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हिन्दू मंदिरों में प्रवेश करने से पहले जानें ये 3 नियम

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मंदिर हम सभी की ज़िन्दगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहाँ आके हमारे मन को शांति मिलती है और बहुत से अन्य लोगों से मुलाकात भी होती है। यहाँ हमें विद्वानों से ज्ञान प्राप्त होता है, हम मंत्र का जाप कर सकते हैं और भगवान के नाम पर भजन संध्या भी रख सकते हैं। परंतु मंदिरों के अपने कुछ ख़ास नियम होते हैं।

हिन्दू मंदिरों में प्रवेश करने से पहले जानें ये 3 नियम

मंदिर शिष्टाचार

हज़ारों लाखों वर्षों से मंदिरों का निर्माण किया जाता आ रहा है। मंदिरों में मनुष्य खुद को सुरक्षित मानता है क्योंकि वह ऐसा सोचता है की अब वो भगवान की शरण में है और वे ही उसकी रक्षा करेंगे। ज़्यादातर मंदिरों में भगवान के किसी एक रूप की विशेष रूप से पूजा की जाती है। मंदिर लोगों के साथ मिलने जुलने की जगह भी होती है जहाँ आप साथ मिलकर पूजा कर सकते हैं।

सभी धर्म हमें यही सिखाते हैं की हम सब एक हैं। हिंदुत्व में भी यही सिखाया जाता है। इसलिए जिसके मन में भी भगवान के लिए प्रेम है उन्हें हिन्दू मंदिरों में कभी भी प्रवेश मिल सकता है। परंतु प्रवेश करने के साथ साथ हमें यह भी ध्यान रखना होगा की मंदिर एक पवित्र स्थान है और यह हमारी ज़िम्मेदारी है की हम इसकी पवित्रता बनाये रखें। कुछ नियमों का पालन करने मात्र से ही हम मंदिरों की पवित्रता कायम रख सकते हैं।

पहला नियम यह है की मंदिर में प्रवेश करने से पहले आप साफ़-सुथरे हों अर्थार्थ आप मंदिर में स्नान करके ही प्रवेश करें और आपके वस्त्र भी शालीन होने चाहिए। शालीन का मतलब यह है की आपने शॉर्ट्स नहीं पेहने हों और आपके दोनों कंधे ढके हुए होने चाहिए। इससे हम मंदिरों की गरिमा बनाये रख सकते हैं कर सकते हैं।

हम सभी यह मानते हैं की मंदिर भगवान का घर होता है और जब हम वहां प्रवेश करते हैं तो हम उस घर में अतिथि होते हैं। तो मंदिर में प्रवेश करने का दूसरा नियम जिसका सभी अतिथियों को पालन करना चाहिए वह यह है की मंदिर में प्रवेश करने से पहले जूते-चप्पल उतार दिया जाएं। यह स्थान कुछ मंदिरों के परिसर के बहार होता है और कुछ मंदिरों में इसका एक निर्धारित स्थान बना दिया जाता है। गंदे जूते उतारना ऊपर वाले नियम को सिद्ध करता है जो आपको साफ-सुथरा मंदिर में प्रवेश करने की सलाह देता है।

किसी के घर में प्रवेश करने से पहले आप वहां के दरवाजे पर लगी घंटी बजाते हैं या दरवाजा खटखटाते हैं। ऐसे मंदिर में प्रवेश करने से पहले भी करना चाहिए। अधिकतम मंदिरों में प्रवेश द्वार पर एक पीतल की घंटी होती है। इसे बजाने से आप भगवान को यह सूचित करते हैं की आप उनसे मिलने आए हैं और वे आपकी बात सुनें।

अतिथि के घर से जाते समय उन्हें धन्यवाद कहना अच्छे संस्कार होते हैं। ऐसा आपको मंदिर में भी करना चाहिए। भगवान की पूजा करने के पश्चात शीश को ज़मीन पर लगाना चाहिए और भगवान को शुक्रिया कहना चाहिए। यह आपके नम्र स्वभाव की पहचान है।

किसी से मिलने जाते हैं तो आप भी कोई भेंट अवश्य लेके जाते होंगे। यह आपके अच्छे व्यक्तित्व की पहचान है। मंदिर में भी भगवान के लिए फूल, फल, आदि वस्तुएं अवश्य लेके जाएं। इस बात का भी ध्यान रखें की ऐसा ज़रूरी नहीं है की आप यह लेके जाना अनिवार्य है। आप अपनी भक्ति के अनुसार इसका चयन कर सकते हैं।


देवता पूजा

आप अपने किसी भी रिश्तेदार या मित्र से हफ्ते के किसी भी दिन मिल सकते हैं तो कुछ लोग भगवान के लिए यह नियम क्यों नहीं मानते है? क्यों ऐसा होता है की बहुत से लोग केवल मंगलवार के दिन ही हनुमान जी के मंदिर जाते हैं या उसी दिन हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं? किसी एक भगवान को हफ्ते के किसी एक दिन पूजने का क्या अर्थ? आपकी श्रद्धा अनुसार आप जिस भी भगवान के भक्त हैं आप उनकी रोज़ पूजा करें और हो सके तो सभी की करें।

मंदिरों में आरती या पूजा के बाद प्रसाद वितरित किया जाता है। भगवान की मूर्तियों के आगे उनके मन पसंद भोजन जैसे गणेश जी के लिए लड्डू का भोग लगाया जाता है। साथ ही फूल, पानी, कुछ और भोजन सामग्री, धुप भी रखी जाती है। इससे आप अपनी ख़ुशी से भगवान के समक्ष अपनी भक्ति सिद्ध करते हैं। अधिकतम सभी मंदिरों में पूजा करने के लिए कोई ना कोई पुजारी होते ही हैं। वे आपकी ओर से भगवान की मूर्ति के पास जाते हैं और आपकी लायी हुई भेंट जैसे नयी पोशाक, भोजन, माला, आदि भगवान को अर्पण करते हैं। भोजन का लगा हुआ भोग, या तो सम्पूर्ण रूप से उसी को दिया जाता है जो वह भोग लाया था, और यदि ऐसा नहीं होता है तो यह भोग प्रसाद के रूप में वहां उपस्थित भक्तों में या मंदिर के आसपास ज़रूरतमंदों में बाँट दिया जाता है। प्रसाद लेने का नियम यह है की आपको प्रसाद दोनों हाटों से ग्रहण करना चाहिए और आपका दायाँ हाथ बाएं के ऊपर होना चाहिए।

एक मंदिर में, देवता का रूप देखा जा सकता है; चढ़ाए गए फूलों और धूप को सूंघ सकते हैं; पानी और प्रकाश को महसूस किया जा सकता है; भोजन का स्वाद चखा जा सकता है; और पूजा के समय बजने वाली घंटी की आवाज सुनी जा सकती है। इस तरह, व्यक्ति की सभी इंद्रियां आध्यात्मिक रूप से जीवंत हो सकती हैं।


मंत्र ध्यान और सामूहिक जप

अधिकांश हिंदू मंदिर पूजा, पूजा और विभिन्न अनुष्ठान, आमतौर पर प्रकृति में सामूहिक नहीं होते हैं। सेवा में शामिल होने वाले लोगों के लिए पुजारी द्वारा कोई उपदेश या वार्ता नहीं होती है, जैसा कि आप अन्य धार्मिक परंपराओं में पाते हैं।

हालांकि, कुछ मंदिरों और समुदायों में, पूजा का एक महत्वपूर्ण पहलू है जो प्रकृति में सामूहिक है।

वैदिक शिक्षाओं के अनुसार, ध्वनि सृष्टि की पहली और सबसे सूक्ष्म परत है। इस वजह से, मंत्र ध्यान को एक अत्यंत शक्तिशाली तरीका माना जाता है जिससे व्यक्ति अपनी चेतना को सकारात्मक रूप से बदल सकता है।

संस्कृत शब्द "मंत्र", "मनुष्य" (मन) और "त्र" (उद्धार करने के लिए) की जड़ों से, भौतिक पीड़ा से मन की मुक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। नतीजतन, पूरे विश्व में हिंदू मंदिरों में आमतौर पर मंत्र ध्यान का अभ्यास किया जाता है। आमतौर पर एक प्राकृतिक पदार्थ से बने मोतियों पर गिना जाता है, भक्त अपने विचारों, शब्दों और कार्यों को शुद्ध करने के साथ-साथ अंततः सर्वोच्च से जुड़ने के तरीके के रूप में भगवान के नामों का जप करते हैं।

संगीत में भी मंत्र ध्यान लगाया जा सकता है। इस प्रकार के जप को कीर्तन कहा जाता है और एक कॉल और प्रतिक्रिया फैशन में अभ्यास किया जाता है, जिसमें एक व्यक्ति नेतृत्व करता है, जबकि बाकी मण्डली इसका पालन करती है। गीत के माध्यम से कोई व्यक्ति न केवल और भी अधिक भावना के साथ भगवान को पुकार सकता है, उस व्यक्ति को दूसरों के साथ मिलकर गाने का अवसर भी मिलता है। एक समूह के रूप में ईश्वर को ईमानदारी से पुकारना एक शक्तिशाली रिश्तेदारी बनाता है जो सभी पृष्ठभूमि के लोगों को जोड़ता है और उनका उत्थान करता है। यदि संगीत सार्वभौम भाषा है तो कीर्तन वह माध्यम है जिसके द्वारा उस भाषा का सशक्त उपयोग किया जा सकता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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