हे चुकाना है बेहद ज़रूरी

1. मातृ ऋण (Matri Rin)

शास्त्रों में माँ का दर्जा भगवान से भी ऊंचा दिखाया गया है। मातृ ऋण चुकाना हम सभी का कर्तव्य होना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार मातृ ऋण में आपको अपनी माँ और मातृ पक्ष के लोग जैसे नाना - नानी, मामा - ममी, आदि, से कोई भी अपशब्द नहीं कहना चाहिए। आपको अपनी माँ को कभी भी दुख नहीं देना चाहिए, और अगर आपकी माँ दुखी है तो आपको उन्हें संभालना चाहिए। ऐसा करने से आप मातृ ऋण चूका सकते हैं। अब यदि आप अपनी माँ से प्यार करते हैं, तो ये सब करना आपके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी। ऐसा नहीं करने से आपको पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट झेलना पद सकता है और परिवार में क्लेश होते रहते हैं।


2. पितृ ऋण (Pitra Rin)

पिता मेहनत करके पूरे परिवार का सहारा बनता है (कुछ घरों में माता - पिता दोनों और कहीं केवल माँ)। पितृ ऋण में दादा - दादी, ताऊजी, चाचाजी और इनके पहले की तीन पीढ़ीयों के लोग शामिल होते हैं। पितृ ऋण चुकाने के लिए हमें पितृ भक्त बनना चाहिए। पितृ पक्ष में किसी को भी अपशब्द नहीं कहना चाहिए और पिता को मदद करनी चाहिए, चाहे वो आर्थिक रूप में हो या किसी और रूप में। ऐसा नहीं करने से मनुष्य को पितृ दोष लगता है और इसके प्रभाव से जीवन में आर्थिक तंगी, संतानहीनता एवं शारीरिक कष्टों का सामना करना पद सकता है।


3. देव ऋण (Dev Rin)

माना जाता है की देव ऋण भगवन विष्णु का है। इसे चुकाने के लिए हमें बिना किसी लालच के दान करना चाहिए जैसे की गायों को चारा खिलाना, गरीबों को कपडे या खाना देना, आदि। जो लोग धर्म का अपमान करते हैं या धर्म के नाम पे ब्रह्म फैलाते हैं उनपे भगवान विष्णु क्रोधित हो जाते हैं और उनपे यह ऋण चढ़ जाता है। इसे उतारने के लिए भगवान विष्णु, हनुमान जी या कृष्ण जी की पूजा करें, मंत्र का जाप करें।


4. ऋषि ऋण (Rishi Rin)

ऋषि ऋण भगवान शंकर से जुड़ा हुआ है। हम सभी का गोत्र किसी न किसी ऋषि से जुड़ा होता है और इसी लिए हम किसी भी यज्ञ में हमारे गोत्र का नाम लेते हैं जिससे हम यह दर्शाते हैं की वह ऋषि भी हमारे साथ यज्ञ में उपस्तिथ हैं। इतना ही नहीं, ऋषि ऋण तब भी उतारा जा सकता है जब हम वेद, उपनिषद और भगवदगीता को पढ़ कर उसका ज्ञान सभी में बाटें।


5. मनुष्य ऋण (Manushya Rin)

भगवान ने हमें मनुष्य रूप में जन्म दिया है तो उनका उपकार मानते हुए हमें मनुष्य ऋण ज़रूर चुकाना चाहिए। समाज की सेवा करने से, हम जिस जानवर का दूध पीते हैं उनकी सेवा करने से, या कोई जानवर जो किसी भी रूप में सेवा करता है उसकी सेवा करने से ही मनुष्य ऋण उतारा जा सकता है।

(नोट: ऊपर दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। धर्मसार इनमें से किसी की भी पुष्टि नहीं करता।)


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