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व्रत कथाएँ

Padmini Ekadashi Vrat Katha | पद्मिनी एकादशी व्रत कथा

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एकादशी तिथि को हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। माना जाता है कि इस तिथि पर सच्चे मन से भगवान नारायण की पूजा करने और व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर महीने आने वाली एकादशी को अलग अलग नामों से जाना जाता है, ऐसे में अधिकमास कि शुक्ल एकादशी को पद्मिनी (कमला) एकादशी (padmini ekadashi vrat 2023) के नाम से जाना जाता है।

Padmini Ekadashi Vrat Katha | पद्मिनी एकादशी व्रत कथा

एकादशी व्रत रखने के साथ ही इस दिन कि पढे व सुने जाने वाली व्रत कथा (padmini ekadashi vrat katha) का भी विशेष महत्व बताया जाता है। यह व्रत कथा इस प्रकार से है-

Padmini Ekadashi Vrat Katha : पद्मिनी एकादशी व्रत कथा

महाभारत के युद्ध के समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा- हे जनार्दन! आपने सभी एकादशियों के बारे में मुझे विस्तार से बताया, अतः अब आप कृपा कर, मुझे अधिकमास की शुक्ल पक्ष एकादशी के बारे में बतलाइये? उसकी विधि क्या है? तथा इसका महत्व क्या क्या है-

श्री कृष्ण ने कहा- हे राजन्, अधिकमास की शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पद्मिनी (कमला) एकादशी के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष में आने वाली एकादशियों की संख्या वैसे तो 24 होती है। लेकिन अधिकमास और मलमास में इन्हीं एकादशी की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।

भगवान कृष्णं ने आगे कहा- इस एकादशी व्रत को करने से मनुष्य को कीर्ति और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।यह एकादशी करने के लिए दशमी के दिन व्रत का आरंभ करके कांसे के पात्र में जौ-चावल आदि का भोजन करें तथा नमक न खाएं। भूमि पर सोएं और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि से निवृत्त होकर दंतधावन करें और जल के 12 कुल्ले करके शुद्ध हो जाएं।

इस एकादशी का पालन करने से दशमी तिथि से इस व्रत का पालन करना चाहिए। इस दिन से कांसे के पात्र में ही भोजन ग्रहण करें और नमक का सेवन करने से बचे। इसके साथ ही एकादशी तिथि के दिन व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि से निवृत्त हो जाना चाहिए और दंतधावन कर, जल के 12 कुल्ले करके शुद्ध हो जाएं।

इस दिन व्यक्ति को श्वेत वस्त्र धारण कर, भगवान विष्णु के मंदिर में जाकर विधि विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। हे कुन्तीपुत्र! अब आप ध्यानपूर्वक इस कथा का श्रवण करें।

हे मुनिवर! पूर्वकाल में त्रेयायुग में हैहय नामक राजा के वंश में, कृतवीर्य नामक राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की 1,000 परम प्रिय स्त्रियां थी, परंतु उनमें से किसी को भी पुत्र नहीं था, जो कि उनके बाद राज्यभार को संभाल सके। अनेकों देवताल, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकि‍त्सकों द्वारा बताएं जाने के बाद राजा ने काफी प्रयत्न किए, लेकिन सब असफल रहे।

तब राजा ने तपस्या करने का निश्चय किया। महाराज के साथ उनकी परम प्रिय रानी, जो इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए, राजा हरिश्चंद्र की पद्मिनी नाम वाली कन्या थीं, राजा के साथ वन में जाने को तैयार हो गई। दोनों अपने मंत्री को राज्यभार सौंपकर राजसी वेष त्यागकर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए।

राजा ने उस पर्वत पर 10 हजार वर्ष तक तप किया, परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से अनुसूया ने कहा- 12 मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है, जो 32 मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशीयुक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत के करने से भगवान तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे।

रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से एकादशी का व्रत किया। वह एकादशी को निराहार रहकर रात्रि जागरण करतीद। इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णुा ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तवीर्य उत्पन्न हुए। जो बलवान थे और उनके समान तीनों लोकों में कोई बलवान नहीं था। तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था।

सो हे नारद! जिन मनुष्यों ने मलमास शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत किया है, जो संपूर्ण कथा को पढ़ते या सुनते हैं, वे भी यश के भागी होकर विष्णुजलोक को प्राप्त होते हैं।

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