रुद्राक्ष मनका, जिन्हें शंकर भगवान के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में रुद्राक्ष को न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता है, बल्कि इनका गहरा आध्यात्मिक और ज्योतिषीय महत्व भी है। चाहे बात मानसिक शांति की हो या जीवन में सुख-समृद्धि को आकर्षित करने की, रुद्राक्ष का यह मनका हर प्रकार से जातक के कल्याणकारक सिद्ध होता है। आज के ब्लॉग में हम जानेंगे रुद्राक्ष की उत्पत्ति, प्रकार और इसके जुड़ें महत्वपूर्ण लाभ-
रुद्राक्ष बीड्स (Rudraksha beads) हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखती है। भगवान शंकर के स्वरुप इस चमत्कारी रुद्राक्ष को अक्सर पेंडेंट और माला में धारण करके पहना जाता है। शिव भक्तों के लिए, रुद्राक्ष (rudraksha in hindi) का हर एक मनका उनकी आस्था और भक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
धार्मिक रूप से, रुद्राक्ष न केवल आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है बल्कि रुद्राक्ष में समाहित औषधीय गुण भी इसे विशेष बनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति कब और कैसे हुई थी? अगर नहीं, तो आइए जानते है इस रहस्यमयी बीज का इतिहास।
'रुद्राक्ष की उत्पत्ति से जुड़ी कई रोचक पौराणिक कथाएं हैं, विशेष रूप से हिंदू धर्म की प्राचीन कथाओं में भगवान शिव से सम्बंधित ऐसी बहुत सी कथाओं का उल्लेख मिलता है। इन कथाओं के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि रुद्राक्ष का जन्म कब और कैसे हुआ। आइए, जानें कुछ रुद्राक्ष उत्पत्ति से जुड़ी कुछ ऐसी ही पौराणिक कथाएं-
शिव पुराण के अनुसार, रुद्राक्ष की उत्पत्ति त्रिपुरासुर नामक एक असुर से जुड़ी है, जिसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए वर्षों तक तपस्या की। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया, लेकिन अपनी शक्ति के घमंड में त्रिपुरासुर ने देवताओं और ऋषि-मुनियों को परेशान करना शुरू कर दिया। इसके बाद, देवताओं ने भगवान शिव से मदद की प्रार्थना की और उस समय भगवान शिव ध्यान-साधना में थे। जब भगवान शिव ने अपनी आंखें खोलीं, तो उनके आंसू पृथ्वी पर गिरे, और जहां-जहां उनके आंसू गिरे, वहां रुद्राक्ष के पेड़ उग आए। अंत में, भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से त्रिपुरासुर का वध किया और सभी को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के तांडव के दौरान हुई थी। इस कथा में बताया गया की तांडव नृत्य करते समय, भगवान शिव की ऊर्जा इतनी तीव्र थी की वहां रुद्राक्ष के पेड़ों की उत्पत्ति (rudraksha history in hindi) हो गई। ये पेड़ तेजी से भूमि पर उग गए और उनके बीजों ने रुद्राक्ष का रूप लिया। यह कहानी ब्रह्मांड में सृजन और विनाश के चक्रों के बीच संबंध को दर्शाती है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, रुद्राक्ष की उत्पत्ति ऋषि शंकराचार्य से भी जुड़ी है। माना जाता है कि उन्होंने रुद्राक्ष मनके को आध्यात्मिक अभ्यास के लिए समस्त विश्व से परिचित कराया था। बताया जाता है कि शंकराचार्य ने भारत भ्रमण के दौरान, पवित्र रुद्राक्ष बीड्स का एक संग्रह एकत्र किया और उन्हें ध्यान के लिए प्रयोग किया। उनकी भक्ति और शिक्षाओं ने रुद्राक्ष को भगवान के साथ जुड़ाव के रूप में लोकप्रिय बनाने में मदद की।
रुद्राक्ष की माला विशेष रूप से एलियोकार्पस गनीट्रस (Elaeocarpus Ganitrus) नामक वृक्ष के बीजों से बनती है, जो मुख्य रूप से हिमालय की ऊँचाइयों और दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ इलाकों में पाए जाते हैं। यह वृक्ष छोटे गोल आकार के फल देता है, जो जैसे ही परिपक्व होते हैं, रुद्राक्ष बीज में परिवर्तित हो जाते हैं।
इन बीजों की सबसे खास बात यह है कि उनकी सतह पर गहरे खांचे या "मुखी" (rudraksha types and faces) होते हैं, जिनकी संख्या एक से लेकर इक्कीस या उससे अधिक हो सकती है।
• रुद्राक्ष धारण करने से मानसिक चिंता और तनाव कम होता है।
• रुद्राक्ष माला से मंत्रोच्चारण और जाप करने से ध्यान साधना में वृद्धि होती है।
• रुद्राक्ष नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है और व्यक्ति को जीवन की परेशानियों और नकारात्मक प्रभावों से बचाता है।
• रुद्राक्ष का यह मनका शरीर और मन के बीच ऊर्जा को संतुलित करता है और जीवन में पॉजिटिविटी और स्वास्थ्य को आकर्षित करता है।
• रुद्राक्ष मनके का एक लाभ यह भी है की इसे पहनने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है, हृदय स्वास्थ्य में सुधार होता है, और शरीर में मौजूद सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम होता है।
• रुद्राक्ष धारण करने के बाद मांस-मदिरा का सेवन न करें।
• रुद्राक्ष को कभी भी गंदे हाथ से न छुएं। रुद्राक्ष धारण करने से पहले गंगाजल से शुद्ध करें।
• रुद्राक्ष की माला पहनते समय सुनिश्चित करें कि इसमें कम से कम 27 मनके अवश्य हो।
• रुद्राक्ष धारण करते समय यह ध्यान रखे की इसे काले रंग के वस्त्र में कभी धारण न करें।
• रुद्राक्ष को पहनने से पूर्व, 'ऊं नम: शिवाय' मंत्र का 108 बार उच्चारण करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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