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रंग पंचमी के दिन इस विशेष पाठ से दूर होंगी दांपत्य जीवन की समस्याएं, बरसेगी राधा-कृष्ण की विशेष कृपा!

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रंग पंचमी एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्यौहार है, जो होली के पांच दिन बाद मनाया जाता है। इस खास दिन को लेकर मान्यता बताई जाती है कि देवी-देवता इस दिन धरती पर आते है और होली का उत्सव मनाते हैं। शास्त्रों में यह उल्लेख किया गया है कि इसी दिन राधा रानी और श्री कृष्ण ने होली खेली थी, जो प्रेम और सौहार्द का प्रतीक मानी जाती है।

रंग पंचमी के दिन इस विशेष पाठ से दूर होंगी दांपत्य जीवन की समस्याएं, बरसेगी राधा-कृष्ण की विशेष कृपा!

Rang Panchami Krishna Chalisa | रंग पंचमी कृष्ण चालीसा पाठ

रंग पंचमी के इस पावन अवसर पर एक विशेष पाठ का बहुत महत्व बताया जाता है। कहा जाता है की रंग पंचमी के पावन उपलक्ष्य पर श्री कृष्ण चालीसा (Rang Panchami Krishna Chalisa) का पाठ करने से वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी तरह की समस्याएं दूर होती है। यदि पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ श्री कृष्ण चालीसा का पाठ किया जाए, तो पति-पत्नी के बीच सभी तरह के मन-मुटाव खत्म होते है और आपसी प्रेम व सामंजस्य बढ़ता है।

श्री कृष्ण चालीसा का पाठ इस प्रकार किया जाता है-

Rang Panchami Krishna Chalisa
रंग पंचमी कृष्ण चालीसा


  • ॥ दोहा ॥

    ॥ दोहा॥ बंशी शोभित कर मधुर
    नील जलद तन श्याम
    अरुण अधर जनु बिम्बफल
    नयन कमल अभिराम ॥

    पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख
    पीताम्बर शुभ साज
    जय मनमोहन मदन छवि,
    कृष्णचन्द्र महाराज ॥

    जय यदुनन्दन जय जगवन्दन ।
    जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥

    जय यशुदा सुत नन्द दुलारे ।
    जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥

    जय नट-नागर नाग नथैया ।
    कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥

    पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।
    आओ दीनन कष्ट निवारो ॥

    वंशी मधुर अधर धरी तेरी ।
    होवे पूर्ण मनोरथ मेरो ॥

    आओ हरि पुनि माखन चाखो ।
    आज लाज भारत की राखो ॥

    गोल कपोल, चिबुक अरुणारे ।
    मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥

    रंजित राजिव नयन विशाला ।
    मोर मुकुट वैजयंती माला ॥

    कुण्डल श्रवण पीतपट आछे ।
    कटि किंकणी काछन काछे ॥

    नील जलज सुन्दर तनु सोहे ।
    छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥

    मस्तक तिलक, अलक घुंघराले ।
    आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥

    करि पय पान, पुतनहि तारयो ।
    अका बका कागासुर मारयो ॥

    मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला ।
    भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला ॥

    सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई ।
    मसूर धार वारि वर्षाई ॥

    लगत-लगत ब्रज चहन बहायो ।

    गोवर्धन नखधारि बचायो ॥

    लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई ।
    मुख महं चौदह भुवन दिखाई ॥

    दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।
    कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥

    नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें ।
    चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें ॥

    करि गोपिन संग रास विलासा ।
    सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥

    केतिक महा असुर संहारयो ।
    कंसहि केस पकड़ि दै मारयो ॥20

    मात-पिता की बन्दि छुड़ाई ।
    उग्रसेन कहं राज दिलाई ॥

    महि से मृतक छहों सुत लायो ।
    मातु देवकी शोक मिटायो ॥

    भौमासुर मुर दैत्य संहारी ।
    लाये षट दश सहसकुमारी ॥

    दै भिन्हीं तृण चीर सहारा ।
    जरासिंधु राक्षस कहं मारा ॥

    असुर बकासुर आदिक मारयो ।
    भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥

    दीन सुदामा के दुःख टारयो ।
    तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो ॥

    प्रेम के साग विदुर घर मांगे ।
    दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥

    लखि प्रेम की महिमा भारी ।
    ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥

    भारत के पारथ रथ हांके ।
    लिए चक्र कर नहिं बल ताके ॥

    निज गीता के ज्ञान सुनाये ।
    भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये ॥

    मीरा थी ऐसी मतवाली ।
    विष पी गई बजाकर ताली ॥

    राना भेजा सांप पिटारी ।
    शालिग्राम बने बनवारी ॥

    निज माया तुम विधिहिं दिखायो ।
    उर ते संशय सकल मिटायो ॥

    तब शत निन्दा करी तत्काला ।
    जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥
    जबहिं द्रौपदी टेर लगाई ।
    दीनानाथ लाज अब जाई ॥

    तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला ।
    बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ॥

    अस नाथ के नाथ कन्हैया ।
    डूबत भंवर बचावत नैया ॥

    सुन्दरदास आस उर धारी ।
    दयादृष्टि कीजै बनवारी ॥

    नाथ सकल मम कुमति निवारो ।
    क्षमहु बेगि अपराध हमारो ॥

    खोलो पट अब दर्शन दीजै ।
    बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ॥
    ॥ दोहा ॥

    यह चालीसा कृष्ण का
    पाठ करै उर धारि।
    अष्ट सिद्धि नवनिधि फल
    लहै पदारथ चारि॥

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