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श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को क्यों छोड़ना चाहा? जानिये क्या कहा माता-पिता ने

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श्रवण कुमार की कहानी तो आप सभी ने सुनी ही होगी। उन्होंने अपना समस्त जीवन अपने अंधे माता-पिता की सेवा में लगा दिया था। स्वयं की परवाह न करते हुए वे अपने माता-पिता के सेवा में सदैव लगे रहे। यह कहना गलत नहीं होगा की वे अपने माता-पिता के भक्त थे।

श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को क्यों छोड़ना चाहा? जानिये क्या कहा माता-पिता ने

उन्होंने अपनी सेवा से एक उदाहरण स्थापित क्र दिया था जिसकी वजह से आज भी एक योग्य बेटे की तुलना श्रवण कुमार से की जाती है। सभी माता-पिता की यह इच्छा होती है की उनका बीटा भी उनकी उसी प्रकार सेवा और इज़्ज़त करे जैसे श्रवण कुमार करते थे। साधारण सी बात है की आज के समय में कोई भी पुत्र इतनी सेवा करने में सक्षम नहीं है। परन्तु इसका मतलब यह नहीं की वे माता-पिता की इज़्ज़त नहीं करते। वे अपनी नौकरी व अन्य कामों में इतना उलझ जाते हैं की उन्हें ज़्यादा सेवा करने का मौका नहीं मिल पता।

यदि हम इतने अच्छे पुत्र के लिए कुछ गलत भी कहें तो आपके लिए यकीन करना मुश्किल हो जायेगा। परन्तु एक कहानी श्रवण कुमार की ऐसी भी है जो आपने शायद ही कहीं सुनी व पढ़ी होगी। उनके मन में भी अपने माता-पिता के लिए अनुचित विचार उत्पन्न हो हाय थे। क्यों, आइये जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी।


क्यों आए थे श्रवण कुमार के मन में माता-पिता के प्रति कुविचार?

एक दिन श्रवण कुमार अपने बूढ़े माता-पिता को कांवर में बिठाकर तीर्थाटन के लिए निकले थे। चलते चलते वे गुजरात पहुंचे। शाम का समय हो चूका था तो उन्होंने विश्राम करने का सोचा। चूँकि वे नदी के किनारे थे, वहां से कोई भी गाँव नज़दीक ही होता। थोड़ा ढूंढने पे उन्हें दोहद नाम का एक गाँव मिला और वे वहीँ रुक गए।

विश्राम करते समय श्रवण कुमार के मन में कुछ अनुचित विचार उत्पन्न हुए। वे यह सोचने लगे की क्यों वे अपना सम्पूर्ण जीवन अपनी माता-पता की सेवा में लगा रहे हैं? क्या उनका जीवन माता-पिता की सेवा में ही निकल जायेगा? उन्हें ऐसा लगने लगा की अब उनके माता-पिता उनके लिए एक बोझ बन गए हैं। उन्हें ऐसा लगा की यही सही समय है की वे अपने माता पिता को इस गाँव में छोड़ कर अपनी इच्छा अनुसार जीवन यापन करने निकल जाना चाहिए।

सुबह जब उनके माता-पिता उठे तब उन्होंने यह विचार उनको बताया। यह सुनकर माता-पिता ने कुछ देर विचार किया और बिना विचलित हुए उन्होंने श्रवण कुमार से कहा की बेटा! तुम्हारा कहना बिलकुल सही है। हम तो अब वृद्ध हो चुके हैं, हमने तो अपना जीवन जी लिया है परन्तु तुम्हारे सामने तो सम्पूर्ण जीवन बाकी है। तुम हमारे लिए कब तक अपने सुखों को त्याग कर कष्ट सहते रहोगे। हमारी चिंता न करो। हमारा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहेगा और तुम जो भी कार्य करोगे उसमें तुम्हे सफलता अवश्य मिलेगी।

इतना कहकर माता-पिता ने श्रवण कुमार से अनुरोध किया की जाने से पहले वे उनको नदी के दूसरी ओर छोड़ दें जिससे वे वहीँ नदी किनारे अपना बचा हुआ जीवन व्यतीत कर सकें।

अपनी माता-पिता का कहा मानकर श्रवण कुमार अपने माता-पिता को नदी की दूसरी ओर ले जाने लगे। जैसे ही वे नदी में उतरे, उन्हें अपने विचार अच्छे नहीं लगे। उन्हें लगा की वे ही तो अपने माता-पिता के एकमात्र सहारा हैं। यदि वे ही उनके साथ नहीं रहेंगे तो उनकी सेवा कौन करेगा। उन्हें लगा की अपने माता-पिता की सेवा से बड़ा कर्त्तव्य इस जीवन में और है ही नहीं। नदी पार करके उन्होंने अपने माता-पिता से क्षमा मांगी और उनके चरणों में आना शीश रखा।

माता-पिता ने अपने पुत्र के पश्चताप को समझा और कहा की उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी। धरती का वह हिस्सा ही अपवित्र था जहाँ तुम्हे ऐसा विचार आया।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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