भारत देश के हर राज्य, हर हिस्से और हर कोने में अलग-अलग तरह की परंपरओं व रीती-रिवाजों को माना जाता है। बहुत से लोग तो इन रीती-रिवाजों का मन से पालन करते है, वहीं हमारे देश में कई लोग ऐसे भी मौजूद है, जो न सिर्फ इन परंपराओं का मजाक उड़ाते है बल्कि इन्हें दकियानूसी और ढकोसले जैसी उपाधि देते हैं। लेकिन हर हिन्दू परंपरा के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक तर्क अवश्य छिपा होता है।
आपको बता दें, यह धार्मिक परम्पराएं अनावश्यक नहीं होती है, बल्कि इन सभ्यताओं के पीछे बहुत से वैज्ञानिक कारण शामिल होते है। ऐसे में आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से धार्मिक सभ्यता से जुड़े वैज्ञानिक तर्क के बारे में बताने जा रहे है, तो आइये जानते है-
हिन्दू परंपरा के अनुसार विभिन्न त्यौहारों और व्रत अनुष्ठानों के समय माथे पर तिलक लगाया जाता है। वैज्ञानिक तर्क के अनुसार हमारे सिर और आँखों के बीच से एक नस होती है। जब हमारे सिर पर कुमकुम या तिलक लगाया जाता है, तब हमारी अंगुली या अंगूठे से जो दबाव पड़ता है, वह हमारे चेहरे की मांसपेशियों तक रक्त संचालित करने का कार्य करता है। इसके साथ ही यह आँखो और माथे के बीच एक ऊर्जा का भी संचार करता है।
हिन्दू सभ्यता में अपने से बड़े व्यक्तियों और बुजुर्गों से मिलने पर उनके पैर छूने का रिवाज़ है। हिन्दू धर्म में माता-पिता बचपन से बच्चो को बड़े के पैर छूना सिखाते है। चरण स्पर्श करना अपने बड़े-बूढ़ों के प्रति सम्मान व्यक्त करने का ही भाव होता है। वैज्ञानिक मतानुसार हमारे मस्तिष्क से जो ऊर्जा निकलती वह हाथों से होते हुए पैरों के सामने वाले हिस्से तक पहुंचकर एक चक्र पूरा करती है। इसे कॉसमिक एनर्जी का संचार कहा जाता है।
जिस प्रकार हिन्दू धर्म में चरण स्पर्श को आदर-सत्कार करने का एक प्रतीक माना जाता है, उसी प्रकार से किसी के सामने हाथ जोड़कर नमस्कार करना उसके प्रति आदर दर्शाने का ही एक संकेत है। दरअसल, नमस्कार करने का यह मतलब बिलकुल नहीं है की हम किसी से आगे झुक रहे है या उससे कुछ मांग रहे है बल्कि वैज्ञानिक तर्क की बात करें तो जब हम हाथ जोड़ते है तब सभी अंगुलियां का ऊपरी हिस्सा आपस में जुड़ता है, जिस कारण एक दबाव उत्पन्न होता है और इसका सीधा असर हमारे दिमाग, आँख और कान पर होता है। जिसकी मदद से हमारे अंदर सामने वाले व्यक्ति को याद रखने क्षमता बढ़ जाती है।
पीपल का वृक्ष का नाम सुनते ही व्यक्ति के दिमाग में सबसे पहला ख्याल यही आता है की इसका संबंध केवल भूत-प्रेत और आत्माओं से होता है और इसकी पूजा इसलिए की जाती है ताकि भूत-बाधा से छुटकारा मिल सके। लेकिन आपको बता दें, इस पेड़ की पूजा इसलिए की जाती है ताकि लोग इसे काटें नहीं और उनके मन में इस पेड़ की प्रति सम्मान हो। वैज्ञानिक तर्कानुसार पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो दिन के अलावा रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।
सनातन धर्म में मंदिर में प्रवेश करते ही घंटी बजाने की परंपरा है। ऐसा करना बहुत शुभ बताया जाता है। विज्ञान के अनुसार घंटी की आवाज हमारे मन - मस्तिष से नकारात्मकत ऊर्जा को दूर करती है और पूजा के लिए हमारे ध्यान को केंद्रित करती है। इसके साथ ही घंटी से निकली ध्वनि हमारे मस्तिष में कम से कम 7 सेकंड तक गूंजती है, जिससे हमारे शरीर के 7 ऊर्जा केंद्र खुल जाते है।
हिन्दू धर्म में भगवान की मूर्तियों की पूजा की जाती है, मंदिरों के अलावा लोग अपने घर में भी मूर्ति स्थापित करते है। बहुत से लोग मूर्ति पूजा को गलत समझते है, उनका मानना है की भगवान हमारे मन में निवास करते है, किसी प्रतिमा में नहीं। लेकिन आपको बता दे, वैज्ञानिक मत के अनुसार यदि व्यक्ति मूर्ति के समक्ष बैठकर पूजा-पाठ करता है तो उसका ध्यान कही और नहीं भटकता, बल्कि उस मूर्ति पर ही स्थिर रहता है। यह आपके मन को एकाग्र कर सही तरीके से पूजा करने में मदद करता है।
यहां दिये गए वैज्ञानिक तर्क इस बात को दर्शाते है की हिंदू धर्म में माने जाने वाली परम्पराएं ढकोसला नहीं होती है, बल्कि उनके पीछे कोई न कोई ठोस कारण अवश्य होता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Dharmsaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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