हम अक्सर बहुत से ज्योतिषियों सुनते है, 'आपकी ग्रह दशा खराब चल रही है' या 'आपके नक्षत्र सही स्थिति में नहीं है' कुल मिलाकर कहा जाए तो ज्योतिशास्त्र या ग्रहों की चाल में विश्वास रखने वाले जातकों के लिए ग्रह-नक्षत्र का बहुत महत्व माना जाता है। यह तो हम सभी जानते है की नक्षत्रों की चाल से हमारा आज और आने वाला कल प्रभावित हो सकता है, लेकिन क्या आप जानते है की आखिर ये नक्षत्र आपकी किस्मत से कैसे जुड़े होते है?
हम अक्सर बहुत से ज्योतिषियों सुनते है, 'आपकी ग्रह दशा खराब चल रही है' या 'आपके नक्षत्र सही स्थिति में नहीं है' कुल मिलाकर कहा जाए तो ज्योतिशास्त्र या ग्रहों की चाल में विश्वास रखने वाले जातकों के लिए ग्रह-नक्षत्र का बहुत महत्व माना जाता है। यह तो हम सभी जानते है की नक्षत्रों की चाल से हमारा आज और आने वाला कल प्रभावित हो सकता है, लेकिन क्या आप जानते है की आखिर ये नक्षत्र आपकी किस्मत से कैसे जुड़े होते है?
ज्योतिषशास्त्र में नक्षत्रों की चाल को बहुत अहम माना जाता है। ऐसे में आज के इस ब्लॉग में हम आपको नक्षत्रों से जुड़ें सभी प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने जा रहे है, तो इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़े-
आकाशमंडल में चन्द्रमा, धरती के चारों ओर चक्कर लगाता है। माना जाता है कि चंद्रमा को यह प्रकिर्या पूरी करने में पुरे 27 दिनों का समय लगता है। इस दौरान चन्द्रमा को सितारों के 27 समूहों के बीच से गुजरना होता है। चन्द्रमा और सितारों के बीच हुए इसी संयोग को नक्षत्र के रूप में जाना जाता है। 27 सितारों का यह समूह अलग-अलग नामों से जाना जाता है। एक व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा, सितारों के जिस भी समूह से होकर गुजरेगा, वही उसका जन्म नक्षत्र माना जाएगा।
अंतरिक्ष में कुल 27 नक्षत्र होते है। इन नक्षत्रों को फिर चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। यह श्रेणियां इस प्रकार से है-
ज्योतिषशास्त्र में सबसे पहला नक्षत्र अश्विनी माना जाता है, वही सबसे आखिरी नक्षत्र रेवती के नाम से जाना जाता है। जिसे तरह से सूर्य मेष राशि से होता हुआ मीन राशि तक भ्रमण करता है, उसी प्रकार चन्द्रमा भी अश्विनी से लेकर रेवती नक्षत्र तक विचरण करता है। यह पूरी प्रकिया 27 दिनों की होती है, यही कारण है की 27 दिनों का एक नक्षत्र मास कहलाया जाता है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों और नक्षत्रों का खास महत्व बताया जाता है। विंशोत्तरी दशा, एक 120 वर्षीय ग्रह चक्र है, नक्षत्र के जन्म पर आधारित है। प्रत्येक नक्षत्र को चार भागों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें पद कहा जाता है। ग्रहों में स्थित यह नक्षत्र इन ग्रहों की विशेषताओं को भी परिभाषित करते है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म नक्षत्र को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। जन्म नक्षत्र वह नक्षत्र है, जिसमें जन्म के समय चंद्रमा स्थित था। चंद्रमा एक दिन में एक नक्षत्र में भ्रमण करता है।
अंतरिक्ष में मौजूद हर एक नक्षत्र का मान, 13 डिग्री और 20 मिनट का होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए नक्षत्र के एक फेज का मान 3 डिग्री और 20 मिनट होता है। इस अनुसार हम यह कह सकते है कि एक राशि पर 3 नक्षत्रों का क्षेत्र होता है।
प्रमुख 27 नक्षत्र इस प्रकार से है-
अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र।
अंतरिक्ष में कुल 27 नक्षत्र पाए जाते है। इन सभी नक्षत्रों में से आठवां नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र होता है। पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों में से सबसे अच्छा माना जाता है। इस नक्षत्र में खरीदे जाने वाली सभी वस्तुएं बहुत शुभ मानी जाती है।
सभी 27 नक्षत्र और उनके स्वामी देवता इस प्रकार से है-
1. अश्विनी | अश्विनीकुमार |
2. भरणी | काल |
3. कृत्तिका | अग्नि |
4. रोहिणी | ब्रह्मा |
5. मृगशिरा | चंद्रमा |
6. आद्रा | रूद्र |
7. पुनवर्सु | अदिति |
8. पुष्य | ब्रहस्पति |
9. आश्लेषा | सर्प |
10. मघा | पितर |
11. पुर्व फाल्गुनी | भग |
12. उत्तरा फाल्गुनी | अर्यम्मा |
13. हस्त | सूर्य |
14. चित्रा | विश्वकर्मा |
15. स्वाति | वायु |
16. विशाखा | शुक्रराग्नि |
17. अनुराधा | मित्र |
18. जयेष्ठा | इंद्र |
19. मूल | निरश्ति (राक्षस) |
20. पूर्वाषाढ़ा | जल |
21. उत्तराषाढ़ा | विश्वेदेवा |
22. श्रवण | विष्णु |
23. घनिष्ठा | वसु |
24. शतभिषा | वरुण |
25. पूर्वा भाद्रपद | अजैकपाद |
26. उत्तरा भाद्रपद | अर्हिबुद्धनय |
27. रेवती | पूषा |