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Gudi Padwa Historical Significance: विजय, समृद्धि और नववर्ष का पर्व, जानें गुड़ी पड़वा से जुड़ा मराठा इतिहास और रोचक तथ्य!

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गुड़ी पड़वा, एक प्रमुख हिन्दू त्यौहार है, जो महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है। यह उत्सव उगादी और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है, साथ ही चैत्र नवरात्रि के शुभारंभ का भी प्रतीक है। यह तो हम सभी जानते है की गुड़ी पड़वा एक प्रमुख त्यौहार है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस मनाने के पीछे का इतिहास क्या है? इस ब्लॉग में हम आपको गुड़ी पड़वा के ऐतिहासिक महत्व और मराठा साम्राज्य से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में बताएंगे।

Gudi Padwa Historical Significance: विजय, समृद्धि और नववर्ष का पर्व, जानें गुड़ी पड़वा से जुड़ा मराठा इतिहास और रोचक तथ्य!

Maratha History Related to Gudi Padwa | गुड़ी पड़वा से जुड़ा मराठा इतिहास

1. महाराष्ट्र में यादव वंश से हुई शुरुआत

गुड़ी पड़वा का त्यौहार सिर्फ पौराणिक कथाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका महत्व क्षेत्रीय इतिहास और संस्कृति से भी जुड़ा हैं। चूंकि यह त्यौहार महाराष्ट्र में विशेष तौर पर मनाया जाता है, यही कारण है की मराठी संस्कृति में इसका विशेष उल्लेख मिलता है। एक किंवदंती के अनुसार, गुड़ी पड़वा की शुरुआत महाराष्ट्र में यादव वंश के समय हुई थी।

कहा जाता है की यह पर्व पुरानी फसल के अंत और नयी रबी फसल की शुरुआत को दर्शाता है।


2. छत्रपति शिवाजी महाराज की विजय का प्रतीक

एक अन्य मान्यता के अनुसार, छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल के दौरान गुड़ी पड़वा एक महत्वपूर्ण त्यौहार के रूप में सामने आया। भारतीय इतिहास में यह उल्लेख मिलता है कि वीर योद्धा और मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी महाराज ने (Historical Significance of Gudi Padwa in Maharashtra in hindi) अपनी विजय का उत्सव मनाने के लिए गुड़ी पड़वा की शुरुआत की।

जिसके बाद अपने साम्राज्य में शांति और एकता को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने इस पर्व को एक भव्य उत्सव में बदल दिया।


3. राजा शालिवाहन की जीत का प्रतीक

मराठी नव वर्ष के रूप में मनाया जाने वाला गुड़ी पड़वा का यह त्यौहार, सम्राट शालिवाहन की जीत का भी प्रतिनिधित्व करता है। कहा जाता है की पहली शताब्दी ई. में उन्होंने हूणों को मात देकर एहतिसाहिक जीत दर्ज की थी। इस जीत के उपलक्ष्य में, शालिवाहन कैलेंडर की स्थापना की गई और गुड़ी फहराने की परंपरा का भी शुभारंभ हुआ।

यहां गुड़ी शब्द का मतलब 'विजय पताका' से होता है, जो शालिवाहन महाराज के विजय के सम्मान में फहरया जाता है।


How the Gudi is Hoisted on Gudi Padwa? गुड़ी पड़वा पर कैसे फहराई जाती है 'गुड़ी'?

• गुड़ी का इतिहास एक विजय पताका से जुड़ा हुआ है, हालांकि इस त्यौहार के दिन फहराई जाने वाली गुड़ी वास्तव में ध्वज नहीं है। दरअसल यह गुड़ी एक लंबे बांस (steps to hoist the Gudi in hindi) से बनाई जाती है, जिसके ऊपर लाल, पीले, हरे या केसरिया रंग का रेशमी कपड़ा रखा जाता है।

• इस पवित्र कपड़े के ऊपर फिर लाल-पीलें फूलों की एक माला रखी जाती है, फिर कुछ नीम और आम के पत्तों से इसे सजाया जाता हैं। अंत में, ओम या स्वास्तिक जैसे शुभ चिह्न वाला कलश उल्टा करके माला के ऊपर रखा जाता है, और इस प्रकार पूरी विधि से गुड़ी की स्थापना की जाती है।

• इस सजी हुई गुड़ी को फिर घर के बाहर, दाई ओर छत या बालकनी के सबसे ऊंचे कोने पर फहराया जाता है। इसके बाद, परिवार के सभी लोग आने वाले साल में घर में खुशहाली, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हैं।

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गुड़ी पड़वा (gudi padwa significance in maratha) सिर्फ़ एक त्यौहार नहीं बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी प्रतीक है। है। नव वर्ष की शुरुआत के साथ ही, यह कृषि उत्सव और चैत्र नवरात्रि के शुभारंभ के रूप में देशभर में मनाया जाता है। धर्मसार की ओर से गुड़ी पड़वा के पावन पर्व की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं।

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