भगवान गणेश की महिमा किसी से वंचित नहीं है। गणपति जी के सेवा-भाव से न सिर्फ ज्ञान, विवेक और बुद्धि की प्राप्ति होती है, बल्कि शुरू किए जाने वाले सभी शुभ कार्यों में भी सफलता मिलती है। हिन्दू धर्म में, बुधवार के साथ ही चतुर्थी की तिथि भी गणपति जी की पूजा के लिए श्रेष्ट्र माना जाता है। प्रत्येक वर्ष में 2 बार यह चर्तुथी तिथि आती है, जिसे संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।
"ऊँ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने।दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने॥" इस श्लोक का अर्थ है- सभी सुखों को प्रदान करने वाले सच्चिदानंद के रूप में बाधाओं को दूर करने वाले राजा गणेश को नमस्कार को। जो सर्वोच्च देवता है, बुरे ग्रह का नाश करने वाले है, ऐसे भगवान गणपति को नमस्कार है। भगवान गणपति को समर्पित यह श्लोक उनकी अद्भुत महिमा और ऐश्वर्य का उल्लेख करता है। माना जाता है की जो भी व्यक्ति सच्चे मन से संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखता है, गणपति जी उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते है। हालंकि, इस व्रत को रखने के और भी बहुत से चमत्कारी लाभ बताएं जाते है, तो आइये एक-एक कर जानते है, क्या है ये लाभ और मार्गशीर्ष माह में इस व्रत को रखने की सही तिथि।
हर महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। मार्गशीर्ष महीने में 12 नवंबर 2022 के दिन यह व्रत रखा जाएगा। आइये अब जानते है इस व्रत को रखने के लाभ-
माना जाता है की यदि किसी व्यक्ति के जीवन में आर्थिक समस्याएं चल रही हो, तो उसे संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखना जरूर रखना चाहिए। सच्चे मन से इस व्रत को रखने से जातक के आर्थिक लाभ में वृद्धि होती है।
संकष्टी चतुर्थी का शाब्दिक अर्थ है, संकट को हरने वाली चतुर्थी। चतुर्थी की तिथि गौरीनंदन गणेश को समर्पित होती है, कहा जाता है की इस तिथि में जो भी गणपति जी का पूजन कर व्रत रखता है, उसके जीवन के सभी संकटों का नाश हो जाता है। इसके साथ ही उसके कार्य में आने वाली विघ्न एवं बाधाएं भी दूर हो जाती है।
शास्त्रों के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति जी का पूजन करने से घर में मौजूद सभी प्रकार के नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते है। भगवान गणपति के पूजन से न सिर्फ बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है बल्कि मन में भी एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
संकष्टी चर्तुथी व्रत के बारे में एक मान्यता यह भी बताई जाती है की, इस का व्रत रखने वाले व्यक्ति को चंद्रोदय के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए। इसके साथ ही गणेश जी की पूजन के समय दूर्वा (घास) ज़रूर अर्पित करनी चाहिए। कहा जाता ही की गणपति जी को दूर्वा अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न होते है और सभी कष्ट और बाधाओं को दूर कर देते है।
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