पितृ पक्ष 15 दिनों की एक धार्मिक अवधि है, जिसमें हिंदू परिवार अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। यह समय पूर्वजों की आत्मा की शांति, मोक्ष और आशीर्वाद प्राप्त करने का सर्वोत्तम अवसर माना जाता है। इन 15 दिवसीय पितृ पक्ष में, पूर्वजों की पुण्यतिथि के आधार पर श्राद्ध अनुष्ठान होता है। आज के इस ब्लॉग में पितृ पक्ष के महत्व, उससे जुड़ी परंपराओं, धार्मिक मान्यताओं और इसके प्रभाव को विस्तार से समझेंगे।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष पंद्रह दिनों तक चलता है। यह समय हमारे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करने का होता है। इन 15 दिनों में, हम अपने पितरों को याद करते हैं और उनके निमित्त श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसी धार्मिक क्रियाएं करते हैं। हमारे जीवन में पूर्वजों का विशेष महत्व है, इसलिए पितृ पक्ष के दौरान हम उन्हें धन्यवाद देते हैं और श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
प्रत्येक वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर, आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक श्राद्ध पक्ष रहता है। 2025 में पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2025 date) की शुरुआत 7 सितंबर 2025 (रविवार) से होने जा रही है। जिसके बाद इन 15 दिवसीय श्राद्ध का समापन 21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा।
ब्रह्मपुराण के अनुसार, भगवान की पूजा से पहले पितरों की पूजा करनी चाहिए। पितरों की पूजा करने से देवता प्रसन्न होते हैं और परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष के दौरान, हम तर्पण करके अपने पूर्वजों को याद करते हैं। इस दौरान, उनकी आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्हे दक्षिणा दी जाती है।
गरुड़ पुराण में पितृ पक्ष को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। इसके अनुसार, पितरों को तर्पण और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही, परिवार के सदस्यों के जीवन में भी सुख और समृद्धि आती है। ऋग्वेद और महाभारत जैसे प्राचीन शास्त्रों में पूर्वजों के प्रति निमित्त कर्म करने का वर्णन मिलता है।
प्राचीन हिंदू शास्त्रों के अनुसार, 15 दिवसीय पितृ पक्ष के दौरान हमारे दिवंगत पूर्वज इस धरती पर हमसे मिलने आते हैं। यह हमारे लिए उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण समय होता है।
पंचांग के अनुसार, सूर्य के तुला राशि में प्रवेश करने पर पितृ पक्ष प्रारंभ होता है। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष (Pitru Paksha significance) के दौरान आत्माएं पितृ लोक से निकलकर धरती पर अपने परिवार के बीच वास करती हैं।
गरुड़ पुराण के अनुसार, आश्विन महीने के समय पितरों को श्राद्ध अर्पित कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। यह भी कहा गया है कि गृहस्थ को अपने पितरों को प्रसन्न करना चाहिए। जब पितर प्रसन्न होते हैं, तो वे स्वास्थ्य, सुख समृद्धि, धन-धान्य और दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।
हिन्दू परंपरा में यह मान्यता है कि पिछले जन्मों के कर्म इस जीवन में फिर से लौटकर आते हैं। इसलिए, श्राद्ध पक्ष के दौरान यह माना जाता है कि व्यक्ति को अपने पूर्वजों के प्रति कुछ कार्य करना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें देवलोक की प्राप्ति होती है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
जो भी व्यक्ति पितृ दोष जैसी समस्याओं से परेशान है, उन्हें खासतौर पर पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध और उससे संबंधित अनुष्ठान संपन्न करने चाहिए। कहा जाता है कि इससे मृत पूर्वजों को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह आशीर्वाद हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता ह, जिससे परिवार में सदा सुख-समृद्धि बनी रहती है।
• पितृ पक्ष की शुरुआत सबसे पहले अपने दिवंगत पूर्वजों को स्मरण करें।
• यदि आप इस अवधि में तर्पण, श्राद्ध या अन्य धार्मिक क्रियाएं करते हैं, तो शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मचर्य और संयम का पालन करें।
• श्राद्ध कर्म करते समय जल में काले तिल और पुष्प अवश्य मिलाएं। मान्यता है कि कुश के प्रयोग से पितृ शीघ्र प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।
• पंडितों के अनुसार, पूरे पितृ पक्ष में प्रतिदिन तर्पण करना श्रेष्ठ होता है। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ गृह-क्लेश जैसी समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है।
• श्राद्ध के दौरान बनाए गए भोजन को गाय और कौवे को खिलाना शुभ माना गया है। कुछ विशेष मान्यताओं के अनुसार, पितृ इन जीवों के रूप में भोजन ग्रहण करते हैं।
पितृ पक्ष के दौरान पितृ दोष निवारण यंत्र (Pitra Dosh Nivaran Yantra) का पूजन बहुत लाभदायक माना जाता है। यह यंत्र पितृ दोष, पितृ ऋण और पितृ श्राप को दूर करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली है। पितृ दोष निवारण यंत्र के नियमित पूजन से जीवन में आ रही रुकावटें भी दूर होने लगती हैं। यदि आप पितृ पक्ष में विधि-विधान से इस यंत्र की स्थापना करते है, तो आपको बहुत जल्द पितृ दोष से जुड़ी परेशानियों से मुक्ति मिलेगी।
Buy Pitra Dosh Nivaran Copper Yantraहालांकि इस यंत्र की स्थापना से पूर्व किसी अनुभवी ज्योतिषी से सलाह अवश्य लें। वह आपको इस यंत्र से जुड़ी पूजा विधि और उचित दिशा के बारे में जानकारी देंगे।