हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं को पूजा के समय कोई विशिष्ट वस्तु ज़रूर अर्पित की जाती है। उसी प्रकार भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। भगवान शिव बहुत ही सरल और भोले स्वभाव के माने जाते है। भोलेबाबा के बारे में यह कहा जाता है कि वे मात्र एक बेलपत्र पर ही अपने भक्तों के पास खींचे चले आते है। एक धार्मिक मान्यता के अनुसार बेलपत्र में मौजूद तीन पत्तियां तमस, रजस और सत्व गुणों का प्रतीक मानी जाती है।
महाशिवरात्रि (mahashivratri 2023) का पर्व हो या श्रावण मास के सोमवार का, भगवान शिव की पूजा बेलपत्र के बिना सदा ही अधूरी मानी जाती है। हमने अक्सर बड़े-बुजुर्गों से भी यह कहते हुए सुना है, महादेव को प्रसन्न के लिए एक बेलपत्र ही काफी है। इसके साथ ही बहुत से भक्त मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए भी महादेव को बेलपत्र अर्पित करते है। इस बात से तो सभी भली-भांति परिचित है कि भोलेबाबा की पूजा में बेलपत्र का प्रयोग शुभ फल प्रदान करता है, लेकिन क्या आप जानते है शिवजी को बेलपत्र इतना प्रिय क्यों है? आज के इस ब्लॉग में हम आपको बेलपत्र के ही धार्मिक महत्व और उससे जुड़ें लाभ के बारे में जानकारी देने जा रहे है। आइए जानते है-
बेल पत्र, बेल के पेड़ का एक हिस्सा है, जिसे संस्कृत में बिल्व पत्र भी कहा जाता है। 'बिल्व' शब्द का अर्थ है- बेल का पेड़ वही 'पत्र' शब्द का अर्थ है पत्ता। बेल के पेड़ में बेल पत्र के साथ ही एक विशेष बेल फल भी शामिल होता है। भगवान शिव को प्रिय होने के साथ ही बेलपत्र कई औषधीय गुणों से भी भरपूर माना जाता है।
प्राचीन ग्रथों के में बेलपत्र के बारे में बहुत विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया है। यदि आप बेलपत्र के आकार को देखते है तो यह एक त्रिकोणीय आकार में दिखाई देता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार यह त्रिमूर्ति: ब्रह्मा, विष्णु और महेश को दर्शाता है। वही शास्त्रों में यह भी बताया जाता है कि यह पत्र भगवान शिव के त्रिनेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। यही कारण है की भगवान शिव को बेलपत्र इतना प्रिय होता है। वेद-पुराणों में भगवान शिव को बेल-पत्र चढाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी बताई जाती है, यह कथा इस प्रकार से है-
समुन्द्र मंथन के समय देवताओं के द्वारा कहने पर भगवान शिव ने विष को अपने गले में धारण कर लिया था। इस विष के कारण उनका कंठ नीला पड़ गया और उनका पूरा शरीर आग से भी तेज गर्म होने लगा। इसके प्रभाव से आस-पास का वातावरण आग के समान जलने लगा। उस समय सभी देवताओं ने उन्हें बेलपत्र खिलाना प्रांरभ कर दिया। बेलपत्र के साथ ही उन सभी ने मिलकर शीतल जल से भी उनके शरीर के तापमान को कम करने का प्रयास किया। ऐसा माना जाता है, बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उर्जित गर्मी शांत हुई और उसी समय से शिव शंभू पर जल और बेलपत्र चढ़ाने का विधान चला आ रहा है।
• भोलेबाबा को हमेशा तीन पत्तियों वाला बेलपत्र ही अर्पित करें।
• बेलपत्र अर्पित करने के बाद भोलेनाथ को जल जरूर चढ़ाएं।
• कभी भी कोई खंडित बेलपत्र शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए।
• भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करने से पहले इसे पानी से अच्छे से साफ करें।
• भगवान शंकर को बेलपत्र चढ़ाते समय 'ॐ नमः शिवाय' या "त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥' मंत्र का जाप अवश्य करें।
बेल पत्र के बहुत से धार्मिक और औषदीय लाभ हमारे शास्त्रों में बताएं जाते है। स्कंद पुराण के अनुसार, ऐसा माना जाता है की बेल पत्र का पौधा माता पार्वती के पसीने की बूंदों से बढ़ता है और यही कारण है की इस पेड़ को इतना पवित्र, शुभ और कल्याणकारक माना जाता है। श्रावण या मानसून के माह में यह पेड़ अनेकों फूल पत्तियों और फलों से सुसज्जित होता है। महाशिवरात्रि (mahashivratri 2023) के पावन अवसर पर यदि आप भी भगवान शिव का आशार्वाद प्राप्त करना चाहते है तो पूजन के समय बेलपत्र का अवश्य प्रयोग करें।
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