कजरी तीज के दिन महिलाएं मां पार्वती से भक्ति और सुख-सौभाग्य की कामना के लिए रखती है। यह व्रत श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की तीसरी तिथि को मनाया जाता है, जिसका मतलब होता है कि यह व्रत भाद्रपद महीने के कुछ समय पहले मनाया जाता है, जिसका आमतौर पर अगस्त-सितंबर महीने के बीच में पड़ता है।कजरी तीज के दिन व्रत रखने के साथ ही इसकी व्रत कथा पढ़ने का भी विशेष महत्व बताया जाता है।
कजरी तीज व्रत कथा (Kajri Teej Vrat Katha) इस प्रकार से है-
प्राचीन समय में एक हवा में एक गरीब ब्राह्मण रहता था।भादपद्र महीने की कजली तीज का अवसर आया। ब्राह्मणी देवी ने भी यह व्रत किया। उसने अपने पति से कहा की आज मेरा तीज माता का व्रत है। कही से चने का सातु लेकर आओ। ब्राह्मण बोला, सातु कहां से लेकर आऊं।
तब ब्रह्माणी ने उत्तर दिया- चाहे चोरी करों, चाहे डाका डालों। लेकिन कही से भी व्रत के लिए सत्तू लेकर आओ।
रात का समय था, और यह देखकर वह ब्राह्मण घर से निकला और साहूकार की दुकान ने घुस गया। उसने वहां पर चने की दाल, घी, और शक्कर को सवा किलो तोल लिया। उसके बाद इन तीनों चीजों के मिश्रण से सत्तू बना लिया। इस शोर से आस-पास के सभी लोग जाग गए और चिल्लाना शुरू कर दिया।
तब साहूकार ने ब्राह्मण को रंगे हाथों पकड़ लिया। अपनी सफाई में ब्राह्मण ने कहा की वह कोई चोर नहीं है। वह तो केवल अपनी पत्नी के तीज के व्रत के लिए सत्तू की तलाश में था। यह सुनने के बाद साहूकार ने उस गरीब ब्राह्मण की तलाशी ली और उसमें वास्तव में सत्तू के अलावा और कुछ नहीं था।
ब्राह्मणी के इंतज़ार करते-करते चांद भी निकल आया था।
उधर साहूकार ब्राह्मण की ईमानदारी से प्रसन्न हो गया और उसने ब्राह्मणी को अपने धर्म बहन मान लिया। सत्तू के साथ ही साहूकार ने अपनी बहन के लिए ब्राह्मण के हाथों, गहने, ढेर सारा धन, मेहंदी और अनेकों उपहार भिजवा दिए। इसके बाद सभी ने मिलकर कजली माता का विधि-विधान से पूजन किया।
जिस प्रकार तीज माता ने ब्रह्माणी के दिन फेरे, उसी प्रकार सबके दिन फेरे और सबके जीवन में सुख-समृद्धी का वास हो।
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