सनातन धर्म में कई महत्वपूर्ण अनुष्ठान का उल्लेख हैं। इन्ही मे से कुछ तो ऐसे भी है, जो हमारी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा हैं। इनमें माथे पर तिलक लगाना, नंगे पैर मंदिर जाना और अन्य कई धार्मिक प्रथाएं शामिल हैं। हमारे धर्म में 'जनेऊ' पहनना भी एक महत्वपूर्ण परंपरा मानी जाती है। इसे यज्ञोपवीत भी कहा जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि 'जनेऊ' पहनना इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है? अगर नहीं, तो आइए जानें इसके पीछे के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण।
जनेऊ तीन धागों वाला एक पवित्र सूत्र है। इन तीन तारों का अर्थ सृष्टि के तीन पहलुओं को दर्शाना है। जनेऊ को पुरुष अपने बाएं कंधे में पहनते हैं। यह पवित्र एवं सफ़ेद धागा देवऋण, पितृऋण और ऋषि ऋण (meaning of janeu) का प्रतिनिधित्व करते है। साथ ही, इसे सत्व, रज और तम का भी प्रतीक माना गया है।
इसके अलावा जनेऊ में लगाई जाने वाली पांच गांठे भी खास महत्व रखती हैं। ये गांठें ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक मानी जाती हैं।
जनेऊ को आमतौर पर उपनयन के नाम से जाना जाता है। यह एक पवित्र धागा है। हिन्दू समुदाय में पुरुष वर्ग जनेऊ को कंधे पर पहनते है। आमतौर पर किशोरावस्था में जनेऊ पहनने का विधान माना जाता है। हालांकि देश के कुछ हिस्सों में विवाह के समय भी 'यज्ञोपवीत संस्कार' सम्पन्न किया जाता है। यह अनुष्ठान मुख्य रूप से ब्राह्मण और क्षत्रिय परिवारों में किया जाता है।
जनेऊ पहनने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण बताए जाते हैं। तो आइए जानते है-
पृथ्वी और ज्ञान का संबंध
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हर व्यक्ति को दो जन्म मिलते हैं। पृथ्वी पर आने पर व्यक्ति का पहला जन्म होता हैं। वही दूसरा जन्म होता है, जब हम ज्ञान की दुनिया में कदम रखते हैं। सनातन धर्म में जनेऊ संस्कार के माध्यम से व्यक्ति इस दूसरे जन्म में प्रवेश करता हैं।
जनेऊ संस्कार का महत्व
कूर्मपुराण के अनुसार, लड़कों और लड़कियों दोनों को जनेऊ संस्कार में शामिल होना चाहिए। आमतौर पर यह प्रथा मुख्य रूप से लड़कों में ही देखने को मिलती है। हालांकि देश के कुछ हिस्से ऐसे भी है जहां लड़कियों के लिए अलग से जनेऊ संस्कार संपन्न किया जाता है।
जनेऊ पहनने के लाभ
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जनेऊ नकारात्मक ऊर्जाओं के खिलाफ सुरक्षा कवच (benefits of Janeyu) की तरह काम करता है। इसके तीन धागे देवी सरस्वती, देवी पार्वती और देवी लक्ष्मी का प्रतीक माने जाते हैं। यह एक ऐसा पवित्र धागा है, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
आपको बता दें की हिंदू धर्म में, जनेऊ पहनने से पहले एक विशेष समारोह का भी आयोजन किया जाता है।
धार्मिक मान्यतओं के साथ ही जनेऊ पहनने के कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं। जैसे-
जब हम बाएँ कंधे पर जनेऊ पहनते हैं, तो यह हमारे दाएँ मस्तिष्क को बेहतर बनाने में मदद करता है। हमारे शरीर का बायां हिस्सा दाएं मस्तिष्क से जुड़ा होता है। इस मस्तिष्क से ज्ञान, भावनाएं और सोच जुड़ी होती हैं। इसलिए शिक्षा ग्रहण करने से पहले जनेऊ पहनने का विधान माना जाता है।
जनेऊ संस्कार के दौरान, व्यक्ति का सिर पूरी तरह से मुंडवा दिया जाता है। केवल एक छोटा सा हिस्सा छोड़ा जाता है, जिसे शिखा या चोटी भी कहते हैं। इस शिखा में बालों की एक गांठ बनाई जाती है। यह चोटी दबाव बनाती है, जो हमारे शरीर के सात चक्रों में ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ाती है।
जब जनेऊ कानों के पास बांधा जाता है, तो यह याददाश्त और फोकस में सुधार लाता है। इसके अलावा, यह पाचन से जुड़ी समस्याओं को भी कम करता है। इतना ही नहीं, जनेऊ पहनने से ब्लड प्रेशर से जुड़ी समस्याएं भी कम हो सकती हैं।
जैसा कि आपने पढ़ा, हिंदू धर्म में जनेऊ को अत्यंत पवित्र माना जाता है। ऐसे में यह बहुत ज़रूरी है की जनेऊ धारण करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाए। इनमें शामिल हैं-
1.सबसे पहले, दाहिने हाथ में जल लेकर आचमन करें। फिर, भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
2. इसके बाद, गायत्री मंत्र का तीन बार जाप करें।
3. जनेऊ को दोनों हाथों में पकड़ें। गाँठ वाला हिस्सा दाहिने हाथ में रखें। बाएँ हाथ का निचला हिस्सा गंगाजल में रखें।
4. जनेऊ पहनते समय, निम्नलिखित मंत्र का जाप करें -
'ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।'
5. अंत में, जनेऊ को बाएं कंधे से दाएं कंधे की ओर पहन लें। यदि जनेऊ का कोई तार टूट जाए, तो इसे तुरंत बदल लें।
हिंदू धर्म में जनेऊ संस्कार (Why do we wear a Janeyu) एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा है। जिसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहा जाता है। यह पवित्र धागा तीन ऋणों और त्रिगुणों का प्रतीक है। जनेऊ पहनने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही कारण बताए गए हैं। हालांकि इसे धारण करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए।